कोरोना से डेराने हैं।
कही लिखते मिले तो भईया हमे बता दइयों।
कोरोना मे अपने वजूद को भुलाने हैं।
खोकर मीडिया के हो-हल्ला मे,
सामाज को रचने वाले शब्द हेराने हैं...
कवि, ब्यंग, शायर, गजल सभी बौराने हैं,
खोज-खाज राजनीति के चुटकले उन्हे नही फैलाने हैं।
सच कहने व लिखने से लेखक भी कोरोना से डेराने हैं ...
खोकर अपनी अभिब्यक्ति को, होकर डामाडोल।
चुनाव लड़ने वाले नेता भी कोरोना से घबराने हैं ...
हमरे लेखक हेराने हैं...
कही लिखते मिले तो भईया हमे बता दइयों।
गाँव मे ढूंढा, शहर मे ढूंढा कालेज संस्थानो मे ढूंढा, मंदिर चर्च गुरुद्वारा में ढूँढा कही नही मीले, कोरोना के डर से कई विदेशियों ने मदरसे में बनाए ठिकाने है।
सच्ची बाते कहने से अभी सभी डेराने हैं...
हमरे लेखक कोरोना कोरोना कहके हेराने है।
कही लिखते मिले तो भईया हमे बता दइयो।
अभी तो कोरोना से डेराने है, भीड़ सभा, कवि चर्चा सभी हेराने हैं।
भारत देश है, शक्तिशाली कोरोना महामारी नाम के भी गीत दोहा बना कर कोरोना से लड़ना है। जब तक मरे न महामारी तब तक घर मे रहना है।
हमरे लेखक कोरोना कोरोना कहके हेराने है।
कही लिखते मिले तो भईया हमे बता दइयो।