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*"काव्य सरिता" घर-घर बहती है!*
*कवि-मन को व्यथित करती है!!*
*अन्न-जल त्याग "देवी जी" बैठी है!*
*"दुर्गा" का मानो 'अवतार' हुआ है!!*
*'क्षत-विक्षत' सारा 'घर-बार' हुआ है!*
*ठप्प कलह-द्वद्व से व्यापार हुआ है!!*
*"पाठ-मंचन" से नहीं त्राण मिलना है!*
*ऋणम् लेवेत-धृतम् पिवेत वरना है!!*
*कलश स्थापना, नव वस्त्राभूषण करना है!*
*काव्य-गोष्ठी तदोपरान्त हीं अब करना है!!*
*विसर्जनोपरांत दीपावली की लिस्ट लाना है!!!*
💐 *कवि (संतप्त कवि समाज मंच)* 💐
कवि एवम् प्रस्तुति:
*डॉ. कवि कुमार निर्मल*