जब भी कोई नई किताब
मेरे हाथों में होती है,
स्याही की गंध सी महक उठती है
महक जो किसी भी
कलमकार के पसीने से भी
मूल्यवान होती है !
जब भी कोइ पुरानी किताब
मेरे हाथो में होती है,
स्याही की गंध नहीं उठती
मगर पुरानी लकड़ी की
अलमारी में से यादें हर पन्नों पर
इस कदर उभर आती है
जैसे -
पहली बार तुम्हें अपने करीब
महसूस करते वक्त जो महक
उठी थी और मैं अपनी यादों में
एक नई ज़िंदगी जीने के लिए
खुद को फ़ीनिक्स की तरह
उठ खड़ा हुआ पाता हूँ !
*
|| पंकज त्रिवेदी ||