गहन अंधकार ने
मुझे चारों ओर से
घेर लिया था....
मैं दीप जलाने के लिए
कोशिश पर कोशिश
करता ही रहा....
दो हाथ आएँ आगे
वायुदेव को बिनती करते
और दीप जल ही गया....
फिर न जाने क्यूँ ?
आँधी ही ऊठी रिश्तों को
डराने के लिए...
दीप बुझ गया न बचा
रिश्ता उन दो हाथो से बना
न जिनके लिए.... !
*
|| पंकज त्रिवेदी ||
05 Dec-2016