अब कुछ भी बोलने का मन नहीं होता । हाँ, कभी कभी कोई धुन मन में उभर आती है तो कुछ गुनगुना लेता हूँ । कई बार शब्द नहीं होते सिर्फ धुन होती है मन के अंदर और जब मन की वीणा के तार बजते हैं तो आपको आसपास का कुछ सुनाई नहीं देता ।
खामोशी बहुत प्यार करती है मुझसे ... और मैं भी । अपने आप से मिलना इस भगदड़ सी ज़िंदगी में... । ऐसा लगता है कि सबकुछ छूट गया है । आज मन शांत है । पूरे आराम से । जैसे सभी काम पूरे हो गए है । न किसी को मिलने की चाह है न किसी से कोई गिला-शिकवा । ऐसा भी नहीं है कि हम अपने अतीत को खंगालते रहें और अच्छाई-बुराई का हिसाब लागायें । जो भी हुआ, होने वाला था । कहीं किसी भी अर्थ में अगर मैं निमित्त मात्र बन गया तो वो मेरे कर्मों का फल था या मेरा फ़र्ज़ था । शिव का आदेश था कि तुम्हें यह करना होगा और मैंने किया । मगर अब हम ही हम है !
और यहाँ से एक नई यात्रा शुरू होती है ... हमारी, हमारे अंतर्मन के साथ... !
न डर है, न कोई मिशन है, न कोई जिजीविषा है न कोई डगर है....!
चलते रहना है मगर कोई जल्दी भी नहीं है ... ! कब कहाँ पहुंचेंगे, क्या करेंगे किस से मिलेंगे, ऐसा कुछ भी तो नहीं ।
हाँ, सच में कुछ भी तो नहीं है... सिर्फ कुदरत का नज़ारा है, मैं हूँ... गज़ब का अनुभव है .. !
|| पंकज त्रिवेदी || 13 March 2016