मेरी रूमानियत पे वो जैसे शरमाता रहा
लगा प्यार में वो कुछ गलत करता रहा
खामोशी को वो बंदगी का नाम देता रहा
इशारों से वो अपनी सल्तनत चलाता रहा
दरमियाँ ज़िंदगी के फूलों से वो खेलता रहा
बड़ी मासूमियत से वो दुनिया में जुड़ता रहा
कर्म करना ही हमारा कर्तव्य है कहता रहा
कैसा पेड़ है यह फल पाने को तरसता रहा !
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पंकज त्रिवेदी