हम लोग कोई एक दशक से नहीं
कई दशकों से जानते है एक दूसरे को
हम जानते है क्यूंकि मिलते भी है !
मिलते हैं इसलिए लोग भी मानते है कि
हम एक दूसरे को खूब समझते भी है
हम भी तो ऐसा मानकर अबतक साथ चलें
मगर क्या यही सच है कि हम एक दूसरे को
देखते है, जानते है, समझते भी है और बात
यहीं पर ख़त्म हो जाती है हमेशा के लिए !
दरअसल हम सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे को
देखने, जानने, समझने का ढोंग करते हैं
वर्ना घर की छत में इतनी दरारें न होती !
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