इन हवा की सल्तनत से ऊपर कोई नहीं यहाँ
कब बुझा दें वो आग कब ख़ाक से भड़के यहाँ
जो मिट्टी से पैदा हुआ, जो मिट्टी में जिया
उन्हीं के दाने-पानी पे कसा जो सिकंजा यहाँ
खुलकर सामने आते तो कुछ बातें हो भी जाती
सत्ता के नशे और मोह में अपनों से गद्दारी यहाँ
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पंकज त्रिवेदी