मैं आज
तुम्हारे अंदर पिघल रहा हूँ जैसे
तुम सदियों पहले बहती हुई
लावा की नदी थी और
आज मुझे देखकर ठहर गई हो !
मै आज
कुछ भी नहीं होते हुए भी बहौत कुछ हूँ
और मेरा अपना अस्तित्त्व समर्पित हो रहा है
तुम्हारे अंदर बूंद बूंद बनकर !
मैं आज
न बेबस हूँ और न तुम बेबस हो
जो कुछ हो रहा है वो प्रकृति है
प्राथमिकता से पूर्णता की ओर अग्रसर !
मैं आज
कुछ भी नहीं सोचता, न तुम भी सोचो कुछ
ये न सिर्फ हमारे अस्तित्त्व की कहानी है
यही सत्य है जो परम तत्त्व शिव-शिवा है !
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