ज़िंदगी कहो कितनी सरल होती है,
बच्चे के हाथ में गुब्बारे सी होती है |
वो लड़की कंधे पे बोज लिए चलती है,
ऐसी शिक्षा पर गर्व महसूस करती है?
जातिवाद का समंदर लहराने लगे जब,
चुनाव के नाम कितनी बेरहमी होती है !
खफ़ा हो गया है खुदा मेरा कहने से क्या,
खबर खुदा की या बंदगी की जगह होती है?
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- पंकज त्रिवेदी
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(पहली लाइन गुजराती कवि मुकुल चोकसी की ग़ज़ल से प्रेरित)