यह मछली तो वो है
जो कुछ दिनों से लगातार
चैन से मुझे न सोने नहीं देती है
न मुझसे कहीं दूर चली जाती है !
जब भी आँख मूँदकर सोने जाऊं
आँखों की नमीं से भरे सरोवर में
वो इस तरह तैरने लगती है जैसे
जलराशि को चीरती निकल जाती है !
कौन है वो? क्यूं आती है
बार बार मेरे पास और मैं उन्हें
देखते हुए बेचैन सा हो जाता हूँ !
मछलियों ने बहुत प्यार दिया है मुझे
इंसानों से भी ज्यादा और उसीने मेरी
ज़िंदगी में रंग भर दिया है, निरंतर
हौसला बढाया है उनकी तेज़ गति ने !
मिल गई थी एक रात मुझे वो....
मत्स्यकन्या !
मौन की भाषा सिखाई थी उसने
तब से रंगबिरंगी मछलियों का
परिवार मेरा हो गया और मैं उनका !
*
- पंकज त्रिवेदी