मोहब्बत के दायरे कितने सिकुड़ने लगे है
लगता है कोई खिलौना जैसे खरीद लेते हैं
राजनीति हो या नीति जीवन की हो कहीं
अनीति के सहारे लोग कितना जीत लेते है
सच्चाई की बातें भी अब नहीं होती यहाँ पे
भाषाओँ में शब्द नहीं गालियाँ बक लेते है
मोबाईल से डिजिटल इंडिया का सपना है
बिगड़ते हुए लोग अब हाशिये में रहते है
बयानों से राजनीति नहीं होती मगर सच
नेताओं की गिरी हुई सोच समझ लेते हैं
किस किस पर पंजा कसोगे तुम सत्ता से
तुम्हारे मुँह पे कालिख पहले से जो लगी है
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|| पंकज त्रिवेदी ||