वह पिघल जाती है मुझ में इस कदर
जैसे बारिश की बूँद समंदर के पानी में
बादलों को घिरने दो वो चाहे जितना
बरसना तो उन्हें यहीं है इसी पानी में
कड़ी धूप में खिला प्यार का पलाशी रंग
तपने दो जब तलक पिघल जाएं पानी में
रेगिस्तान से जंगलों तक की प्यास खूब
कहीं आग से उठी राख बहने दो पानी में
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पंकज त्रिवेदी