नये जीवन की आस लिये... ! - पंकज त्रिवेदी
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दिन के उजाले में देखा तो
पेड़ों के शांत स्थिर पत्तों में
खामोशी छाई हुई है !
न पंछियों की चहचहाट सुनी
न किसी के आने-जाने की आहट
लगता है दिन ही ठहर गया है |
पोखर का जल भी स्थिर है
न कोई मवेशी, न कोई बच्चा नहाने को
सारा गाँव जैसे अब भी गहन निद्रा में !
न किसी के घर में खनकती चूड़ियाँ
न बरतनों की आवाज़ आई
न चूल्हा जला, न धुआँ उठा छप्परों से !
मैंने देखा तो –
एक बच्चा धीरे धीरे घर से बाहर निकला
उनके गालों पर सूखे आँसूंओं के निशाँ
उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि –
आतंकवाद क्या है ?
जिसने पूरी बस्ती को ख़त्म कर दिया था
मगर बच गया था एक ही बच्चा !
एक नये जीवन की आस लिये... !!
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(तसवीर सिर्फ प्रतीकात्मक है : गूगल ...से साभार)