पूर्व में सात भाग में सूर्योपनिषद् की चर्चा की गई है। इस चर्चा में सूर्योपनिषद् के अमृत का रसास्वादन कराया गया था। यदि आप सूर्योपनिषद् को पुस्तक रूप में अपने मेल पर मुफ्त में पाना चाहते हैं तो मित्रता का अनुरोध करते हुए उपनिषदों का अमृत वेबपेज का अनुसरण करें और मुझे मेरे अधोलिखित मेल पर उक्त पुस्त
जीवन राह देता है पर हम उसे पकड़ नही पाते हैं। अकर्मण्यता या आलस्य वश ऐसा होता है। भाग्य भी पुरुषार्थ से फलीभूत होता है। कर्म के योग से कुशलता प्राप्त होती है। कर्म की महत्ता सर्वोपरि है। बिना कर्म के कुछ नहीं मिलता है। ईश्वर आशीष से हमें जो यह अनमोल जीवन मिला है इसे सार्थक करने के लिए हमें कर्म को म
यः सदाऽहरहर्जपति स वै ब्रह्मणो भवति स वै ब्रह्मणो भवति। सूर्याभिमुखो जप्त्वा महाव्याधिभयात्प्रमुच्यते। अलक्ष्मीर्नश्यति। अभक्ष्य- भक्षणात्पूतो भवति। अगम्यागमनात्पूतो भवति। पतितसंभाषणात्पूतो भवति। असत्संभाषणात्पूतो भवति। मध्याह्ने सूर्याभिमुखः पठेत्। सद्योत्पन्न्पंचमहापातकात्प्रमुच्यते। सैषां स
बात उन दिनों की है जब मैं दसवी कक्षा की छात्रा थी। किसी के नाम के पूर्व डाॅ. की उपाधि देखकर मन असंख्य अभिलाषाओं से भर उठता। मैं सोचती काश, मेरे नाम से पूर्व भी यह उपाधि लगे। साहित्य लेखन में रुचि होने के कारण कविता, कहानी आदि की प्रतियोगिताओं में भाग लिया करती थी जिससे मैं स्कूल की प्राचार्या से
ॐ इत्येकाक्षरं ब्रह्म। घृणिरिति द्वे अक्षरे। सूर्य इत्यक्षरद्वयम्। आदित्य इति त्रीण्यक्षराणि। एतस्यैव सूर्य स्याष्टाक्षरो मनुः।।7।। ॐ यह प्रणव एकाक्षर ब्रह्म है। घृणि और सूर्य यह दो दो अक्षरों के मन्त्र हैं तथा आदित्यः इसमें तीन अक्षर हैं। इन सबके सहयोग से सूर्यदेव का आठ अक्षरों वाला महामन्त्र बनता
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शब्दनगरी द्वारा बढ़ाए गए उत्साह और सहयोग के कारण ही 25 मई 2016 से 29जून 2016 के मध्य 100 रचनाओं का शतक पूर्ण हुआ। शब्दनगरी के सभी सदस्यों एवं मित्रों के सहयोग व प्यार ने ही इसे पूर्ण करने की प्रेरणा दी। शब्दनगरी के सभी सदस्यों एवं मित्रों का बहुत बहुत धन्यवाद। आप सबके प्यार के कारण ही ऐसा हुआ।
अनिश्चय से सदैव बचें। अनिश्चय की स्थिति असफलता को निमन्त्रण देती है। अनिर्णय की स्थिति कुछ करने नहीं देती और अवसर यूं ही आंखों के सामने से फुर हो जाता है। होना तो यह चाहिए कि निर्णय लें और काम में लग जाएं। जब तक आप निर्णय नहीं लेंगे तो अनिश्चय की स्थिति में रहेंगे। यह सब जानते हैं कि
आदित्याद्वायुर्जायते। आदित्याद्भूमिर्जायते। आदित्यादापो जायन्ते।आदित्याज्ज्योतिर्जायते।आदित्याद्व्योम दिशो जायन्ते।आदित्याद्देवा जायन्ते। आदित्याद्वेदाजायन्ते। आदित्यो वा एष एतन्मंडलं तपति । असावादित्यो ब्रह्म।आदित्योऽन्तःकरणमनोबुद्धिचित्ताहंकाराः।आदित्यो वै व्यानः समा- नोदानोऽपानः प्राणः। आदित्यो व
आपको निज ज्ञान की नींव को मजबूत बनाना चाहिए। सामान्यतः ज्ञान स्वाध्याय अर्थात् अध्ययन से बढ़ता है। प्रत्येक व्यक्ति को स्कूल व कॉलेज में पढ़ते हुए अपने ज्ञान को पूर्ण समर्पण भावना से अर्जित करना चाहिए। जो ज्ञान बढ़ाने में सक्रिय रहते हैं वे कठोर परिश्रम एवं सतत प्रयास से शेष सबकुछ पा लेते हैं।
यह वेद वाक्य है-उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत्। जीवन की कर्मभूमि पर कर्म की निरन्तरता ही हमें लक्ष्य की ओर ले जाती है। पहली आवश्यकता लक्ष्य सदैव मन व नेत्रों के समक्ष रहना चाहिए अर्थात् उसके प्रति सदैव जागरूक रहें। जब तक आप स्वयं के प्रति जागरूक नहीं हैं तब तक आप लक्ष्य के प्रति ज
आत्महत्या करना कायरता है अब चाहे किसी भी तनाव में हो पर जीवन की जंग तो हार ही गए। इस प्रकार का कायरता पूर्ण कार्य किसी को भी नहीं करना चाहिए। संघर्ष के बाद सफलता है और रात के बाद दिन है। यह प्रकृति का नियम है जिससे सृष्टि चल रही है। सुख और दुःख तो आते जाते रहते हैं। माता-पिता चाहें तो अपने
सूर्योपनिषद अथर्ववेदीय परम्परा से संबंध रखता है। इस उपनिषद में आठ श्लोकों में ब्रह्मा और सूर्य की अभिन्नता वर्णित है और बाद में सूर्य व आत्मा की अभिन्नता प्रतिपादित की गई है। इस उपनिषद के पाठ के लिए हस्त नक्षत्र स्थित सूर्य का समय अर्थात् आश्विन मास सर्वोत्तम माना गया है। इसके पाठ से व्यक्
किसी भी देश की राजनीति उस देश के विकास देशवासियों के हितार्थ होती है. भारत में पहले राजतंत्र था. तमाम राजा अपने प्रभुत्व अपनी शक्ति और पराक्रम से अपने राज्य काविस्तार करते थे.राजाओं की आपसी लड़ाई दुश्मनी के कारण ही भारत गुलाम हो गया.आठ सौ साल गुलामी झेलने के बाद बड़ी त्याग तपस्या और वलिदान के बाद भारत
जिस देश में बेटियां बिकने पर मजबूर हों और बेटे घर परिवार की सुरक्षा के लिए कलम की बजाय बंदूक पकड़ने को मजबूर हो जाएँ, तो ऐसी आजादी बेमानी होने की बात मन में उठना स्वभाविक है. बाजार हो या ट्रेन, या बस हो, कब छुपाकर रखा बम फट जाये, इस दहशत में आजाद भारत में जीना पड़े तो इसे विडंबना ही कहा जायेगा. जहाँ ए
तीन दिन से छुट्टी पर चल रही है, काम नहीं करना तो मना कर दे, कोई जोर जबरदस्ती थोड़ी है. रोज कोई ना कोई बहाना लेकर भेज देती है अपनी बेटी को, उससे न सफाई ठीक से होती है और ना ही बर्तन साफ़ होते है. कपड़ों पर भी दाग यूँ के यूँ लगे रहते है .......... और उसमे इस बेचारी का दोष भी क्या है? इसकी उम्र भी तो नही