*प्रत्येक मनुष्य एक मन:स्थिति होती है | अपने मन:स्थिति के अनुसार ही वह अपने सारे कार्य संपन्न करता है , परंतु जब मनुष्य की मन:स्थिति में विवेक सुप्तावस्था में होता है तो उसके निर्णय अनुचित होने लगते हैं | प्रत्येक मनुष्य को अपने भीतर के विवेक को जागृत करना चाहिये | जिस दिन विवेक जागृत हो जाता है मन
*इस धरती पर इतने प्राणी है कि उनकी गिनती कर पाना संभव नहीं है | इन प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी मनुष्य माना जाता है | मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी इसलिए माना जाता है क्योंकि उसमें जो विशेषतायें हैं वह अन्य प्राणियों में नहीं पायी जाती हैं | वैसे तो ईश्वर ने मनुष्य में विशेषताओं का भण्डार भर दिया ह
*इस धरा धाम पर ईश्वर ने चौरासी लाख योनियों का सृजन किया है | इनमें जलचर , थलचर एवं नभचर तीन श्रेणियाँ मुख्य हैं | इन तीनों श्रेणियों में भी सर्वश्रेष्ठ योनि मानव योनि कही गई है | मनुष्य जीवन सृष्टि की सर्वोपरि कलाकृति है , ऐसी सर्वांगपूर्ण रचना किसी और प्राणी की नहीं है | यह असाधारण उपहार हमको मिला
*मानव जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव आते रहते हैं | कभी सुख कभी दुख मिलना साधारण सी बात है | मनुष्य को इन सभी अवस्थाओं में सकारात्मक या नकारात्मक निर्णय लेने के लिए परमात्मा मनुष्य को विवेक दिया है | कभी कभी ऐसी स्थिति हो जाती है कि मनुष्य विवेकशून्य हो जाता है और आवेश में आकर ऐसे निर्णय ले लेता है जो
*संपूर्ण संसार में मनुष्य अपने दिव्य चरित्र एवं बुद्धि विवेक के अनुसार क्रियाकलाप करने के कारण ही सर्वोच्च प्राणी के रूप में स्थापित हुआ | मनुष्य का पहला धर्म होता है मानवता , और मानवता का निर्माण करती है नैतिकता ! क्योंकि नैतिक शिक्षा की मानव को मानव बनाती है | नैतिक गुणों के बल पर ही मनुष्य वंदनी
*ईश्वर ने सुंदर सृष्टि की रचना की | अनेकों प्रकार की योनियों की रचना करके कर्म के अनुसार जीव को उन योनियों में जन्म दिया | इन्हीं योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानवयोनि कही गयी है | प्रत्येक जीव को जीवन जीने के लिए आहार की आवश्यकता होती है जहां जंगली जानवर मांसाहार करके अपना जीवन यापन करते हैं वही मनुष्य
*संपूर्ण धरा धाम पर भारत ही एक ऐसा देश है जो अनेकों प्रकार की सभ्यताएं एवं संस्कृति य स्वयं में समेटे हुए है | इस देश को "विविधता में एकता" वाला देश कहा जाता है | क्योंकि यहां पर विभिन्न धर्मों व संप्रदायों के लोग एक साथ निवास करते हैं | इन सभी मतावलम्बियों की अपनी - अपनी भाषाएं , अपने - अपने रीति -
*सनातन धर्म में समस्त सृष्टिकाल को चार भागों में विभाजित किया गया है जिन्हें चार युगों का नाम दिया गया | यह युग है सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग एवं कलियुग | इसमें से तीन युग तो व्यतीत हो चुके हैं चौथा कलियुग चल रहा है | प्रत्येक युग का आचरण एवं मनुष्य के आचार - विचार भिन्न-भिन्न होता रहा है | पू
*मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | मनुष्य और समाज की तुलना शरीर और उसके अंगों से की जा सकती है जैसे शरीर एवं अंग दोनों परस्पर पूरक है, एक के बिना दूसरे का स्थायित्व सम्भव नहीं है | आपसी सहयोग आवश्यक है | मनुष्य की समाज के प्रति एक जिम्मेदारी है जिसके बिना समाज सुव्यवस्थित नहीं बन सकता है | जिस प्रकार मन
*मनुष्य अपने जीवन में अनेकों प्रकार के क्रियाकलाप करता रहता है , जिसमें से कुछ सकारात्मक होते हैं तो कुछ नकारात्मक | जैसे मनुष्य के क्रियाकलाप होते हैं वैसा ही उसको फल प्राप्त होता है | इन्हीं क्रियाकलापों में छल कपट आदि आते हैं | छल कपट करने वाला ऐसा कृत्य करते समय स्वयं को बहुत बुद्धिमान एवं शेष स
*संपूर्ण विश्व में अपनी संस्कृति हम सभ्यता के लिए हमारे देश भारत नें सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था | हम ऐसे देश के निवासी है जिसकी संस्कृति एवं सभ्यता का अनुगमन करके संपूर्ण विश्व आगे बढ़ा | यहां पर पिता को यदि सर्वोच्च देवता माना जाता था तो माता के कदमों में स्वर्ग देखा जाता था | यह वह देश है जहां
*इस संसार में मनुष्य अपने जीवनकाल में कुछ कर पाये या न कर पाए परंतु एक काम करने का प्रयास अवश्य करता है , वह है दूसरों की नकल करना | नकल करने मनुष्य ने महारत हासिल की है | परंतु कभी कभी मनुष्य दूसरों की नकल करके भी वह सफलता नहीं प्राप्त कर पाता जैसी दूसरों ने प्राप्त कर रखी है , क्योंकि नकल करने के
*ब्रह्मा जी की बनाई हुई सृष्टि नर नारी के सहयोग से ही चल रही है | यहां नर एवं नारी दोनों की ही समान आवश्यकता , उपयोगिता एवं महत्ता है , इसलिए आदिकाल से नर नारी दोनों को ही श्रेष्ठ मानते हुए उनका सम्मान किया गया है | मनुष्य का अस्तित्व माता के बिना संभव नहीं होता , पत्नी के बिना एक पुरुष का जीवन अस्त
*सनातन धर्म में ब्रह्मा विष्णु महेश के साथ 33 करोड़ देवी - देवताओं की मान्यताएं हैं | साथ ही समय-समय पर अनेकों रूप धारण करके परम पिता परमात्मा अवतार लेते रहे हैं जिनको भगवान की संज्ञा दी गई है | भगवान किसे कहा जा सकता है इस पर हमारे शास्त्रों में मार्गदर्शन करते हुए लिखा है :-- ऐश्वर्यस्य समग्रस्य ध
*परमपिता परमात्मा ने विशाल सृष्टि की रचना कर दी और इस दृष्टि का संचालन करने के लिए किसी विशेष व्यक्ति या किसी विशेष पद का चयन नहीं किया | चौरासी लाख योनियां इस सृष्टि पर भ्रमण कर रही है परंतु इन को नियंत्रित करने के लिए उस परमात्मा ने कोई अधिकारी तो नहीं किया परंतु परमात्मा ने मनुष्य के सहित अनेक ज
सनातन धर्म में मानव जीवन को दिव्य बनाने के लिए सोलह संस्कारों की व्यवस्था हमारे महापुरुषों के द्वारा बनाई गई थी | मनुष्य के जन्म लेने के पहले से प्रारंभ होकर की यह संस्कार मनुष्य की मृत्यु पर पूर्ण होते हैं | मनुष्य जीवन का सोलहवां संस्कार , "अंतिम संस्कार" कहा गया है | मनुष्य की मृत देह को पंच तत्व
*इस धरा धाम पर जन्म लेकरके मनुष्य का लक्ष्य रहा है भगवान को प्राप्त करना | आदिकाल से मनुष्य इसका प्रयास भी करता रहा है | परंतु अनेकों लोग ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने भगवान का दर्शन पाने के लिए अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत कर दिया परंतु उनको भगवान के दर्शन नहीं हुए | वहीं कुछ लोगों ने क्षण भर में भगवान का द
*आदिकाल से संपूर्ण विश्व में भारत अपने ज्ञान विज्ञान के कारण सर्वश्रेष्ठ माना जाता रहा है | हमारे देश में मानव जीवन संबंधित अनेकानेक ग्रंथ महापुरुषों के द्वारा लिखे गए इन ग्रंथों को लिखने में उन महापुरुषों की विद्वता के दर्शन होते हैं | जिस प्रकार एक धन संपन्न व्यक्ति को धनवान कहा जाता है उसी प्रकार
*इस धरा धाम पर ईश्वर ने मनुष्य को विवेकवान बनाकर भेजा है | मनुष्य इतना स्वतंत्र है कि जो भी चाहे वह सोच सकता है , जो चाहे कर सकता है , किसी के किए हुए कार्य पर मनचाही टिप्पणियां भी कर सकता है | इतना अधिकार देने के बाद भी उस परमपिता परमात्मा ने मनुष्य को स्वतंत्र नहीं किया है | मनुष्य किसी भी कार्य
*सनातन धर्म इस धरती का सबसे प्राचीन धर्म होने के साथ ही इतना दिव्य एवं विस्तृत है कि इसकी व्याख्या करना संभव नहीं हो सकता | सनातन धर्म के किसी भी ग्रंथ या शास्त्र में मानव मात्र में भेदभाव करने का कहीं कोई वर्णन नहीं मिलता है | आदिकाल से यहाँ मनुष्य कर्मों के अनुसार वर्ण भेद में बंट गया | ब्राम्हण ,