*इस धरा धाम पर जन्म लेकरके मनुष्य का लक्ष्य रहा है भगवान को प्राप्त करना | आदिकाल से मनुष्य इसका प्रयास भी करता रहा है | परंतु अनेकों लोग ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने भगवान का दर्शन पाने के लिए अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत कर दिया परंतु उनको भगवान के दर्शन नहीं हुए | वहीं कुछ लोगों ने क्षण भर में भगवान का दर्शन प्राप्त कर लिया | इसका क्या कारण हो सकता है ?? इस पर विचार किया जाय तो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम द्वारा मानस में कहे गये उनके वह वचन याद आते हैं :- "निर्मल मन जन सो मोहि पावा ! मोहि कपट छल छिद्र न भावा !! कहने का अर्थ है कि भगवान स्वयं घोषणा करते हैं कि जिसका निर्मल मन है जिसके अंदर राग , द्वेष , ईर्ष्या , मद , मात्सर्य , कपट , छल , छिद्र नहीं होता है वही मुझे प्राप्त कर सकता है , अन्यथा जीवन भर मेरी कृपा नहीं हो सकती है | मन में कुटिलता रखकरके छल कर कर के एवं दोषयुक्त मनुष्य भगवान को कभी नहीं प्राप्त कर सकता | जिन्होंने इन दुर्गुणों का त्याग करके भगवान को प्राप्त करने का प्रयास किया उनको भगवान का दर्शन बिना किसी कठिनाई के हो गया , और जिनके मन में इन सारे दुर्गुणों का भंडार बना रहा वह कभी भगवान को नहीं प्राप्त कर पाया | भगवान को प्राप्त करने के लिए या सत्मार्ग पर चलने के लिए इन दुर्गुणों का त्याग करना ही पड़ेगा अन्यथा जीवन ऐसे ही निरुद्देश्य होकर व्यतीत हो जाएगा |* *आज
समाज में अनेक लोग ऐसे हैं जो भगवान का पूजन तो खूब करते हैं , बड़े-बड़े अनुष्ठानों का आयोजन भी करते हैं परंतु उन पर भगवान की कृपा नहीं होती | और इतने धार्मिक कृत्य करने के बाद भी वे समाज में रोते हुए मिलते हैं कि मैंने इतना सब कुछ किया परंतु मुझको उसका फल नहीं मिला | आज के मनुष्य की मानसिकता इतनी विकृत हो गई है कि वह दिखावे के लिए तो बहुत बड़े बड़े भंडारे करता है परंतु उसके मन से कपट आदि दुर्गुण नहीं मिट पाते | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में देख रहा हूं कि लोग दूसरों की जमीन कब्जा करने के लिए कपट पूर्वक उस पर धार्मिक आयोजन करा कर समाज में अपना नाम तो कमा रहे है साथ ही किसी गरीब की जमीन भी धार्मिक आयोजन के नाम पर हथिया ले रहे हैं , ऐसे कपट पूर्ण धार्मिक आयोजनों का क्या फल मिलेगा यह परमात्मा ही जाने | आज मनुष्य दूसरों की कमियों को देखने में ही व्यस्त है , उसे अपनी कमियां दिखाई ही नहीं पड़ती है | अपने छिद्र नहीं दिखाई पड़ते हैं | जिस दिन मनुष्य स्वयं का छिद्रान्वेषण करना प्रारम्भ कर देगा उस दिन उसको किसी दूसरे में कोई छिद्र नहीं दिखाई पड़ेगा | परंतु मनुष्य की मानसिकता है कि उसको अपनी कमियां दिखाई ही नहीं पड़ती | शायद इसीलिए कहा गया है चिराग तले सदैव अंधेरा ही रहता है |* *यदि वास्तव में भगवान की कृपा प्राप्त करनी है तो सबसे पहले मनुष्य को अपने हृदय से कपट , छल , छिद्र आदि का त्याग करके अपने मन को निर्मल करना होगा |*