*संपूर्ण धरा धाम पर
भारत ही एक ऐसा
देश है जो अनेकों प्रकार की सभ्यताएं एवं संस्कृति य स्वयं में समेटे हुए है | इस देश को "विविधता में एकता" वाला देश कहा जाता है | क्योंकि यहां पर विभिन्न धर्मों व संप्रदायों के लोग एक साथ निवास करते हैं | इन सभी मतावलम्बियों की अपनी - अपनी भाषाएं , अपने - अपने रीति - रिवाज एवं अपने साहित्य भी अलग हैं | सबसे महत्वपूर्ण बात यह है यह सभी लोग यदि आज अपने - अपने
धर्म के अनुसार अपना जीवन यापन कर रहे है तो उनकी पहचान बनाए रखने में उनकी संस्कृति का महत्वपूर्ण योगदान माना जा सकता है | क्योंकि यह सत्य है कि संस्कृति के प्रकाश में ही भारत अपने वैयक्तिक एवं वैश्विक जीवन मूल्यों की रक्षा कर सकता है | भारत देश की प्राचीन संस्कृति सदैव से सर्वधर्म समभाव की रही है , हमारे देश की लोकतंत्रीय व्यवस्था ने प्रत्येक धर्म / संप्रदाय को समान आदर देते हुए उनका संरक्षण किया है | पूर्व काल में चाहे राजतंत्र रहा हो या वर्तमान काल में लोकतंत्र ! सबने विभिन्न समुदाय की संस्कृतियों का संरक्षण अपने - अपने अनुसार करने का प्रयास किया है | भारत की पहचान संपूर्ण विश्व में इन्हीं संस्कृतियों के कारण होती रही है , यह भारत की संस्कृति ही है जो कि हमारे देश को संपूर्ण विश्व से बिल्कुल अलग दर्शाती है , परंतु आज शायद हम अपनी संस्कृति को , अपनी सभ्यता को भूलते चले जा रहे हैं | हमारी संस्कृति , हमारी मर्यादा नष्ट होती जा रही है | इसके कारणों पर विचार करने की आवश्यकता है |* *आज हम लोकतंत्रीय व्यवस्था में जीवन यापन कर रहे हैं | जनता के द्वारा चुनी गई सरकार जनता की आवश्यक आवश्यकताओं के साथ देश की संस्कृति एवं सभ्यता की संरक्षक होती है ! परंतु आज पूरा देश जिस सांस्कृतिक दौर से गुजर रहा है उसके पदचाप में संस्कृति की कोई अनुगूँज कहीं भी सुनाई नहीं देती | एक तरफ तो सरकारें कहती है कि हम संस्कृति का संरक्षण करने के लिए कटिबद्ध है परंतु दूसरी ओर दिन - प्रतिदिन सांस्कृतिक मूल्य एवं आदर्श नष्ट होते जा रहे हैं | यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि आजादी के बाद से लेकर के आज तक देश भर में संस्कृति के नाम से अनगिनत संस्थाएं तो बनी परंतु उनका कार्य बिल्कुल विपरीत ही रहा | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह कह सकता हूं कि आज हमारी संस्कृति का शाब्दिक प्राचीन रूप नष्ट होता जा रहा है | देश एवं
समाज अपरिपक्व प्रयोगों में फंसकर के अनेक अन्य समस्याओं को जन्म दे रहा है | आज हमारे देश में भ्रष्टाचार इतना ज्यादा हो गया है कि जिन्हें संरक्षण करना चाहिए वहीं भक्षण करने को तत्पर दिखाई दे रहे हैं | आज हम संपन्नता के साये में पनपती और पलती विकृतियों से संतप्त पश्चिमी जीवन शैली जैसी ही घुटन और तनाव का अनुभव करने लगे हैं , क्योंकि हम अपनी संस्कृति को छोड़कर पश्चिम देशों की नकल करने के आदी हो गए हैं , जो किआने वाले समय के लिए कितना घातक होगा यह दिखना प्रारंभ हो गया है | सांस्कृतिक स्तर पर हमारी स्थिति धोबी के कुत्ते जैसी हो गयी है आज हम भी ना घर के रह गए हैं और न ही घाट के |* *यदि ईमानदारी से विचार किया जाय तो यही सत्य है कि आज हम न तो प्राचीन संस्कृति को बचा पा रहे हैं और ना ही पूर्ण रूप से आधुनिक हो पा रहे हैं | आज हम ना पूरब के हैं ना पश्चिम के एक अजीबोगरीब संस्कृति के मोहपाश में कैद हम "गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं" जैसे उद्घोष करने में भी झिझकने लगे हैं |*