*संपूर्ण संसार में मनुष्य अपने दिव्य चरित्र एवं बुद्धि विवेक के अनुसार क्रियाकलाप करने के कारण ही सर्वोच्च प्राणी के रूप में स्थापित हुआ | मनुष्य का पहला
धर्म होता है मानवता , और मानवता का निर्माण करती है नैतिकता ! क्योंकि नैतिक शिक्षा की मानव को मानव बनाती है | नैतिक गुणों के बल पर ही मनुष्य वंदनीय हो करके अपनी सच्चरित्रता के बल पर ही धन-दौलत सुख और वैभव की नींव खड़ी करता है | हमारे
देश भारत की नैतिकता इतनी दिव्य थी कि संपूर्ण विश्व ने इससे शिक्षा ग्रहण करके आगे बढ़ना सीखा | नैतिकता की चर्चा हो रही है तो यह जान लेना आवश्यक कि नैतिकता के मुख्य अंग क्या है ?? हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि सत्य बोलना , चोरी न करना , अहिंसा , अपने ऊपर उपकार करने वाले के प्रति अपकारी न होना , दूसरों के प्रति उदारता , विनयशीलता , शिष्टता , सुशीलता एवं कृतज्ञता नैतिकता के मुख्य अंग माने गये हैं | मनुष्य द्वारा किए गए किसी भी निर्णय में नैतिकता का मुख्य स्थान होता है | नैतिकता की भूमिका वांछित या अवांछित क्या है यह स्थापित करने में निहित है , इस प्रकार नैतिकता सही और गलत अवधारणाओं को स्थापित करती है , जिससे मनुष्य अपने नैतिक मूल्यों का पालन करके
समाज में स्थापित होता है | प्राचीनकाल में हमारे देश में नैतिक मूल्यों का पालन करके ही हमारे पूर्वजों ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया था | सभी सभी प्रकार शिक्षाओं के साथ में नैतिक शिक्षा भी एक विषय हुआ करता था , जिसको पढ़कर के छात्र नैतिक मूल्यों का अर्थ समझ सकते थे और उसका पालन करने का प्रयास भी करते थे | आज विद्यालयों से नैतिक शिक्षा का पठन-पाठन बिल्कुल बंद हो गया है जिसका परिणाम भी दिखाई पड़ रहा है |* *आज संपूर्ण विश्व में नैतिक मूल्यों का पतन हो गया है यही कारण है की मानव मानव में प्रतिदिन संघर्ष एवं टकराव होते रहते हैं | जहां एक ओर आज का मनुष्य विकसित एवं विकासशील हो गया है वहीं दूसरी ओर मानव समाज के नैतिक मूल्यों में एक अभूतपूर्व गिरावट भी हुई है | नैतिकता का अर्थ ही बदल कर रह गया है | सच्चरित्रता का लगभग लोप हो गया है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के समाज को देखकर यह कह सकता हूं कि जिन्होंने अपने माता पिता का तिरस्कार करके उनको या तो घर में उपेक्षित जीवन जीने पर बाध्य कर दिया है या फिर वृद्धाश्रम में छोड़ आये हैं वही लोग बड़े-बड़े मंचों से जनमानस को नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं | अनेक ऐसे विद्वान भी आज कथा मंच पर बैठकर के अपने सामने उपस्थित सत्संग प्रेमियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हुए देखे जा रहे हैं जो अपने पूज्यजनों के प्रति कृतघ्न हैं और जिन्होंने अपनी नैतिक मूल्यों का कभी अवलोकन ही नहीं किया | आज के समाज को देख कर के तुलसी बाबा की एक चौपाई याद आ जाती है :- "पर उपदेश कुशल बहुतेरे ! जे आचरहिं ते नर न घनेरे !!" दूसरों को उपदेश देने वाले यदि अपने जीवन में उन चीजों को उतारने का प्रयास करें तब तो हमारा समाज आगे बढ़ सकता है अन्यथा यह कोरा भाषण की कहा जा सकता है जिसका कोई अर्थ नहीं है |* *आज आवश्यकता है कि हम अपनी नैतिक मूल्यों का अवलोकन करें कि हम जो दूसरों को बता रहे हैं क्या उसका पालन हमने किया है | जिस दिन मनुष्य की यह अवधारणा बन जाएगी उस दिन नैतिकता स्वयं स्थापित हो जाएगी |*