*इस संसार में मनुष्य अपने जीवनकाल में कुछ कर पाये या न कर पाए परंतु एक काम करने का प्रयास अवश्य करता है , वह है दूसरों की नकल करना | नकल करने मनुष्य ने महारत हासिल की है | परंतु कभी कभी मनुष्य दूसरों की नकल करके भी वह सफलता नहीं प्राप्त कर पाता जैसी दूसरों ने प्राप्त कर रखी है , क्योंकि नकल करने के लिए अकल की आवश्यकता होती है | यह भी सत्य है कि यदि मनुष्य में अकल है तो उसे नकल करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी | पूर्वकाल में राजाओं - महाराजाओं की पुत्रियों का विवाह स्वयंवर के माध्यम से किया जाता था , जिसमें
देश - विदेश के राजा एवं राजकुमार विवाह करने के लिए स्वयंवर सभा में उपस्थित होते थे | कन्या हाथ में वरमाला लेकरके अपने वर का चयन स्वयं करती थी | इस प्रकार भरी सभा में जयमाल के माध्यम से उनका गंधर्व विवाह संपन्न होता था , बाद में वैदिक रीति के साथ ब्राह्म विवाह देवताओं एवं कुटुंबियों की उपस्थिति में संपन्न होता रहा है | एक बात ध्यान दें कि इस स्वयंवर सभा में राजा एवं राजकुमार के अतिरिक्त उसी देश के नागरिक उपस्थित रहते थे जिस देश की वह कन्या होती थी | कहने का तात्पर्य है कन्या के ससुराल पक्ष वाले विवाह में उपस्थित होते थे न कि स्वयंवर सभा में | और पूर्व काल में जब यह स्वयंवर सभायें होती थी तब हमारे देश
भारत में नारियों के लिए पर्दा प्रथा का कहीं कोई भी
लेख नहीं मिलता है | पर्दा प्रथा हमारे देश में विदेशी आक्रान्ताओं के द्वारा आक्रमण के बाद प्रारंभ हुई जो कि आज तक अनवरत चल रही है | परंतु आज हम उन स्वयंबर सभाओं की नकल करना प्रारंभ कर दिए हैं , और प्रत्येक विवाह में द्वारपूजन के बाद दूल्हा सीधे जयमाल के लिए बने दिव्य एवं भव्य मंच की ओर प्रस्थान कर जाता है जहां उसकी अर्धांगिनी उसको जयमाल पहनाने के लिए अपनी सखियों के साथ पधारती है |* *आज की स्थितियां एवं आज का परिवेश पूर्वकाल से बहुत भिन्न होने के बाद भी मनुष्य पूर्वकाल की नकल करने का प्रयास करता है | आज का विवाहोत्सव पूर्वकाल के विवाह की नकल कहा जा सकता है , परंतु एक कन्या की स्थिति दयनीय हो जाती है जब कन्या को सजा धजा कर उस मंच पर प्रस्तुत किया जाता है जहां उसके गांव के लोगों के अतिरिक्त दूर दूर से आए हुए बाराती भी होते हैं | सबके समक्ष वह कन्या बिना घुंघट के मंच पर अपने होने वाले दूल्हे को जयमाल डालती है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इस प्रथा को गलत तो नहीं मानता परंतु गलत यह लगता है कि जब वही कन्या विवाह करके अपनी ससुराल में आती है तो ससुराल वाले उससे पर्दा करने की अपेक्षा करते हैं | ऐसे सभी लोगों से मैं यही पूछना चाहता हूं कि जब भरे
समाज में आपने अपनी होने वाली बहू का प्रदर्शन किया तब आपको इस पर्दे की याद नहीं आयी ??? सर्वसमाज के सामने घूंघट उठा कर मंच पर आने वाली कन्या आपके घर की चारदीवारी के अंदर भला पर्दा कैसे करेगी ?? परंतु कुछ लोग घर में इसीलिए महाभारत मचा देते हैं कि मोहल्ले के किसी व्यक्ति के सामने हमारी बहू ने अपना मुंह खोल दिया | क्या सारा दोष उस बहु का ही है या कुछ हमारा भी है | विचार पर विचार कीजिएगा |* *यह लेख लिखने का तात्पर्य मात्र इतना ही है कि हम नकल करना तो सीख गए हैं परंतु अभी तक कुछ लोगों में शायद अकल नहीं आ पायी है |*