*सनातन
धर्म में ब्रह्मा विष्णु महेश के साथ 33 करोड़ देवी - देवताओं की मान्यताएं हैं | साथ ही समय-समय पर अनेकों रूप धारण करके परम पिता परमात्मा अवतार लेते रहे हैं जिनको भगवान की संज्ञा दी गई है | भगवान किसे कहा जा सकता है इस पर हमारे शास्त्रों में मार्गदर्शन करते हुए लिखा है :-- ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशस: श्रिय: !
ज्ञान वैराग्योश्चैव षडम् भग इतीरिण: !! अर्थात जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्या , धर्म की संपूर्णता , यश , श्री , ज्ञान एवं वैराग्य का एक साथ समायोजन हो उसे ही भगवान माना गया है | भगवान का कार्य है अधर्म का विनाश कर के धर्म की स्थापना करना एवं आतताईयों से
देश ,
समाज एवं धर्म की रक्षा करना | जब जब इस धरा धाम पर आतताईयों ने अधर्म एवं अनीति का विस्तार करने का प्रयास किया है तब तब किसी न किसी रूप में वह परम सत्ता अवतरित होती रही है , और अपने अवतार का प्रयोजन सिद्ध करते हुए इन आतताईयों का विनाश कर के पृथ्वी पर पुन: धर्म की स्थापना एवं अपने कार्यों के द्वारा आम जनमानस को एक दिव्य संदेश प्रस्तुत करने का कार्य किया है | भगवान वही है जो कभी चमत्कार नहीं दिखाते , जो कभी स्वयं को पुजवाते नहीं | मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जब अपने वनवास काल में मुनियों के आश्रम में पहुंचे तो मुनियों ने उनको भगवान की उपाधि देकर पूजा करनी चाही , परंतु श्री राम ने स्वयं उनकी पूजा की | माता शबरी से मिलने पर भी हमारे आराध्य भगवान श्रीराम में तनिक भी स्वयं को भगवान कहलवाने का भाव नहीं दिखाई पड़ा | यही होती है भगवान की दिव्यता ! यही होते हैं महापुरुष के कार्य |* *आज यदि इतिहास उठा कर देखा जाए तो कलियुग में स्वयं को भगवान कहने वाले अनेको सिद्ध महात्मा दिखाई पड़ जायेंगे | यदि ध्यान दिया जाए तो अनेकों ऐसे लोग आज के नवीन इतिहास में मिल जाएंगे जो स्वयं को भगवान कहलवाने में ही अपनी मर्यादा मानते रहे हैं | कोई चमत्कार दिखाता है , तो कोई शिष्यों की भीड़ इकट्ठा करके स्वयं को पुजवा रहा है , और भगवान की पदवी प्राप्त कर रहा है | ये ऐसे स्वयंभू भगवान हैं जिनके ना तो चरित्र का पता है और ना ही उनके कार्यों से किसी की भलाई होने वाली है | आज
भारत का दुर्भाग्य है कि ऐसे लोगों को भगवान एवं सिद्ध पुरुष मान करके पूजा जा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" किसी एक व्यक्ति के ऊपर आक्षेप ना करके , किसी की भावनाओं को ठेस ना पहुंचा करके सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि आज जिस प्रकार इन तथाकथित भगवानों का महिमामंडन किया जा रहा है क्या ये भगवान कहे जाने की योग्य हैं ?? कलियुग के भगवानों ने आज तक कितने आतताईयों का वध किया ? कहां धर्म की रक्षा की ? इसका विवरण शायद कहीं नहीं मिलता है | कष्ट तो इस बात का होता है कि भगवान की परिभाषा समझने वाले अनेक विद्वान भी इससे अलग हटकर के इन तथाकथित क्षद्मधारियों को अपना भगवान मानते हुए दिखाई पड़ रहे हैं | किसी को मानना अपनी श्रद्धा का विषय है परंतु किसी को भगवान कह देना शायद सनातन की परंपरा नहीं रही है | मनुष्य अपनी स्वतंत्रता के लिए जाना जाता है किसी को कुछ भी मान सकता है परंतु इतना भी ध्यान रखना चाहिए कि जिसे हम जो मान रहे हैं उसके अंदर वह योग्यता है कि नहीं |* *कलियुग के इन भगवानों को विधिवत मानिए परंतु इतना भी ध्यान रखिए कि यदि ये भगवान हैं तो इनके अंदर क्या वह षडगुण उपस्थित हैं जिनकी मान्यता हमारे शास्त्रों ने दी है |*