*मनुष्य जीवन में संयम का बहुत ही ज्यादा महत्त्व है | ईश्वर ने मनुष्य की अनुपम कृति की है | सुंदर अंग - उपांग बनाये मधुर मधुर बोलने के लिए मधुर वाणी प्रदान की | वाणी का वरदान मनुष्य को ईश्वर द्वारा इस उद्देश्य से प्रदान किया है कि वह जो कुछ भी बोले उसके पहले गहन चिंतन कर ले तत्पश्चात वाणी के माध्यम स
*सम्पूर्ण विश्व में भारत ही ऐसा देश है जहाँ से "वसुधैव कुटुम्बकम्" का उद्घोष हुआ | हमारे मनीषियों ने ऐसा उद्घोष यदि किया तो उसके पीछे प्रमुख कारण यह था कि मानव जीवन में कुटुम्ब अर्थात परिवार का महत्त्वपूर्ण व विशिष्ट स्थान है | देवी - देवताओं से लेकर ऋषि - मुनियों तक एवं राजा - महाराजाओं से लेकर असु
*परमात्मा द्वारा सृजित यह सृष्टि बड़ी ही विचित्र है | ईश्वर ने चौरासी लाख योनियों की रचना की ! पशु , पक्षी , मनुष्य , जलचर आदि जीवों का सृजन किया | कहने को तो यह सभी एक जैसे हैं परंतु विचित्रता यही है कि एक मनुष्य का चेहरा दूसरे मनुष्य से नहीं मिलता है | असंख्य प्रकार के जीव हैं , एक ही योनि के होन
*इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य अनेक प्रकार के घटनाक्रम से होते हुए जीवन की यात्रा पूरी करता है | कभी - कभी मनुष्य की जीवनयात्रा में ऐसा भी पड़ाव आता है कि वह किंकर्तव्यविमूढ़ सा होकर विचलित होने लगता है | यहीं पर मनुष्य यदि सत्यशील व दृढ़प्रतिज्ञ नहीं है तो वह अपने सकारात्मक मार्गों का त्याग
*इस धरा धाम पर मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनकर स्थापित हुआ | अपने विकासक्रम में मनुष्य समाज में रहकर के , सामाजिक संगठन बनाकर निरंतर प्रगति की दिशा में अग्रसर रहा | किसी भी समाज में संगठन के प्रति मनुष्य का दायित्व एवं उसकी भूमिका इस बात पर निर्भर करती है कि मनुष्य के अंदर इस जीवन रूपी उद्यान को सुग
*आदिकाल में जब इस सृष्टि में मनुष्य का प्रादुर्भाव हुआ तो उनको जीवन जीने के लिए वेदों का सहारा लेना पड़ा | सर्वप्रथम हमारे सप्तऋषियों ने वेद की रचनाओं से मनुष्य के जीवन जीने में सहयोगी नीतियों / रीतियों का प्रतिपादन किया जिन्हें "वेदरीति" का नाम दिया गया | फिर धीरे धीरे धराधाम पर मनुष्य का विस्तार ह
*सनातन धर्म में मानव जीवन को चार आश्रमों के माध्यम से प्रतिपादित किया गया है | ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ एवं सन्यास | सनातन धर्म में आश्रम व्यवस्था विशेष महत्व रखती है | यही आश्रम व्यवस्था मनुष्य के क्रमिक विकास के चार सोपान हैं , जिनमें धर्म , अर्थ , काम एवं मोक्ष आदि पुरुषार्थ चतुष्टय के समन
*हमारा देश भारत सदैव से एक सशक्त राष्ट्र रहा है | हमारा इतिहास बताता है कि हमारे देश भारत में अनेक ऐसे सम्राट हुए हैं जिन्होंने संपूर्ण पृथ्वी पर शासन किया है | पृथ्वी ही नहीं उन्होंने स्वर्ग तक की यात्रा करके वहाँ भी इन्द्रपद को सुशोभित करके शासन किया है | हमारे देश का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा ह
*इस धरा धाम पर चौरासी योनियों का वर्णन मिलता है , इनमें से सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनकर मानव ने अनेक कीर्तिमान स्थापित किये | मनुष्य परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति है , सृष्टि के संचालन में सहयोग करने के लिए ईश्वर ने नर के साथ नारी का जोड़ा भी उत्पन्न किया और हमारे सनातन ऋषियों विवाह का अद्भुत विधान बनाया
*अपने संपूर्ण जीवन काल में मनुष्य में अनेक गुणों का प्रादुर्भाव होता है | अपने गुणों के माध्यम से ही मनुष्य समाज में सम्मान या अपमान अर्जित करता है | यदि मनुष्य के गुणों की बात की जाए तो धैर्य मानव जीवन में एक ऐसा गुण है जिसके गर्भ से शेष सभी गुण प्रस्फुटित होते हैं | यदि किसी में धैर्य नहीं है तो
*सम्पूर्ण सृष्टि परमपिता परमात्मा के द्वारा निर्मित है | इस सृष्टि में वन , नदियाँ , पहाड़ , जलचर , थलचर एवं नभचर सब ईश्वर को समान रूप से प्रिय हैं | मनुष्य उस ईश्वर का युवराज कहा जाता है | युवराज का अर्थ है राजा का उत्तराधिकारी जो राजा द्वारा संरक्षित वस्तुओं का संरक्षण करने का उत्तरदायित्व सम्हाले
*सृष्टि के आदिकाल में कश्यप जी की पत्नियों से समस्त सृष्टि का प्रादुर्भाव हुआ | जलचर , थलचर , नभचर , पेड़ , पौधे , पशु , पक्षी , देव , दानव , मानव आदि का जन्म कश्यप जी की पत्नियों से ही हुई | अपने कर्मों के माध्यम से अदिति के पुत्र देवता , दिति के पुत्र दैत्य एवं मुनि के पुत्र मनुष्य कहलाये | अपने स
किन्नरों को ही हमेशा समाज में अलग ही नज़रों से देखा जाता है समाज में इतने बदलाव होने के बावजूद इन लोगों को वो सम्मान नहीं मिला जो मिलना चाहिए। आपने किन्नरों को कई जगह देखा होगा. कभी चौराहों पर तो कभी किसी ट्रेन में. तो कभी यूं ही बाज़ार में. पर शायद कभी इन्हें आम नज़रों
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *सनातन धर्म आदिकाल से मानवमात्र को एक समान मानते हुए "वसुधैव कुटुम्बकम्" का उद्घोष करता रहा है | वैदिककाल में वर्णव्यवस्था बनाकर समाज को संचालित करने का प्रयास किया गया था | इस वर्णव्यवस्था में ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शूद्र मनुष्य अपने कर्मों के आधार पर बनता था
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !! *किसी भी राष्ट्र , समाज व सभ्यता की पहचान उसकी शिक्षा से होती है | शिक्षा मानव मात्र की आवश्यक आवश्यकता है , इस बात को ध्यान में रखते हुए सनातन के मनीषियों ने समाज को शिक्षित करने का उद्देश्य लेकर स्थान - स्थान पर नि:शुल्क ज्ञान बाँटने का कार्य गुरुकुलों के माध्यम से क
*इस धराधाम पर मनुष्य का एक दिव्य इतिहास रहा है | मनुष्य के भीतर कई गुण होते हैं इन गुणों में मनुष्य की गंभीरता एवं सहनशीलता मनुष्य को दिव्य बनाती है | मनुष्य को गंभीर होने के साथ सहनशील भी होना पड़ता है यही गंभीरता एवं सहनशीलता मनुष्य को महामानव बनाती है | मथुरा में जन्म लेकर गोकुल आने के बाद कंस के
*इस संसार में मनुष्य समय-समय पर सुख - दुख , प्रसन्नता एवं कष्ट का अनुभव करता रहता है | संसार में कई प्रकार के कष्टों से मनुष्य घिरा हुआ है परंतु मुख्यतः दो प्रकार के कष्ट होते हैं एक शारीरिक कष्ट और दूसरा मानसिक कष्ट | शारीरिक कष्ट से मनुष्य यदि ग्रसित है तो वह औषधि ले करके अपना कष्ट मिटा सकता है पर
*भारत एक कृषि प्रधान देश है | यहां समय-समय पर त्यौहार एवं पर्व मनाए जाते रहे हैं | यह सभी पर्व एवं त्योहार कृषि एवं ऋतुओं पर विशेष रूप से आधारित होते थे | इन त्योहारों में परंपरा के साथ साथ आस्था भी जुड़ी होती थी | हमारे त्योहार हमारी संस्कृति का दर्पण होते थे , जो कि समाज में आपसी मेल मिलाप का आधार
वक़्त का विप्लव सड़क पर प्रसव राजधानी में पथरीला ज़मीर कराहती बेघर नारी झेलती जनवरी की ठण्ड और प्रसव-पीर प्रसवोपराँत जच्चा-बच्चा 18 घँटे तड़पे सड़क पर ज़माने से लड़ने पहुँचाये गये अस्पताल के बिस्तर परहालात प्रतिकूल फिर भी नहीं टूटी साँसेंकरतीं वक़्त से दो-दो हाथ जिजीविषा की फाँसें जब एनजीओ उठाते हैं दीन
*हमारे देश भारत में कई जाति / सम्प्रदाय के लोग रहते हैं | कई प्रदेशों की विभिन्न संस्कृतियों / सभ्यताओं का मिश्रण यहाँ देखने को मिलता है | सबकी वेशभूषा , रहन - सहन एवं भाषायें भी भिन्न हैं | प्रत्येक प्रदेश की अपनी एक अलग मातृभाषा भी यहाँ देखने को मिलती है | हमारी राष्ट्रभाषा तो हिन्दी है परंतु भिन्