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*योनियों भ्रमण करने के बाद जीव को इन योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानव योनि प्राप्त होती है | मनुष्य जन्म लेने के बाद जीव की पहचान उसके नाम से होती है | मानव जीवन में नाम का बड़ा प्रभाव होता है | आदिकाल में पौराणिक आदर्शों के नाम पर अपने बच्चों का नाम रखने की प्रथा रही है | हमारे पूर्वजों का ऐसा मानना थ

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*सकल सृष्टि में परमात्मा द्वारा बनाई गई चौरासी लाख योनि भ्रमण करती हैं | इन सभी योनियों में सर्वश्रेष्ठ बन करके मानव योनि आयी | इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य का एक लक्ष्य होता है | यह अलग बात है कि वह अपने लक्ष्य को पूरा कर सके या ना कर सके परंतु मनुष्य के जन्म लेते ही उसके साथ उसके

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*अखिलनियंता , अखिल ब्रह्मांड नायक परमपिता परमेश्वर द्वारा रचित सृष्टि का विस्तार अनंत है | इस अनंत विस्तार के संतुलन को बनाए रखने के लिए परमात्मा ने मनुष्य को यह दायित्व सौंपा है | परमात्मा ने मनुष्य को जितना दे दिया है उतना अन्य प्राणी को नहीं दिया है | चाहे वह मानवीय शरीर की अतुलनीय शारीरिक संरचन

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*ईश्वर ने मनुष्य को इस संसार में सारी सुख सुविधाएं प्रदान कर रखी है | कोई भी ऐसी सुविधा नहीं बची है जो ईश्वर ने मनुष्य को न दी हो | सब कुछ इस धरा धाम पर विद्यमान है आवश्यकता है कर्म करने की | इतना सब कुछ देने के बाद भी मनुष्य आज तक संतुष्ट नहीं हो पाया | मानव जीवन में सदैव कुछ ना कुछ अपूर्ण ही रहा ह

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*इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य अपने परिवार के संस्कारों के अनुसार अपना जीवन यापन करने का विचार करता है | प्रत्येक माता पिता की यही इच्छा होती है कि हमारी संतान किसी योग्य बन करके समाज में स्थापित हो | जिस प्रकार परिवार के संस्कार होते हैं , शिक्षा होती है उसी प्रकार नवजात शिशु का सं

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*श्रृष्टि का विस्तार करने के लिए ब्रह्मा जी ने कई बार सृष्टि की परंतु सृष्टि गतिमान ना हो सकी , तब भगवान शिव के संकेत से उन्होंने मनु - शतरूपा का जोड़ा उत्पन्न करके मैथुनी सृष्टि को महत्व दिया , और मनुष्य इस संसार में आया | श्रृष्टि को विस्तारित करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को पुत्र की आवश्यकता पड़ी

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*आदिकाल से इस धराधाम पर ब्राह्मण पूज्यनीय रहा है | सृष्टि संचालन ब्राह्मणों का महत्वपूर्ण योगदान रहा वेदों को पढ़ कर दो उसके माध्यम से ज्ञानार्जन कर मानव मात्र का कल्याण कैसे हो ब्राह्मण सदैव यही विचार किया करता था | अपने इसी स्वतंत्र विचार के कारण ब्राह्मण पृथ्वी की धुरी कहा गया | ब्राह्मण कभी भी इ

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*सृष्टि के प्रारम्भ में मानव का सृजन करते हुए सबसे पहले ब्रह्मा जी ने अपने अंश से जब मनुष्य बनाया तो वह ब्राह्मण कहलाया | अपने सत्कर्मों के कारण ब्राह्मण सदैव से पूज्यनीय रहा है | वेदमंत्रों के ज्ञान से तपश्चर्या करके आत्मिक एवं आध्यात्मिक बल प्राप्त कर ब्राह्मण आकाशमार्ग में तो विचरण करता ही था बल्

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*मानव जीवन एक यात्रा है | जन्म लेने के बाद मनुष्य अपने जीवनकाल में भाँति - भाँति के क्रिया - कलाप करते हुए एक निश्चित दूरी तय करके अपनी जीवनयात्रा पूरी करता है | मनुष्य के जन्म लेने के बाद से ही जीवन पर्यन्त उसे पग - पग पर मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ती है | प्रारम्भकाल में यह मार्गदर्शन माँ तो आगे चल

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*आदिकाल से ही यह संपूर्ण सृष्टि दो भागों में बटी हुई है :- सकारात्मक एवं नकारात्मक | वैदिक काल में सकारात्मक शक्तियों को देवतुल्य एवं नकारात्मक शक्तियों को असुर की संज्ञा दी गयी | देवतुल्य उसी को माना गया है जो जीवमात्र का कल्याण करने हेतु सकारात्मक कार्य करें | मनुष्य एवं समाज का कल्याण जिस में नि

नदी तुम माँ क्यों हो...?सभ्यता की वाहक क्यों हो...?आज ज़ार-ज़ार रोती क्यों हो...? बात पुराने ज़माने की है जब गूगल जीपीएसस्मार्ट फोन कृत्रिम उपग्रह पृथ्वी के नक़्शे दिशासूचक यंत्र आदि नहीं थे एक आदमीअपने झुण्ड से जंगल की भूलभुलैया-सी पगडं

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*इस सकल सृष्टि में परमात्मा ने बड़े - बड़े पहाड़ , विशाल वृक्ष की रचना तो की ही साथ ही इस सृष्टि के सर्वोत्तम प्राणी (मनुष्य) को सृजित किया | मनुष्य ने अपना विकास करके तरह - तरह के निर्माण किये | विशाल अट्टालिकायें आज नगरों की शोभा बढा रही हैं | इन सब निर्माणों का अस्तित्व टिका है उसकी नींव पर ! यदि

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*इस धराधाम पर जन्म लेने के बाद मनुष्य रिश्तों के जाल में फंस जाता है , या यूँ कहिए कि इन्हीं रिश्तों के सहारे मनुष्य का जीवन व्यतीत होता है | वैसे तो जीवन में सभी रिश्ते महत्त्वपूर्ण होते हैं परंतु भाई - भाई का रिश्ता सबसे अनमोल कहा गया है | भाई तो संसार में किसी को भी बनाया जा सकता है परंतु एक माँ

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*मानव जीवन संघर्षों से भरा हुआ है | "जीवन एक संघर्ष है" की लोकोत्ति विश्व प्रसिद्ध है | मानव जीवन संघर्ष होते हुए भी मर्यादित कैसे व्यतीत किया जाय यदि इसका दर्शन करना है तो "मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी" के आदर्शों को देखना पड़ेगा | भगवान श्री राम अपने जीवन में चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना कर

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*सनातन धर्म में आदिकाल से पूजा - पाठ , कथा - सत्संग आदि का मानव जीवन में बड़ा महत्व रहा है | जहां पूजा पाठ करके मनुष्य आध्यात्मिक शक्ति अर्जित करता था , कुछ क्षणों के लिए भगवान का ध्यान लगा कर के उसे परम शांति का अनुभव होता था , वहीं कथाओं को सुनकर के उसके मन में तरह-तरह की जिज्ञासा उत्पन्न होती थी

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*इस सृष्टि में वैसे तो अनेकों लोक हैं , परंतु मुख्य रूप से तीन लोकों का वर्णन मिलता है | स्वर्गलोक , मृत्युलोक एवं पाताललोक | इन्हीं तीनों लोकों के अंतर्गत अनेक लोक स्थित हैं | हम लोग जहां रहते हैं उसे मृत्युलोक या पृथ्वी लोक कहा जाता है | इस सम्पूर्ण पृथ्वी पर कई छोटे -:बड़े देश स्थित हैं | और इन्ह

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*इस संसार में प्रत्येक समाज में दुर्जन एवं सज्जन साथ - साथ निवास करते हैं | साथ - साथ रहते हुए भी सज्जनों ने अपनी मर्यादा का कभी त्याग नहीं किया , और इन्हीं साधु पुरुषों के कारण हमारा समाज निरंतर उत्तरोत्तर विकासशील रहा है | इस सकलसृष्टि में समस्त जड़ चेतन की भिन्न-भिन्न मर्यादायें स्थापित की गई हैं

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मनुष्य अपने संपूर्ण जीवन काल में चार अवस्थाओं से गुजरता है | बाल्यावस्था , युवावस्था , प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था | यह चारों अवस्थाएं अपने आप में महत्वपूर्ण हैं , परंतु सबसे महत्वपूर्ण है बाल्यावस्था क्योंकि बाल्यावस्था पर मनुष्य का संपूर्ण जीवन आधारित होता है | जिस प्रकार मनुष्य का बचपन होता है

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*परमपिता परमात्मा ने मनुष्य को अनमोल उपहार के रूप में यह शरीर प्रदान किया है | इस शरीर के विषय में यह भी कहा जाता है कि यह शरीर चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ है | जिस प्रकार कहीं की यात्रा करने के लिए वाहन का ठीक होना आवश्यक होता है उसी प्रकार जीवन रूपी यात्रा पूरी करने के लिए इस शरीर रूपी वाहन

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*भारत त्यौहारों का देश है यहां समय-समय पर भांति भांति के त्यौहार मनाए जाने की परंपरा रही है | सनातन हिंदू धर्म में वैसे तो नित्य त्योहार मनाए जाते हैं परंतु होली , विजयदशमी एवं दीपावली मुख्य पर्व के रूप में आदिकाल से मनाए जाते रहे हैं | दीपावली संपूर्ण विश्व में अनेक नामों से मनाया जाने वाला त्यौ

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