सिर्फ तन की सुंदरता की ही ना
कमाना
मन को भी तुम निखारना
मेरा परिचय पूछ रहे हो, कैसे मैं पहचान बताऊँ, खिलते मुरझाते फूलों के, कैसा परिचय पत्र दिखाऊ
चाहत के सफ़र में तू बस चल,
मुझ पर खुमारी उसके चाहत की,
शोर में भी एक राहत सी |
दिल के जज्बातों से नही था
खुशियां बन जिंदगी मेरे घर आयी है,
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घर का भेदी बन
रात्री के नौ बजे थे , लोग रात्री भोजन के बाद घूमने निकले थे. रमेश भी उनमें से एक था .रोजाना की त
जो पूछे जीवनसाथी हो कैसा ,
कितना कुछ तुम्हे है