महल के कुछ बाहर बहुत ही भव्य प्रवेशद्वार था जिसपर सदा कुछ सैनिक तैनात रहते थे|
प्रवेशद्वार के अंदर आते ही प्रजा के उपस्थित रहने के लिए बहुत बडी जगह थी|
सारी प्रजा एकत्रित होकर अपने सेनापति का इंतजार कर रही थी| महाराज और अमात्य सहित सारे मंत्रीगण भी उनकी प्रतिक्षा कर रहे थे|
तभी एक दासी दौडकर महाराज के पास आयी| वो जरा डरी हुई थी|
"क्या हुआ दासी? युवराज्ञी कहा है? आ रही है ना वो??"
"महाराज! वो आ रही है! पर महल से नही! अपने होनेवाले वर के साथ!" अमात्य बोले|
"ये आप क्या कह रहे है अमात्य? " महाराज ने पूछा|
"वो देखिये!" अमात्य ने प्रवेशद्वार की ओर इशारा करते हुए कहा|
सब लोग उसी ओर देखने लगे|
तभी प्रवेशद्वार पर खडा सैनिक जोर से बोला, "सेनापति वीरभद्र पधार रहे हैं|"
सब लोग प्रवेशद्वार की ओर नजरे गडाये देख रहे थे|
तभी सेनापति वीर युवराज्ञी भैरवी के साथ अपने घोडे पर महल की ओर बढ़ते दिखाई पडे|
वीर और भैरवी एक ही घोडे पर बैठे थे| भैरवी वीर को आगे बैठी थी और वीर लगाम संभाले हुए थे|
उनके पीछे उनके साथी भी थे|
सेनापति और युवराज्ञी को देखकर सारी प्रजा उनके नाम का जयघोष करने लगी| सारा महल केवल युवराज्ञी और सेनापति की जयजयकार से गूँज उठा|
सब लोग युवराज्ञी और सेनापति को काफी समय बाद एकसाथ देख रहे थे इसलिए सारी प्रजा खुश थी|
सेनापति आकर महल के समक्ष रुक गए|
वे पहले घोडे से नीचे उतरे| भैरवी को चोट लगी थी इस कारण उसे नीचे उतरने मे दिक्कत हो रही थी| भैरवी के नीचे उतरते वक्त भैरवी का पैर फिसला और वो नीचे गिरने ही वाली थी|
भैरवी को गिरता देख महाराज की तो जान ही निकल गई| वो भैरवी को संभालने के लिए आगे बढ ही रहे थे की अमात्य ने उन्हे रोक दिया|
अमात्य की इस कृती पर महाराज ने उनकी ओर चौक कर देखा| तभी अमात्य ने इशारे से ही महाराज को भैरवी के ओर देखने के लिए कहा|
जब महाराज ने उस ओर देखा तो वीर ने भैरवी को संभाल लिया था| फिर भैरवी को ठीक से उतारने के लिए वो खुद उनके पैरो के नीचे झुक गया|
"आइये भैरवी! हमारी पीठ पर पैर रखकर नीचे उतरिये!" वीर ने उससे कहा|
"वीर! वीर ये आप क्या कर रहे हैं? हम ये नही कर सकते!आप पर पैर देना? हम ये किसी जनम मे भी नहीं कर सकते?" भैरवी ने भी कह दिया|
"तो क्या अब आप हमारी बात टालेंगी भैरवी?" वीर के इस सवाल का उसके पास जवाब नहीं था|
तब भैरवी ने उसकी पीठ पर अपना पैर रखा और वो नीचे उतरी|
सब लोग वीर का भैरवी के लिए प्रेम देखकर गद्गद हो गए|
"अब आप युवराज्ञी की चिंता ना करे महाराज! वे एकदम सुरक्षित है वीर के साथ! युवराज्ञी के लिए उनसे अधिक सुयोग्य वर इस संसार मे नही है| इसलिए अब आप निश्चिंत हो जाइये|" अमात्य महाराज से कह रहे थे| महाराज भी उनकी बात से सहमत थे|
वीर ने जल्दी से आगे आकर महाराज और अमात्य से आशिष लिए|
महाराज ने उन्हे प्यार से गले लगा लिया|
"हमे तो समझ नही आ रहा है कि हम आपका धन्यवाद करे तो किस प्रकार से करे| आपने जो अहसान हमारे और हमारे इस राज्य पर किया है उसके लिए हम आपके सदा त्रृणी रहेंगे|" महाराज ने वीर के आगे हाथ जोड लिये|
"ये आप क्या कर रहे हैं महाराज? आप तो हमे शर्मिंदा कर रहे हैं| कृपा कर ऐसा मत किजीये| जिस प्रकार युवराज्ञी आपकी पुत्री है हम भी तो आपके पुत्र है और पिता कभी पुत्र को धन्यवाद नही कहता| वो पुत्र को प्रेम से गले लगाता है!" वीर के ऐसा कहते ही महाराज ने तुरंत उसे गले लगा लिया| उन्होने भैरवी को भी अपने पास बुलाया|
महाराज ने दोनो को गले से लगा लिया| राज्य का हर एक इंसान खुश नजर आ रहा था| चारो ओर जयजयकार गूँजने लगे| पुष्पवर्षा होने लगी|
महाराज की नजर भैरवी के घावो पर पडी|
"बेटा भैरवी! ये सब क्या है? इतनी चोट कैसे लगी आपको?" महाराज को चिंता होने लगी|
"पिताजी! हम बिल्कुल ठीक है| दरअसल हम शिकार पर गए थे| वही पर हमारा एक जंगली शेर से पाला पड गया था| आप चिंता मत करीये! हम ठीक है!" भैरवी ने महाराज को समझा दिया|
"राजन हमे लगता है आपको वह घोषणा कर देनी चाहिए!" अमात्य ने महाराज से कहा|
"आप सब के प्रेम के लिए मै आपका बहुत आभारी हू| जैसे कि आप सब लोग जानते हैं| सेनापति वीरभद्र ने हमारे राज्य पर मंडराते कंचनप्रदेश नाम के प्रचंड संकट से अकेले लडकर हमारे राज्य को सुरक्षित किया है| आज हम यहा सुरक्षित खडे है| ये इनके और इनके साथीयो कि बदौलत है|
इसी कारण सेनापति और उनके सैनिकों की वीरता के उपलक्ष्य मे पूर्णिमा की रात्रि भव्य समारोह के आयोजन किया जायेगा|
इस समारोह मे सबकी उपस्थिती अति आवश्यक है| क्योंकि उस समारोह मे हम एक अति महत्त्वपूर्ण घोषणा करने वाले है|
तो इस समारोह मे मै महाराज चंद्रसेन आप सबको स्नेहपूर्ण आमंत्रित करता हूँ!" महाराज ने घोषणा की|
ये सुनकर सब लोग बहुत खुश हो गए|
महाराज और सेनापति की जयजयकार होने लगी|
प्रजा मे से कुछ बच्चे आये और वीर को फूल देने लगे| वीर ने भी प्यार से उन्हे गले लगा लिया|
भैरवी तो वीर की लोकप्रियता से बेहद खुश थी|
महाराज चंद्रसेन सहित सारे लोग वीर के आते ही आसपास के राज्यो को निमंत्रण पत्र भेजने मे व्यस्त हो गए|
महाराज यदि सबसे ज्यादा किसी को बुलाने के लिए आतुर थे तो वो महाराज त्रृतूराज के लिए!
वो दोनो बहुत ही करीबी दोस्त थे| साथ ही महाराज युवराज्ञी की विवाह घोषणा को लेकर भी बहुत उत्साहित थे| सभी बडे बडे राज्यो को निमंत्रण भेजने का कार्य उसी दिन शुरू कर दिया गया|
पर राजगुरू अपने कक्ष मे बहुत सारे कागजों के बीच बहुत ज्यादा चिंता मे नजर आ रहे थे|
"हे भोलेनाथ! अवश्य मुझसे ही कोई गलती हो रही होंगी!" ये कहकर वो फिरसे कागजों मे देखकर कुछ गणित करने लगे|
" ये... ये... ये कैसे?
हे प्रभु! ये नही हो सकता! मुझे तत्काल इस विषय मे महाराज से वार्तालाप करना होगा|" ये कहकर वो तुरंत ही महाराज के कक्ष की तरफ निकल पडे|
वीर भैरवी दोनो एक दूसरे के साथ वक्त बिताना चाहते थे पर जब से वीर लौटा था तब से वो कई लोगों से घिरा हुआ था| उसे वक्त ही नहीं मिल पा रहा था भैरवी के लिए|
ऐसे ही रात हो गई|
भैरवी आज भी अपने कमरे की खिड़की पर खडी होकर चाँद को देख रही थी| उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट थी| तभी उसका ध्यान उसके कमरे से कैलाशधाम पर्बत पर पडा| जिसपर महाराज ने उसके जन्म के समय महापूजा करवायी थी|
उस पर्बत की दूसरी ओर से अजीब सी रौशनी दिखाई पडती थी| वो उसी को देख रही थी|
"आइये वीर! मिल लिये आप सबसे?" भैरवी बोली|
"अरे भैरवी! आपको फिर से पता चल गया? कैसे कर लेती है आप ये? मेरे आने की आहट कैसे पहचान लेती है आप?" वीर बोला|
"हमने कहा था ना कि आपकी धडकन हम दूर से ही सुन सकते हैं|" भैरवी उसी पर्बत की ओर देख रही थी|
वीर ने भैरवी को पीछे से ही बाहो मे भर लिया और गाल पर चूम लिया|
"क्या देख रही है आप?" वीर ने पूछा|
"वो पहाड़ देख रहे हैं आप वीर?"
"वो? जिसके पीछे से वो रौशनी आ रही है?" वीर ने पूछा|
"हाँ! वही! मैने सुना है कि वहा शिवजी और माँ गौरी का बहुत बडा मंदीर है और जो भी जोडा वहा जाकर पूर्णिमा के रात को उनका दर्शन कर लेता है उन्हें स्वयं शिव-शक्ति अपने आशिष देकर सात जन्मो के लिए एकसाथ बाँध देते है|
मै भी वहा जाना चाहती हू वीर! आप चलेंगे ना मेरे साथ?" भैरवी ने वीर की तरफ देखकर पूछा|
"आपको पूछने की जरुरत नहीं है भैरवी! हमारी युवराज्ञी का आदेश सर आँखो पर!" वीर भैरवी का हाथ अपने हाथ मे लेकर घुटनो पर बैठते हुए बोला|
उसने भैरवी के हाथ को चूम लिया| भैरवी भी बहुत शर्मा गई थी| उसने अपनी आँखें बंद कर ली|
"वीर! आप उठीये! हमे शर्मिंदा तो मत किजीये!" भैरवी ने उसे उठाया|
वीर ने भैरवी का चेहरा अपनी हथेली मे पकडा|
"आप मुझसे गुस्सा तो नही है ना? हमे लग रहा था की हम आपको वक्त नही दे पाये तो आप बहुत गुस्सा होंगी!" वीर पूछ रहा था|
"ये आप क्या कह रहे हो वीर? हम आपसे गुस्सा नही है| हम जानते हैं कि यहा और भी कई लोग है जो आपसे हमसे भी ज्यादा प्यार करते हैं| हम तो ये सब देखकर बहुत खुश है| हम भला गुस्सा क्यो होंगे? आप भी ना!" भैरवी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया|
वीर ने ये सुनते ही भैरवी के माथे पर अपने होठ टीका दिये|
"हम बहुत भाग्यशाली है भैरवी कि आप हमे मिली! वरना पता नहीं हमारा क्या होता?" वीर ने भी हसते हुए कहा|
वीर ने भैरवी की कमर मे अपना हाथ डाला और उसे अपने करीब खींचा| पल भर मे ही उसने अपने होठ भैरवी के होठों मे घोल दिये|
भैरवी ने भी अपनी आँखें बंद कर ली थी| उसने वीर को कसकर पकड लिया|
वीर जब भैरवी से अलग हुआ भैरवी की आँखें तब भी बंद थी| उसने अपनी आँखें खोली तो वीर उसकी ही ओर देख रहा था|
भैरवी शर्माकर वहा से जाने लगी पर वीर ने उसका दुपट्टा पकड लिया| भैरवी रुक गई|
वीर धीरे धीरे उसका दुपट्टा अपनी हथेली पर लपेटते हुए उसकी ओर बढने लगा|
जैसे जैसे वीर उसके करीब आ रहा था, भैरवी की धडकने तेज हो रही थी|
वीर ने भैरवी को अपनी ओर मोडा| उसकी गर्दन शरम से नीचे झुक गई थी| वीर ने उसका चेहरा उपर किया और उसे कसकर गले से लगा लिया|
जैसे ही वीर ने उसे गले लगाया, "आह्ह्ह्ह!" वो दर्द से करहा उठी|
भैरवी की आवाज सुनकर वीर की तो साँस ही थम गई|
"भैरवी! क्या हुआ?" वीर डर गया था|
उसने भैरवी के पीठ पर जो दुपट्टा था वो हटाया|
सुबह भैरवी को जो चोट लगी थी उससे थोडा खून निकल रहा था|
"भैरवी! ये आपकी चोट से खून निकल रहा है! आप राजवैद के पास नही गई थी?"
"अरे वीर! कोई बात नहीं! हम ठीक है! इतनी भी बडी चोट नही है!
" हमने पूछा क्या आप राजवैद के पास गई थी?" अब वीर ने जरा आवाज चढाकर ही पूछा|
भैरवी भी जरा सहम गयी| उसने बस गर्दन हिला कर मना कर दिया|
ये देखकर वीर ने तुरंत पद्मा को आवाज लगाई|
उसने पद्मा को राजवैद के पास से भैरवी के घावो के लिए दवाई लाने के लिए कहा| पद्मा दवा लेने चली गई|
"भैरवी! आप भी ना! आप आइये मेरे साथ!" वीर ने कहा|
"लेकिन कहा वीर?" भैरवी ने वीर की बात काँटते हुए पूछा|
"अब आप कुछ नही बोलेंगी! आप सिर्फ मेरी बात सुनेंगी! समझी आप?" वीर ने भैरवी को प्यार भरी डाँट लगाई| वो भी चूप हो गई|
वीर ने उसे हलके से अपनी गोद में उठा लिया|
"वीर!"
"हमने कहा ना कि आप कुछ नही कहेंगी! सिर्फ हमारी बात सुनेंगी! तो चूप रहिये!" वीर ने फिरसे उसे डाँट लगाई|
वो भैरवी को उठाकर उसके बिस्तर तक ले गया|
उसने भैरवी को बिस्तर पर बिठाया|
तभी पद्मा दवा लेकर आ गई| वीर ने उसे बाहर भेज दिया|
वीर ने वो दवा नीचे रख दी|
वो भैरवी के करीब गया और पहले उसकी कमर से उसका दुपट्टा हटाया| उसकी अनजानी छुअन से भैरवी के रौंगटे खडे हो गए| फिर वीर उसके कंधे से उसका दुपट्टा हटाने लगा|
"वीर! ये आप?"
इससे पहले की भैरवी आगे कुछ बोले वीर ने उसके होठो पर अपनी उँगली रख दी|
"श्श्श्श..... " वीर ने धीमी आवाज मे कहा|
भैरवी चूप हो गई|
वीर ने उसका दुपट्टा हटाया|
भैरवी को तो बहुत शर्म आ रही थी| उसने अपनी पलके झुका ली|
"भैरवी! आइये! मै आपको दवाई लगा देता हू!" वीर की ये बात सुनते ही भैरवी ने उसकी ओर देखा|
उसकी आँखों मे भैरवी को उसके लिए बेइंतेहा प्यार और ढेर सारी चिंता नजर आयी इस लिए वो बिना कुछ कहे अपने बिस्तर पर पेट के बल सो गई|
खिडकी से आती चाँद की रौशनी भैरवी के सुंदर शरीर पर पड रही थी|
ऐसा लग रहा था मानो चाँद कि किरणे उसकी कांती को और भी निखार रही हो|
वीर ने थोडी सी दवा अपनी हथेली मे ली और भैरवी के पीठ पर लगे घाव पर लगाने लगा| जैसे ही वीर की उँगलियाँ उसके घाव पर लगी वैसे ही भैरवी को थोडा दर्द हुआ| वो कराह उठी|
"भैरवी बहुत दर्द हो रहा है?
हो ही रहा होगा!
हमे माफ कर दिजीये भैरवी! ये सारे घाव हमने ही आपको दिये है!" वीर ने कहा|
तब उसकी आँखों में हलका पानी था| उसकी आवाज़ भी भारी हो गई थी|
वीर ने साथ ही साथ भैरवी के कंधो पर और कमर पर लगी चोटो पर भी मरहम लगा दिया|
"हमे दर्द नही हो रहा है वीर! आप जरा भी चिंता मत करीये! ये घाव जल्द ही ठीक हो जायेंगे! आप की दी हर वस्तु हमे प्रिय है वीर! ये घाव भी!" भैरवी ने कहा|
ये बात सुनकर वीर के मन मे भैरवी के लिए प्यार और भी बढ़ गया|
उसने धीरे से जाकर भैरवी के गालो पर अपने होठ टिका दिये|
"हमारी तो सबसे प्रिय आप ही है| अब आप और ये राज्य ही हमारा परिवार है और हम सदैव अपने परिवार की रक्षा करेंगे| अब आप सो जाइए! हम कल सवेरे मिलेंगे भैरवी! अब रात बहुत हो गई है| आप आराम करीये|"
वीर ने भैरवी से विदा ली और वो भी अपने कक्ष मे चला गया पर जाते जाते वो पद्मा को भैरवी का खयाल रखने के लिए कह गया|
पर भैरवी तो अब भी वीर के ही प्रभाव मे थी| वीर के साथ अपने सुनहरे भविष्य के सपने सजाते सजाते उसे कब नींद आ गई उसे पता ही नही चला|
उधर राजगुरू तत्काल महाराज के कक्ष मे पहुंचे|
"इतनी रात्रि आपको कष्ट देने के लिए क्षमा चाहता हूँ महाराज!" वे बोले|
"अमात्य! आप यहा? इस समय? आपने क्यो कष्ट किया? मुझे बुला लिया होता!" महाराज बोले|
"महाराज! किसी गंभीर विषय पर चर्चा करनी है आपसेे! "
अमात्य बोले|
"गंभीर विषय? सब ठीक तो है ना अमात्य? किस विषय मे है बात? " महाराज डर गए|
"राजन! मै यहा युवराज्ञी और वीर के विषय मे बात करने आया हू|"
"अमात्य आप मुझे सब विस्तार से बताइये| मुझे बहुत चिंता हो रही है|" महाराज के चेहरे पर चिंता साफ दिखाई दे रही थी|
"राजन! आप वीर और भैरवी के विवाह की घोषणा करने वाले है| इसलिए हमने आज दोनो की कुंडलिया मिलाकर देखी|"
"सब ठीक तो है ना?कुंडलियो मे कोई दोष है? या विवाह मे व्यत्यय?" महाराज अमात्य की बात काटते हुए बोले|
"जी नही राजन! ऐसा कुछ नहीं है!
अपितु सत्य कहू तो ये कुंडलिया साक्षात शिव-शक्ति ने अपने हाथों से लिखकर भेजी है| साक्षात माँ गौरी का जन्म हुआ है आपके घर!
और वीरभद्र! उनकी वीरता से आप परहेज नही कर सकते! जिस प्रकार वीरभद्र रुपी महादेव माँ गौरी की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहे हैं|
वैसे ही इस जनम मे वीर भैरवी के वीरभद्र है| ये दोनो कुंडलिया एक दूसरे के लिए ही बनी है| जिस प्रकार शक्ति शिव के लिए!" ये सब बताते वक्त अमात्य के चेहरे पर दिव्य तेज था|
"ये तो आनंद की बात है अमात्य! तो इसमे चिंता का विषय क्या है? "
"चिंता का विषय ये नही है महाराज पर चिंता का विषय शीघ्र ही हमारे द्वार पर दस्तक देने वाला है|
आने वाला समय इन दोनो पर भारी है| जितना शीघ्र हो सके हमे दोनो का विवाह करवाना होगा|
क्या आपको याद है महाराज? जिस दिन युवराज्ञी भैरवी का जन्म हुआ था उस दिन नवग्रहो ने अपनी दिशा बदल दी थी और इसी शुभ पर्व पर आपके घर माँ गौरी की कृपा हुई थी!
एक माह पश्चात वही शुभ मुहूर्त है महाराज! मुझे लगता है कि इससे अधिक शुभ मुहूर्त और कोई नही हो सकता! हमे इसी मुहूर्त पर वीर-भैरवी का विवाह संपन्न करवाना चाहिये और अति महत्त्वपूर्ण बात महाराज!
प्रभु भोलेनाथ ना करे की ऐसा हो पर यदि इनका विवाह उस मुहूर्त पर ना हुआ तो कदाचित इस जन्म मे वे दोनो फिर कभी नही मिल पायेंगे और दोनो एक-दूसरे से विलग होकर जिवीत नही रह पायेंगे और सारा राज्य इस बात से भलिभाँती परिचित है कि हमारे राज्य का वैभव उन्ही से है|
यदि वे नही तो हमारा राज्य भी नहीं और ये आने वाला संकट कदाचित उन दोनो को विलग कर दे!" अमात्य ने एक ही दम मे सब कुछ कह दिया|
अमात्य की बाते सुनकर महाराज तो सुन्न रह गए|
" आप जैसा कहेंगे अमात्य हम वैसा करेंगे! केवल हमारी और पुत्री और हमारे राज्य को बचा लिजीये! " महाराज ने राजगुरू के समक्ष हाथ जोड लिये|
"हम विधी के विधान को तो नही बदल सकते किंतु इस संकट को टालने का प्रयास अवश्य कर सकते हैं और इसे टालने का केवल एक ही उपाय है कि हम शीघ्रती शीघ्र वीर भैरवी का विवाह करवा दे| आप केवल इस बात का ध्यान रखिए की मेरे बताये मुहूर्त पर वीर-भैरवी का विवाह संपन्न हो|" अमात्य बोले|
"आप जैसा कहेंगे वैसा ही होगा अमात्य| बस मेरी पुत्री पर आया संकट टल जाये|" महाराज हाथ जोडकर बोले|
"शिवजी की कृपा रही तो सबका कल्याण होगा! " अमात्य इतना कहकर वहा से चले गए|
किंतु महाराज को अब बहुत चिंता हो रही थी| उन्होने ठान लिया की वो जल्द से जल्द विवाह की सारी तैयारीयाँ करके युवराज्ञी का विवाह संपन्न करवायेंगे|
वीर के कानो पर आरती की आवाज पड रही थी| उसी आवाज से उनकी आँख खुली|
आज बहुत समय बाद वीर की आँखे इस प्रकार आरती की आवाज से खुली थी|
वो नींद से जाग गए| वो आवाज़ सुनते ही उनके चेहरे पर अलग ही चमक आ गई| वो बिस्तर से उठे और सीधा महल के बाहर जो शिवजी का मंदिर था वहा आ गए|
महल के सारे लोग, दास-दासीयाँ मंदिर मे खडे थे|
वीर सबको चिरते हुए आगे आये| वहा पर अमात्य और महाराज भी थे|
वीर ने उनको प्रणाम किया और आरती करने लगे|
भैरवी आरती गा रही थी, शिवजी की आरती कर रही थी|
वीर ने अपनी आँखें बंद कर ली और भैरवी की आवाज अपनी कानो मे संजोकर रखने लगा|
जैसे ही आरती खत्म हुई| भैरवी ने सबको आरती दी, प्रसाद दिया|
भैरवी वीर को देखकर खुश थी| आज वो कई महिनो बाद उस मंदीर मे फिरसे लौटकर आया था|
वीर भैरवी दोनो ने अमात्य और महाराज के पैर छूए|
उन्होने भी दोनो को बहुत सारे आशीर्वाद दिये|
"आप जानते है वीर! जिस मुहिम पर आप गए थे वहा से आपका जिंदा लौटकर आना लगभग असंभव था| मैने आपके ग्रह नक्षत्रो की दशा देखी थी किंतु यदि आप फिरसे इस महल मे जिवीत लौटकर आ पाये है तो वो हमारी युवराज्ञी भैरवी की बदौलत!" अमात्य बताने लगे|
"अमात्य! नही!" भैरवी ने उन्हे चूप कराना चाहा|
"मतलब? मै कुछ समझा नही राजगुरू!" वीर ने पूछा|
"आप सकुशल लौट आये इसलिए युवराज्ञी भैरवी ने छह माह तक उपवास किये है| जब देखो तब ये इस मंदिर मे ही नजर आती थी| आपकी कुशलता के लिए प्रार्थना करती! इन्ही की भक्ति है ये की आप आज सकुशल यहा है वरना आपका वहा से जिवीत लौटना असंभव था|" अमात्य बता रहे थे|
ये सुनते ही वीर की आँख भर आयी|
पर भैरवी ने अपनी गर्दन नीचे झूका ली|
"सच मे मै बहुत भाग्यशाली हू कि मुझे आप मिली है भैरवी! मै सदैव कहता रहता हूं कि मै आपकी रक्षा करूंगा पर सच कहू तो आपने मेरी रक्षा की है|
आप नही जानती पर मेरे जीवन का हिस्सा बनकर आपने मुझपर बहुत बडा एहसान किया है| जब मेरी माँ मुझे छोड़कर चली गई तब आप ही थी जिन्होंने हमे संभाला| जब हमारे पिता हमे छोड़कर चले गए तब भी आप ही ने हमे इस दुख से उभरने की ताकत दी| हमारे जीवन के हर बूरे वक्त मे आप ही थी जो हमारे साथ रही, हमारे साथ चली| आप हमारे लिए शिवजी का वो तोहफा है जिसे हमने कभी माँगा ही नही पर जिसे पाकर हम कभी अपने से अलग नही करेंगे|" वीर अपने घुटनों पर बैठकर भैरवी के हाथ पकडकर उनपर अपना सिर रखकर रोने लगा|
उनका प्रेम देखकर वहा खडे हर व्यक्ति की आँखे नम हो गई|
इसी प्रकार कुछ दिन बित गए और समारोह तीन दिनपर आ गया|
सारे महल मे समारोह की जोरदार तैयारीयाँ चल रही थी| कुछ राजा महाराजा भी पधारने लगे थे|
तभी महल मे कुछ प्रजागण आये| वे युवराज्ञी से मिलना चाहते थे पर द्वारपाल उन्हे अंदर नही जाने दे रहा था|
ये सब युवराज्ञी ने देख लिया|
उसने द्वारपाल को बहुत फटकार लगायी और आदेश दिया की आगे से वो किसी भी इंसान को उससे मिलने से ना रोके|
भैरवी उन लोगो को अपने साथ लेकर गयी| उन्होने भैरवी के सामने अपनी फ़रियाद रखी|
उन लोगो का कहना था कि जब वो लोग पीने का पानी लेने जंगल के कुए की ओर जाते है तब कुछ लुटैरे उनका सारा सामान लुट लेते है और साथ ही उनके साथ मारपीट भी करते है| कई बार तो वो औरतो को भी उठाकर ले जाते हैं|
वो लोग बहुत परेशानी में थे|
पर युवराज्ञी का सवाल ये था कि राज्य मे जो नदी थी वो पीने के पानी का मुख्य स्त्रोत थी| उसमे से पीने का पानी लेना छोडकर वो लोग जंगल मे क्यो जाते है पानी लेने के लिए!
तब उन लोगो का कहना था कि पानी विषाक्त हो गया है|
ये सुनकर युवराज्ञी को बहुत अचंभा हुआ की नदी का पानी कैसै विषाक्त हो सकता है|
पर उसने उनकी मदद करने की ठानी|
वो उनको कुछ देर रोक कर खुद कुछ तैयारीया करने चली गई| कुछ देर बाद वो जब अपने कक्ष से बाहर निकली तो सैनिक वाले वस्त्र धारण कर और हाथ मे तलवार लिये!
वो उन लोगो को लेकर राजदरबार मे प्रस्तुत हुई| वीर भी वहा मौजूद था|
उसने उनकी परेशानी सभा के समक्ष रखी| तब कई लोगो का कहना था कि वो अकेली उन लुटैरो से लडने ना जाये पर भैरवी ने उन सबको बहुत ही अच्छा जवाब दिया|
"आज हम इस राज्य की युवराज्ञी है! कुछ समय पश्चात कदाचित इस राज्य की महारानी बना दिये जायेंगे! पर क्या प्रजा हमे सच मे हमे उनकी महारानी मान पायेंगी? क्या वो मान पायेंगी की हमारे हाथो मे राज्य की बागडोर होते हुए वे अपने घरो मे सुरक्षित है?" भैरवी के इस सवाल का जवाब किसी के पास नही था| पर वीर केवल भैरवी को देखकर मुस्कुरा रहा था|
"नही ना?
हम जानते है और ये सब क्यो?
क्योंकि मै एक स्त्री हू!
यही उचित समय है कि मै हमारी प्रजा को बता सकू की एक स्त्री यदि पूरे संसार की बागडोर संभाल सकती है तो इस राज्य को भी संभाल सकती है|" भैरवी की आँखो मे निश्चय था|
सब लोग भैरवी की बात से सहमत हो गए और उसे वहा जाने की अनुमति मिल गई|
वीर इस बात से बहुत खुश था|
भैरवी उन लोगों की मदद करने चल पडी|
तभी सैनिक सुचना लेकर आया कि संग्रामगढ के महाराज ऋतुराज अपने परिवार समेत कुछ है समय मे पधारने वाले हैं| ये सुनते ही महाराज बहुत खुश हो गए और उनके स्वागत की सारी जिम्मेदारी वीर को सौंप दी|
पर उससे पहले वीर भागकर बाहर भैरवी के प्रस्थान करने से पहले उसके सामने आकर खडा हो गया|
"क्या हुआ वीर? " भैरवी ने पूछा|
वीर ने एक दासी को बुलाया| वो पूजा का थाल लेकर आयी| वीर ने भैरवी का तिलक किया|
"जब भी हम कही बाहर जाते है तो आप हमारा तिलक करती है| आज आप अपने उद्देश्य मे सफल हो इसलिए हम आपका तिलक कर रहे हैं|" वीर बोला|
भैरवी उसके गले लग गयी|
"अपने उद्देश्य मे सफल होकर लौटियेगा! हमे आप पर पूर्ण विश्वास है!" वीर ने कहा|
भैरवी उससे बहुत खुश थी|
वो कुछ सैनिकों के साथ अपने घोडे पर निकल पडी|
भैरवी को विदा कर वीर महाराज त्रृतूराज के स्वागत का तैयारी मे लग गया|
उधर अपने कुछ दोस्तों के साथ वीर भैरवी की कहानी का एक नया किरदार नीलमगढ की सीमा मे प्रवेश कर रहा था|
वो था राजवीर! संग्रामगढ का युवराज! भावी राजा!
मजबूत शरीर! गौर कांती! बहुत ही मनमोहक एवं सुंदर नौजवान था! इतना मनमोहक की कोई भी नारी देखते ही प्रेम मे पड जाये और शायद इसी कारण उसका स्वभाव बहुत चंचल था| उसका मन कभी भी एक युवती पर टिकता नही था|
अपने सफेद घोडे पर बहुत तेजी से अपने कुछ दोस्तों के साथ वो नीलमगढ की ओर बढ रहा था|