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स्त्री-विमर्श

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      दिल टूट जाते हैं... 💔💔💔💔💔💔बेगाने जब गलत ठहराते हैं तो परवाह नहीं होती,अपने जब गलत ठहराते हैं,तो दिल टूट जाते हैंजिन रिश्तो को सवारने की खातिर,हमने  खुद को भी

            नारी जीवन 🌹कभीअमृत, कभी हलाहल 🌹        जीवन के रंग न्यारे है,नयनों में दुख के बादल है तो कभी खुशी के तारे है।कभी खुशी का

.   🌹कुछ लम्हे चुरा लूं🌹कुछ लम्हे चुरा लूं कुछ जिद को छोड़ दू, अपने दिल के टुकड़ों को में फिर से जोड़ लू।कुछ लम्हे चुरा लूं और जिद को छोड़ दूं.....बिखरे हुए सपनों को थोड़ा समेट लूं , उलझे

🌷🌷हारी नहीं,थक बैठी हूँ, 🌷🌷 हारी नहीं हूं थक बैठी हूंअपनी खुशियां, अपने सपने,यहीं कहीं रख बैठी हूं ।ढूंढ रही हूं कोना कोना,कहां छुपा है मेरा बचपन,कहां थे छूटे खेल खिलौने,कहां गया मेरा अल्हड़प

मैं माँ हु,  तेरी नाल से जुड़ी हूं,       ❣️❣️❣️❣️❣️❣️ हां मैं बुरी हूं पर तेरी नाल से जुड़ी हूं,  तुझे रोकती हूं टोकती  हूं, तुझे समझाती हूं,  दुनिया

मां , मां आप कहां हो ? देखो ये बड़ा ही डरावना राक्षस मुझे लिए जा रहा है।"छोटी सी टिनीया नींद मे ही जोर जोर से रोने लगी। कुमुद ने पास मे सोई अपनी नन्ही सी परी को जब इस तरह से डरते हुए देखा तो उठकर उसे

सुहानी शाम ढल चुकी।ना जाने तुम कब आओगे।"रेडियो पर गीत बज रहा था।सुधा जी अपने कमरे मे बैठी।कमरे के बाहर बगीचे का नजारा ले रही थी।शाम ढल रही थी।काफी दिनों से तेज गर्मी पड़ रही थी।आज सुबह भी मौसम काफी गर

शिखा अपने चार साल के बेटे को सुला रही थी। नमन सोने  नाम ही नही ले रहा था वह बार बार लोरी गाती पर वो थोडी देर पलके बंद करता और फिर से खोल लेता था।आज ही तो मायके से आयी थी ।एक महीना हो गया था अपने

आज नीरा के लिए और दिन से कुछ खास दिन था ।वैसे तो वही सुबह उठना बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजना और स्वयं तैयार होकर आफिस जाना रहता था। लेकिन आज आफिस से मेल आयी थी कि उसे सात आठ दिन के लिए मीटिंग के लि

घर मे नयी नयी बहू आयी थी ।उषा जी आज थोड़ा ज्यादा ही व्यस्त थी । नौकरानी को बार बार हिदायत दे रही थी ,"देखो कोई चीज की कमी नही रहनी चाहिए।आज मुहल्ले की औरते मुंह दिखाई के लिए आ रही है और जो मेहमान शादी

छोटी सी कृषा जब भी स्कूल से लौटती झट से मम्मी के पास जाती थी बहुत देर हो गयी होती थी मां को देखे हुए ।अपनी सारी प्यास मां के अमृत मयी स्नेह से बुझाती थी। कभी दादी के पास तो कभी मां के पास कृषा का दिन

धरा और पृथ्वी दोनों अपने अपने परिवार से दूर बड़े शहर मे रह कर नौकरी कर रहे थे ।दो साल हो गये थे शादी को पर अभी बच्चा करना उनके लिए जरूरी नही था वो अपने करियर पर ध्यान देना चाहते थे।धरा ने भी इसी शर्त

सुमित की शादी होने वाली थी उसे चिंता सताये जा रही थी ।जब किसी लड़के की शादी होती है तो उसे यही चिन्ता होती है कि पता नही मेरा गृहस्थ जीवन कैसा होगा।पर सुमित को चिन्ता थी तो अपनी मां की।उसे पता था उसकी

कमलादेवी का भरा पूरा परिवार था ।चार बेटे और एक बेटी सब अपनी अपनी गृहस्थी वाले थे। कमलादेवी ने कोई मोती ही दान किये थे जो ऐसे बच्चे दिए थे भगवान ने ।सबसे बड़ा गिरधारी था जिसके बच्चे भी शादी लायक हो गये

"झरना तुम्हें पता है ना एक औरत ही घर बनाती है और एक औरत ही घर का सर्वनाश भी कर देती है । क्यों मै ठीक कह रहा हूं ना।"अमित झरना की ओर मुखातिब होता हुआ बोला।तभी सुरेश बोल पड़ा,"भाभी इसकी बातों पर ध्यान

वह नृत्यांगना, नचाती नयन, फैलाती,समेटती,          हाथ, गिराती,उठाती,         उंगलियां। थिरकते कदम, करती स्वप्न वयन। उसके रंग,ढ़ंग, उसका चरित्र, कहां पवित्र?       वह वरांगना, उसकी ,भावभंग

कुछ कहना है तुमसे, कहूं? पर चुप भी क्यों रहूं? जब सवाल, जीवन के अहम भाग का, अस्तित्व का, सुहाग का ,भाग का, तो क्यों, तिल तिल जलूं? क्यों सहूं? घोर मानसिक यातना, प्रताड़ना,प्रवंचना । बस चुप

नहीं पता था कि, हरियाली की चाहत में, बो लूंगी अपनी छाती पर पीपल, जो काट कर रख देगा, मेरी सारी स्वप्न जडे़ं, और मुझे खोखला कर देगा भीतर तक। नहीं पता था, कि जो दिख रहा है, उससे परे भी है एक सत्य

घनी अँधेरी सड़कों पर , गलियों में ,चौराहों पर, बसों और ट्रेनों के अंदर खेतों में खींचकर , लूट ली जाती है , लड़कियों की आबरू पूरा जन सैलाब एकत्रित होकर , सड़कों पर , व्यक्त करता है , अपना आ

भटक रहे हैं उजाले, अंधेरों की संगति में पड़कर, हमको राह दिखाने वाले,        सद्पथ पर चलाने वाले,    बढ़ रहे हैं स्वयं, पतन के पथ पर?       उंगली पकड़, ककहरा लिखाने वाले,              हमार

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