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स्त्री-विमर्श

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तब न था विश्वास, कि हममें वो सुवास, जो गृह आंगन का, उपवन महका सकें। कीर्ति फैला सकें, सम्मान दिला सकें। गर्व से सिर ऊंचा उठा सकें। सुत पाने की चाह में, हम आ गये सारी। तो!कंधों पर, इतने हो गये भारी? उन

आसमान छूने की चाहत, भला किसे नहीं होती? पर हर लड़की, उड़न परी, कल्पना चावला, मीराबाई चानू,या लवलीना तो नहीं होती। हर लड़की की आंखें, कुछ स्वप्न संजोती हैं, जिन्हे वह पलकों में, बडे़ प्यार से पिरोती ह

चल उड़ चल रे मन पंक्षी , अब तेरा यहाँ कौन तलाशी !!!! अब तेरा यहाँ कौन तलाशी । इतनी प्यारी तुझको काया ! जो तू इसको छोड़ न पाया ! छोड़ रहे तुझे अपने प्यारे, तू किसके लिए रुका रे ! छाई हुई घनघोर उदासी !!

तारों के नीचे ही तो,तुम मेरे जीवन में आये थे।आंखों में उमंग के,सौकडो़ं ज्योति पुंज लहराये थे।खुशियों के सारे तारे जैसे,मेरी झोली में समाये थे।खाई थीं हमने सदा,साथ रहने की कसमें,कितने ही किये थे,तुमने

श्वास अभी बाकी है, जान अभी बाकी है। कुछ ख्वाब हैं बचे हुये, जिनकी उडा़न अभी बाकी है। आधा अधूरा बटोरकर, मत पूरा चरित्र तोल दे। ये नसीब क्या पता, कब कौन द्वार खोल दे। सफर मिलने मिलाने का, पहचान अभी बाकी

खोलकर पढ़ती हूं, तुम्हारा खत, तुम्हारे जाने के बाद, जो, रख गये थे तुम, मेरे सोते में, चुपके से तकिये के नीचे। और , सफेद साडी़ में लिपटी मैं, भर लेती हूं, अपनी मांग फिर से, क्योंकि, लिखा था तुम्हारे खत

चढा़कर मुझे, अपने क्रोध की आँच पर, देखा भी नहीं, तुमने पलटकर, कि,सुलग रही हूँ मैं, राख हो रहीं , मेरी भावनायें, लगाव,विश्वास, तुम्हारे क्रोध की, इस आंच पर। आने लगी है, अब तो बू भी, टकराव की, तनाव की।

बदल रहा था सबकुछ, और मैं समझ न पाई कुछ दिल की गलियों  में , वो एक दिन आये थे, सात फेरे लेकर मुझे, अपने जीवन में लाये थे । मैं पाकर उनको, फूली नहीं समाई थी , अपने भाग्य पर , आह!कितना इतराई थी । द

उन्होने कलेजे का टुकडा़ दान किया , मान दिया और सम्मान दिया । दे सकते थे जितना बेचारे, उतना उन्होने था प्रदान किया । फिर भी असन्तुष्ट कि , मिला न पूरा दहेज, किया बेटी और बहू में भेद। जिसने उसकी  व

मेरे अधरों के सच लेकर, इन्हें झूठ बोलना सिखला दो न। इन आँखों की निश्छलता लेकर, थोडा़ कपट इन्हें सिखा दो न। ले लो ह्रदय की मासूमियत मेरी, इसे पाषाण जरा बना दो ना। नहीं जानती अंतर, मोह और मोहब्बत में, र

कुछ देर बाद ही ट्रेन अपने गंतव्य से रवाना हुई...। साक्षी और उसके दोनों बच्चे अभी नीचे वाली सीट पर ही बैठे थे...। ट्रेन के चलते ही साक्षी मन ही मन थोड़ी विचलित सी होने लगी.... क्योंकि उस बोगी में अब भी

बरसात का मौसम था। छोटी- छोटी फुहारे  आसमान से जमीन पर गिर रही थी। अकाशीय बिजली चमक रही थी। करीब-करीब शाम के 8:00 बज चुके थे। श्याम खाना- खाकर सोने वाला था। पड़ोस के घर से आवाज आई चारपाई पर लेटा

क्या हुआ मैं लड़की हूं तो मेरा हक नही यहा जीने का ?मेरा मन नहीं खुल के हॅसने का?मै नहीं चाहती क्या खेलना ?क्यूँ मना करते है लोग ?क्यू बताते रहते है कि हम लड़की है ,लड़कियों को ज्यादा हँसना नहीं च

6 माह बाद       एक लड़की आधी रात को सड़क पर किसी से छूप कर भाग रही थी । उसे कहां जाना है ? कुछ पता नहीं था ।  बस वह भागे जा रही थी । कुछ देर तक भागने पर जब उसकी सांस फूलने लगी

       श्रद्धा जब से सुनी थी कि अक्षत  किसी से प्यार करता है । तब उसकी आंखों में एक खौफ नजर आने लगी थी । वो खोई - खोई सी रहने लगी थी । जहां भी वह बैठती थी ,  वो वहीं बैठे

                      श्रद्धा एक साधारण परिवार की लड़की है । उसका हमेशा से यह इच्छा थी कि उसे भी उसके घर वाले प्यार करे । जब वो देखती की लोग

👩लड़कियां तितली होती है ,🦋उसे पकड़ कर एक जगह नहीं रख सकते है ,उसे भी जाना होता है एक घर से दूसरे घर ,जैसे तितलीयां एक फूल से दूसरे फूल पर जाती है ,ठीक वैसे ही लड़कियां मायके से ससुराल चली जाती है ,त

ना कोई छेड़े मुझे ना देखे कोई गंदी नजरों से मुझेजाना है अब मुझे परियों की दुनिया मेंजहाँ हर पल  को मैं खुशी के साथ जिऊँ ।नहीं रहना मुझे ऐसी दुनियाँ मेंघिन्न आती है  मुझे ऐसी दुनिया सेजह

    ❤ .माँ मेरी माँ..❤तुम्ही तो मेरी जन्नत हो, जन्नत का नजारा भी..मुझे दुनिया में तुम लाई, फकत मुझ को स्वारां  भी...मेरी रातों में  तुम जागी, दिया मुझको उजारा  भी... 

 आंधियों से टकराने की मेरी की जिद         🌷🌷🌷🌷🌷आँधियों से टकराने की जिद थी मेरी,टूट कर न बिखर जाने की ज़िद थी मेरी.. आंधियां जो चली दरख़्त टूटे कईटुट कर

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