भटक रहे हैं उजाले,
अंधेरों की संगति में पड़कर,
हमको राह
दिखाने वाले,
सद्पथ पर
चलाने वाले,
बढ़ रहे हैं स्वयं,
पतन के पथ पर?
उंगली पकड़,
ककहरा लिखाने वाले,
हमारा भविष्य,
बनाने वाले,
डाल रहे हैं,
हाथ अपना,
हमारी देह पर?
आंखें,जिनमें,
होता था आशीष,
भर रहे हैं,
वो उनमें कीच,
ठंडा़ पड़ गया
है सूरज,
चांद आग,
उगल रहा है,
बादलों ने ली,
आंखों में शरण,
दुखित हो वो,
बेतहाशा बह रहा है।
घाव सहला ,
रहे कंकड़,पत्थर,
चुभ रही है,
मुलायम घास,
तोड़ रहे हैं,
वही भरोसे,
जिनसे स्वप्न में,
न की थी आस?
जीवन सफल,
बनाने वाले,
हो रहे हैं,
पथभ्रष्ट जब,
और चुन रहे,
हैं जब तम,
तो मन कर,
रहा है चिंतन,
आखिर किस पर,
विश्वास करें हम?
प्रभा मिश्रा 'नूतन '