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स्त्री-विमर्श

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वो मीरा समझ, मुझको, वेदना ए विष, पिलाते रहे। नियति समझ, हम भी, गले लगाते रहे। एक क्षण को, न रुके वो, थकी मैं, भी नहीं। और सिलसिला, चलता रहा, यूं हीं।

तकती रही राह, रात भर, तेरी प्रतीक्षा कर, उस समुंदर किनारे पर, जहाँ मिले थे, हम प्रथम बार। उठी थीं प्रेम हिलोरें, भिगो गयी थीं जो, हम दोनों के ही, मन के हर कोने,द्वार। भरे थे आंचल में, तुमन

खोलती,मूंदती , नयन द्वार बार -बार, इनमें बसी ज्योति राशि, किसका तुझे इंतजा़र? कागल की रेख खींच, कौन अशुभ रोकतीं? हर मिले विछोह पर, अश्रुधार झोकतीं। निशब्द हो मौन साध, किस साधना को साधतीं? कैस

बेटा ।तुम मेरे पास आओ। मुझे तुमसे कुछ कहना है ।"संगीता ने ग्यारह साल के कन्नू को अपने पास बुलाया।कल रात घर मे बहुत बड़ा क्लेश हो गया था जिस कारण संगीता जो सालों से जुल्म सहन कर रही थी सास और पति का उस

आपने पिछले भाग में देखा कि। शिल्पा दरवाजे पर बैठ नितिन के वापस आने का इंतजार करति है। नितिन के वापस आने का इंतजार करते हुए, शिल्पा कि दरवाजे पर ही आँख लग जाती है, सुभा ५ बजे शिल्पा कि जब आँख खुलती है,

आपने पिछले भाग में देखा कि। शिल्पा के बार बार बच्चे के बारे में बात करने के बाद से नितिन शिल्पा से दूरियां बड़ाने लगा था। शिल्पा नितिन से नजदीकियां बड़ाने के लिए कोमल कि दि हुई तरकीब के मुताबिक नितिन

नितिन और शिल्पा कि शादी पिछले ३ साल पहले हुई थी। दोनो का शादी शुदा जीवन आनंद से गुजर रहा था। एक दूसरे के प्यार में वो अक्सर डूबे रहते थे। शिल्पा को नितिन ने हर तरह से खुश रखा था। दोनो में काफी मधुर स

पांच गांव का सन्धिपत्र कौरव दल में विफल हुआ l युद्ध विकल्प ही शेष रहे पांडव दल में सफल हुआ ll 112 ll युद्ध भूमि में अर्जुन का रथ वासुदेव जब ले आए l संबंधों के उस मोह जाल से आँखों में जल भर लाए ll 113

नृप विराट के यहाँ एक कीचक अभिमानी रहता था l हर नारी में मन रमता था व्यभिचारी जैसा दिखता था ll 48 ll आँखों में उसके प्रतिपल वासना ही नाचा करती थी l भोजन, निद्रा औ' व्यर्थ युद्ध जीवन में उसकी करनी थी ll

"ना मुन्नों गिर जाएगी।देख मै कह रहा हूं ना यह दीवार उबड़ खाबड़ है।बहू बेटा कहां हो तुम जरा सम्भालो मुन्नों को यह नही मान रही।"दादा जी जोर से मुन्नों की मां को आवाज़ देते हुए बोले।"जा अपनी बड़ी बहन और

सुरसरिता सी पावन कुटिया  तेज पुंज से ज्यों दमके l सौम्य वेश में वह तनया  भारत के मस्तक पर चमके ll 17 ll कुरु समाज में दुखी सभी  भीष्म द्रोण औ' कृप भी थे l किंतु द्रौपदी वस्त्र हरण  इन लोगों ने भी देख

बेशक ! पापा की प्यारी परी होती हैं बेटियां ...उनकी राजकुमारी होती है बेटियां ...माँ की भी राजदुलारी होती हैं बेटियां ...हाँ ! अपने पापा की प्यारी परी होती है बेटियां ...आज हर कोई पापा की परी हैं ये कह

नृप विराट की दुहिता वह,  निश्छल थी सुकुमारी थी l कली खिले ज्यों डाली में,  वह कली पिता को प्यारी थी ll 1 ll नित नए-नए रंगों से ज्यों,  नारी मन पुलकित होता है l मृग शावक सी भरती पग-पग,  क्या ज्ञात उ

बिस्तर पर बिछाने के लिए लालायित रहने वाला समाज कभी भी हमें अपनाने को तैयार नहीं होता।मृगनयनी की ये बातें मेरे जेहन में बार बार घूम रही थी। अच्छी खासी ही तो थी उसकी जिंदगी। पर मेरे कारण उसकी इच्छा के व

मैं सब कुछ देख पा रही थी। मेरे शरीर में उसके द्वारा पिलाएं जाने वाले शरबत के कारण कुछ ऐसा नशा हो गया था कि मेरा शरीर मेरा साथ नहीं दे रहा था।वह मेरे पास आ बैठा। उसने मेरे बंधे बालों को खोल दिए और बोला

मन बेचैन था। ऐसा क्या हुआ, जो वह मुझसे आज मिलने नहीं आई कुछ ऐसा वैसा तो...आशंका में मन न जाने कितना कुछ सोचने लगा। सोचते हुए ना जाने मैं कब नींद के आगोश में चला गया, पता ही नहीं चला।सुबह 5:00 बजे के अ

कई बार दिल ना जाने बिना कारण ही क्यों बहुत उतावला हो जाता है। मेरा भी शायद दिल कुछ ज्यादा ही तेजी से धड़कने लगा था।किसी के लिए एक नई शुरुआत मेरे द्वारा संभव हो सके तो कहना ही क्या? किसी के जीवन म

सीमा की सास आज सुबह से ही बड़बड़ कर रही थी,"हाय पता नही कैसी मनहूस हमारे पल्ले पड़ गयी है । कोई काम सही ढंग से नही करना आता ।बता मठरिया बनाने मे भी कोई मंतर पढ़ने थे क्या । मां ने कुछ सीखाया हो तो कुछ

हां सबकी नजरों में अखरती हूंजब अपनी मनमर्जीयां करती हुजब राहें अपनी खुद चुनती हूंजब अपने दिल की सुनती हूंखटकता है मेरा ये अंदाजअखरता हुनर मेरा जाने क्या है बातहां अड़ जाती हुगलत पर लड़ जाती हुअपन

मैं कलियों सी महकना चाहती थीतितली बन भरनी थी उड़ाननापना चाहती थी अपने हिस्से का आसमानरचना चाहती थी अपने ख्वाबों का संसारपर हर बार मुझे रोका गयापग पग पर मुझे टोका गयारौंदा गया पैरों तले मेरा

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