वह नृत्यांगना,
नचाती नयन,
फैलाती,समेटती,
हाथ,
गिराती,उठाती,
उंगलियां।
थिरकते कदम,
करती स्वप्न वयन।
उसके रंग,ढ़ंग,
उसका चरित्र,
कहां पवित्र?
वह वरांगना,
उसकी ,भावभंगिमायें,
देवों को रिझाती थी,
वो अपसरा ,कहलाती थी।
उसकी अदायें,
उनके इशारों पर,
तपस्या ,मुनियों की,
भंग करवाती थी।
उनकी वजह से वो,
शापित हो जाती थी।
वर्तमान में,
वरांगना,
करती ,स्वप्न वयन,
नचाते नयनों से,
उंगलियों से,
थिरकते कदमों से,
फड़कते अंगों से,
भावभंगिमाओं से,
प्रस्तुति देती है,
प्रशंसा पाती है,
मान,सम्मान कमाती है।
वह नृत्यांगना,
करती है साधना,
अपने नृत्य से,
करती ईश उपासना,
आशीष प्रसाद पाती है।
वह नृत्यांगना,
उसके हालात,
उसकी मजबूरियां,
या कि प्रवंचना,
पहुंचाती कोठे पर
करवाती नृत्य ,
सहती लोगों की,
गंदी निगाह
ओछी ,निकृष्ट फब्तियां,
पाती दाम ,पर,
बदनाम वो कहाती थी।
अगर ,देखा जाय तो,
जीवन रंगमंच पर,
हम सभी को तो,
नचाता है वो ईश्वर,
अलग अलग विषय,
अलग अलग नृत्य
हर्ष ,उल्लास के दिनों में,
नयन खुशी में नचाते हैं,
अधर मुस्कुराते हैं,
हाथ,प्रार्थना में उठाते हैं,
आशीश देने में झुकाते हैं।
कर्तव्य में बढ़ते कदम,
नाचते रहते हरदम।
दुख के दिनों में,
उठतीं,गिरतीं पलकें,
बेचैनी में फैलतीं,
सिकुड़ती हैं आंखें,
एक जगह न टिकते कदम,
आंसू झरते हैं हरदम,
उसके इशारे और,
नाचते हैं हम।
प्रभा मिश्रा 'नूतन '