नहीं पता था कि,
हरियाली की चाहत में,
बो लूंगी अपनी छाती पर पीपल,
जो काट कर रख देगा,
मेरी सारी स्वप्न जडे़ं,
और मुझे खोखला कर देगा भीतर तक।
नहीं पता था,
कि जो दिख रहा है,
उससे परे भी है एक सत्य
अनबूझा सा जो,
उथलपुथल कर रख देगा,
मेरा पूरा भविष्य,
अकस्मात यूं प्रकट होकर।
नहीं पता था,
कि फिर लदना होगा,
मुझे मजबूरी बनकर,
एक बार फिर,
उन्हीं जर जर कांधों पर।
पर हां,
पता है मुझे,
कि रहेंगे वो भी नहीं,
सुकून से क्षण भर,
मेरा सुकून हर कर।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'