हम एक दूसरे के साथ कर्मों की डोरी से बँधे हुए हैं, हम अपने कर्मों के लेन-देन का हिसाब पूरा करने के लिए ही यहां आते हैं। संसार में कोई माँ-बाप, भाई-बहन और औलाद बनकर आ जाता है, कोई दोस्त और कोई रिश्तेदार बनकर आ जाता है।*
लेकिन जैसे-जैसे इस जन्म में प्रारब्ध कर्मों का हिसाब-किताब ख़त्म हो जाता है, हम एक दूसरे से अलग होकर अपने अपने रास्ते पर चल देते हैं।
यह दुनिया एक सराय की तरह है, जहां सब मुसाफ़िर रात-भर के लिए इकट्ठे होते हैं और सुबह होते ही अपनी अपनी राह चल देते हैं। यों भी कह सकते हैं कि हम पंछियों की तरह हैं, जो सांझ होने पर पेड़ पर आ बैठते हैं और सूरज की पहली किरण के आते ही, अपनी-अपनी राह उड़ जाते हैं।
!!!...मनको भगवान् में लगाना उतना जरूरी नहीं है, जितना जरूरी भगवान् में खुद लगना है। खुद भगवान् में लग जाँय तो मन अपने-आप भगवान् में लग जायगा...!!