कोई किसी को सुख दुख का देने वाला नहीं है__ सभी लोग अपने ही किए हुए कर्मों का फल भोंगते हैं __हमें आज जो दुख कष्ट मिल रहा है उनके लिए कोई दूसरा दोषी कैसे हो सकता है,
मनुष्य को पूर्व जन्म के अपने शुभ अशुभ कर्मों का फल भी इसी जन्म में भोगना पड़ता है मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार फल भोगने को बाध्य है जिस प्रकार बछड़ा हजारों गोओ में अपनी माता को पा लेता है
उसी प्रकार पूर्व जन्म का किया हुआ कर्म करने वाले के पीछे पीछे जाता है __अर्थात मनुष्य द्वारा किए गए शुभ अशुभ कर्म (पाप पुण्य) फल भी उस कर्ता को ही प्राप्त होते हैं
दूसरोंके प्रति हमारी बुरी भावना होनेसे उनका बुरा होगा या नहीं होगा यह तो निश्चित नहीं है, पर हमारा अन्तःकरण तो मैला हो ही जायगा