ऋषियों ने ईश्वर से सौ वर्ष तक का जीवन देने की कामना की है। इस सौ वर्ष की आयु में हमारा शरीर कैसा होना चाहिए यह महत्त्वपूर्ण बात है। निम्न वेदमन्त्र के माध्यम से वे कहते हैं-
पश्येम शरद: शतं जीवेम शरद: शतम्
श्रृणुयां शरद: शतं प्रब्रवाम शरद: शतमदीना:
स्याम शरद:शतं भूयश्च शरद: शतात्।
अर्थात् हम सौ वर्ष की आयु तक भली-भाँति देख सकें। सौ वर्ष तक स्वस्थ होकर जी सकें। सौ सालों तक ठीक से सुन सकें और सौ वर्षो तक अच्छे से बोल सकें। हम सौ वर्षों तक दीन न बनें। ऐसा जीवन हम जी सकें।
ऋषियों द्वारा इस मन्त्र में की गई प्रार्थना का तात्पर्य यही है कि हमारी सारी इन्द्रियाँ अपना कार्य सुचारु रूप से करती रहे। हम स्वस्थ व हृष्ट-पुष्ट रहें। कोई रोग हमारे पास न आने पाए।
अब विचारणीय प्रश्न यह है कि ऐसा सम्भव हो सकता है क्या? यदि हम अपने जीवन को संयमित कर सकें तो यह सब सम्भव हो सकता है।
हमारा आहार-विहार दोनों सन्तुलित नहीं हैं। हमें अपनी जीभ पर बिल्कुल भी नियन्त्रण नहीं है। तला-भुना, मिर्च-मसाले वाला जो भोजन है, उसे खाकर हम सब आनन्दित होते हैं। अपने शरीर को किसी तरह का कष्ट न देना पड़े, इसलिए दुनिया भर का जंक फूड खाते हैं। होटलों का खाना खाने के लिए मचलते रहते हैं। अभोज्य पदार्थों का सेवन करते हैं।
सादा और सन्तुलित भोजन खाने के नाम पर हमें कष्ट होता है। हम नाक-भौंह सिकोड़ते हैं, मुँह बनाते हैं। घर में झगड़ा तक कर बैठते हैं। अब आप खुद बताइए कि ऐसी अवस्था में हमारा पेट बेचारा क्या करेगा? यह किसी एक की बात नहीं है, हम सभी ऐसा ही करते हैं। फिर दोष दूसरों को देते हैं। ऐसे दोषपूर्ण और अमर्यादित खान-पान के कारण बीमारियाँ शरीर को गाहे-बगाहे घेरती ही रहेंगी।
हमारी जीभ स्वाद के लालच में आकर लपलपाएगी। हम बस उसी के चक्कर में पड़कर स्वयं को लाचार बना लेते हैं।
हमारे सोने-जागने का कोई समय नहीं है। हम रात को देर से सोते है और फिर प्रात: देर से उठते हैं। जो उल्टा-सीधा मिला, बस उसे ही खाकर अपने काम पर निकल जाते हैं। इसी तरह खाना खाने का भी कोई समय नहीं बनता। जिस भोजन के लिए सारे पाप-पुण्य, भ्रष्टाचार, कदाचार सब करते हैं, उसी को खाने के लिए हमारे पास समय का सदा अभाव रहता है। शेष सभी सांसारिक कार्य हमारे लिए इससे ज्यादा आवश्यक हो जाते हैं।
आजकल अन्न, फल और सब्जियों आदि में डलने वाले कीटनाशक भी हमारे शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को और अधिक कमजोर कर रहे हैं। इससे भी अनेक रोगों में बढ़ोत्तरी हो रही है।
इन सबसे अधिक दूषित होता हुआ पर्यावरण, जो हमारी सबकी लापरवाही का परिणाम है, वह भी हमारे बहुत से रोगों का कारण है।
जब हमारा खान-पान और रहन-सहन ऐसा हो जाएगा तो हम डाक्टरों के चक्कर लगाते हुए अपनी मेहनत की कमाई और पैसा व्यर्थ बर्बाद करते रहेंगे। मैं यह तो नहीं कहूँगी कि सभी लोग 'सादा जीवन उच्च विचार' वाली नीति का जबरदस्ती पालन करें। स्वेच्छा से इसका अनुकरण करना श्रेयस्कर होता है।
सौ वर्ष की आयु तक जीने के लिए आँख, नाक, कान आदि सभी इन्द्रियों का स्वस्थ होना बहुत आवश्यक है। यदि ये सभी इन्द्रियाँ शिथिल हो जाएँगी और शरीर रोगी हो जाएगा, तब तो जीवन भार बन जाएगा। जीने का आनन्द भी नहीं आएगा। उस समय मनुष्य बस दिन-रात, उठते-बैठते ईश्वर से मृत्यु की कामना करता रहेगा। अपने जीवन का शतक पूरा करने के लिए जीवन में पहले आत्मसंयम और आहार-विहार पर ध्यान देना चाहिए। बाकी सब ईश्वर पर छोड़ देना ही बेहतर है क्योकि वह सब जानता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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