स्त्री हो या पुरुष मर्यादा का पालन करना सबके लिए आवश्यक होता है। घर-परिवार में माता-पिता, भाई-बहन, बच्चों और सेवक आदि सबको अपनी-अपनी मर्यादा में रहना होता है। यदि मर्यादा का पालन न किया जाए तो बवाल उठ खड़ा होता है, तूफान आ जाता है।
मर्यादा शब्द भगवान श्रीराम के साथ जुड़ा हुआ है। संसार उन्हें आज भी मर्यादा पुरुषोत्तम कहकर पुकारता है क्योंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में सभी मर्यादाओं का पालन किया।
बच्चे यदि अपनी मर्यादा में न रहें और अनुशासन हीन हो जाएँ, अपने से बड़ों का सम्मान न करें, अपने भाई और बहनों के साथ दुर्व्यवहार करें, मित्रों के साथ अभद्रता करें, जरा-सा क्रोध आने पर घर में तोड़फोड़ करें, हर किसी के साथ बदतमीजी करें, किसी का सम्मान न करें तो उन्हें कोई भी अच्छा बच्चा नहीं कहेगा।
उन्हें बिगडैल बच्चों की श्रेणी में रखा जाएगा। घर-बाहर कहीं भी उन्हें प्यार और मान नहीं मिलेगा। हर ओर से वे दुत्कारे जाते हैं। कोई ऐसे उद्दण्ड बच्चों के साथ सम्बन्ध नहीं रखना चाहता और न ही उन्हें अपने घर में देखकर किसी को प्रसन्नता होती है।
भाई-बहन यदि अपनी मर्यादा भूल जाएँ और एक-दूसरे की भावनाओं को न समझें और परस्पर अमर्यादित व्यवहार करें तो सम्बन्धों में दरार आने लगती है। उनमें अपनेपन की भावना समाप्त हो जाती है। वे जिन्दगी भर एक-दूसरे की शक्ल देखना पसन्द नहीं करते। उनमें जीने-मरने के मानो सारे रिश्ते समाप्त हो जाते हैं।
माता-पिता यदि परस्पर अमर्यादित व्यवहार करें यानि एक-दूसरे से झगड़ा करें, मारपीट करें अथवा बच्चों से पक्षपात करें तो उनका सम्मान उनके अपने बच्चे भी नहीं करते। ऐसे घरों के बच्चे अपने माता-पिता से घृणा करते हैं।
कितनी ही धन-सम्पत्ति उनके पास हो वे उसका सुख नहीं भोग पाते। ऐसे घरों से सुख-शान्ति विदा हो जाती है। घर में हर समय अशान्ति का वातावरण बना रहता है। वहाँ ऐसा लगता है मानो मरघट-सी शान्ति रहती हो।
पति-पत्नी का अमर्यादित व्यवहार घर का समूल नाश कर देता है। उन दोनों में से किसी का भी विवाहेत्तर सम्बन्ध मान्य नहीं होता। यदि किसी घर में ऐसा हो जाता है तो वहाँ पति-पत्नी में आपसी प्यार समाप्त हो जाता है। उनमें एक-दूसरे के लिए घृणा का भाव पनपने लगता है जो उन्हें एक-दूसरे से दूर कर देता है।
इसके अतिरिक्त दोनों में से कोई एक झगड़ालू हो, अपने घर-परिवार के रिश्तों को अहमियत न दे तो भी वहाँ मनमुटाव होने लगता है। ऐसे सम्बन्ध लम्बे समय तक नहीं चलते। फिर उनमें अबोलापन आ जाता है। जब सहनशक्ति जवाब दे जाती है तो अन्त में उनमें अलगाव हो जाता है। यह स्थिति किसी के लिए भी कष्टदायक होती है। उनके झगड़ों में निरपराध बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
चोरी, डकैती, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, इन्सानियत का कत्ल करना आदि भी मर्यादा का पालन न करने के दुष्परिणाम हैं। इन सबसे बढ़कर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध भी मर्यादा हीनता की श्रेणी में आते हैं। ये किसी भी सभ्भ समाज के लिए ये कोड़ के समान होते हैं।
नदी जब अपने तटबन्धों को तोड़कर मर्यादाहीन हो जाती है तो उसका नुकसान जनमानस को भुगतना पड़ता है। भयंकर बाढ़ आती है, चारों ओर जल-थल हो जाता है। गाँव के गाँव और शहर नष्ट हो जाते हैं। चारों ओर हाहाकार मच जाता है। कितनी ही धन-सम्पत्ति, जान और माल की हानि होती है।
इसी प्रकार समुद्र जब अपनी हदों को छोड़कर पानी को बहुत ऊपर उछालने लगता है तब वहाँ बड़े-बड़े जहाज डूब जाते हैं और अनिर्वर्णनीय क्षति होती है। उसके पास विद्यमान जनमानस को भी त्रासदी झेलनी पड़ती है।
चाहे मनुष्य हो या प्रकृति सबको अपनी मर्यादा का पालन करना होता है। जहाँ मर्यादा का उल्लंघन किया जाता है वहीं विनाश का ताण्डव होता है। इसलिए मर्यादा की सीमा रेखा को पार नहीं करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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