माँ तो माँ होती है चाहे वह अपनी सगी माँ हो या सौतेली। सौतेली माँ की छवि हमारे दृष्टिपटल पर कोई अच्छा भाव लेकर नहीं आती। इसका कारण है कि सौतेली माँ के विषय मे हमने जितना पढ़ा है या सुना है, उसके अनुसार उसका नकारात्मक चरित्र ही अधिकाँशत: हमारे समक्ष चित्रित किया जाता है।
इन सबसे उसके विषय में ऐसी धारणा बनती है कि वह बहुत अत्याचारी होती है। बच्चों के प्रति असहिष्णु होती है। उन्हें मारती-पीटती है, उनसे घर का सारा काम करवाती है। खाने और पहनने के लिए नहीं देती। वह पति की पहली पत्नी के बच्चों से बहुत नफरत करती है।
इसका समर्थन करने वाले बहुत से उदाहरण हमारे समक्ष हैं। भगवान राम की सौतेली माता कैकेयी ने रातोंरात उनका राजतिलक रुकवाकर उन्हें चौदह वर्ष के लिए जंगलों में भटकने के लिए विवश कर दिया था। उसने अपने पति राजा दशरथ की एक भी नहीं सुनी बल्कि उनकी अवमानना ही की।
भक्त ध्रुव की सौतेली माता ने उस छोटे बच्चे को अपने पिता की गोद में नहीं बैठने दिया। फलस्वरूप उसने महर्षि नारद के आदेशानुसार वन में जाकर कठोर तपस्या की और भक्त ध्रुव कहलाया। ऐसी मान्यता है कि वह आज आकाश में चमकने वाला ध्रुवतारा बनकर सबका मार्गदर्शन करता है।
इसी प्रकार जिन राजाओं की अनेक पत्नियाँ होती थीं, वहाँ परस्पर ईर्ष्या के चलते अथवा राज्य सत्ता के लालच में षडयन्त्र करके, सौतेली सन्तानों को अनेकानेक यातनाएँ देना, विष देना अथवा उन्हें जान से मरवा देना बहुत सामान्य-सी बात होती है। जिन जातियों में बहु पत्नी प्रथा होती है, वहाँ पर भी कमोबेश ऐसी ही स्थितियाँ होती हैं।
ऐसे अनेक उदाहरण इतिहास की खोज करने पर मिल सकते हैं जहाँ सौतेली माँ के षडयन्त्रकारी अत्याचारों का वर्णन मिलता है।
हम अपने आसपास भी कई ऐसी माताओं को देख सकते हैं जिन्हें सौतेली माँ के नाम से अभिहित किया जाता है। इस सौतेली का नाम बहुत बदनाम है। वह कितनी भी अच्छी बनने की कोशिश करे या सौतेले बच्चों की बढ़िया परवरिश करे, फिर भी वह सौतेली ही कहलाती है।
समाज में ऐसा होता है कि किसी बच्चे की माता की मृत्यु हो जाती है और उसका पिता यदि पुनः विवाह न करना चाहे तो घर-परिवार के लोग उसके पीछे पड़ जाते हैं। परन्तु यदि वह विवाह कर लेता है तो सौतेली माँ के आने से पहले ही उसकी क्रूर छवि उस मासूम बच्चे के मन में बिठा देते हैं। इससे वह बच्चा अनजाने में ही उससे डरने लगता है और नफरत कर बैठता है। इस तरह उन दोनों में न चाहते हुए भी घृणा का रिश्ता बन जाता है जो घर के लिए किसी भी तरह उचित नहीं होता।
बच्चे अपनी माँ के लिए पोसेसिव होते हैं। कभी-कभी कुछ बच्चे अपनी नई सौतेली माँ को स्वीकार नहीं कर पाते। अपनी माँ के वस्त्र, आभूषण आदि उसके ले लेने पर घर में तूफान खड़ा कर देते हैं। इस तरह अनजाने में ही घर का माहौल बोझिल होकर बिगड़ जाता है।
टी.वी. धारावाहिकों और फिल्मों में इस सौतेली माता के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही रूपों को प्रमुखता से दर्शाया जाता है।
बहुत-सी सौतेली माताएँ देखी हैं जिन्होंने बच्चों को कभी सौतेला माना ही नहीं। उन्होंने उन बच्चों को ही अपनी सगी सन्तान की तरह मानकर अपने बच्चों की कामना ही नहीं की। सौतेले बच्चों को अपने कलेजे का टुकड़ा मानकर उनका पालन-पोषण किया। ऐसी ही माताएँ बच्चों के दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिणत कर देती हैं।
घर-परिवार का यह दायित्व बनता है कि वे आने वाली सौतेली माँ की बुराइयाँ करके बच्चे को भयभीत नहीं करें और न ही उसके कोमल मन में नफरत के बीज बोएँ। उन दोनों के सम्बन्धों में तालमेल बिठाने और मधुर बनाने का यथासम्भव प्रयास करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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