कुछ लोगों का मानना है कि परिवार में पुत्र का होना बहुत आवश्यक होता है। इसका कारण वे बताते हैँ कि वह कुल को तारने वाला होता है और 'पुम्' नामक किसी नरक से उद्धार करवाता है।
मुझे आज तक समझ नहीं आया कि जो बच्चे अपने दादा या अधिकतम अपने परदादा का नाम तक नहीं जानते वे किस कुल का उद्धार करेंगे। अपने माता-पिता को यथायोग्य सम्मान दे नहीं सकते और उनकी सेवा-सुश्रुषा कर नहीं सकते, ऐसे नालायक बच्चों के होने अथवा न होने से क्या अन्तर पड़ने वाला है? धिक्कार है ऐसे पुत्र होने पर।
माता के किए गए उपकारों को कभी सन्तान को विस्मृत नहीं करना चाहिए। जो बच्चे अपनी माता को वृद्धावस्था में सुरक्षित जीवन नहीं दे सकते या दरबदर की ठोकरें खाने के लिए अथवा ओल्डहोम मे रहने के लिए विवश कर देते हैं, ऐसी सन्तानों का घर, परिवार या समाज में न होना ही अच्छा है।
'माता-पिता सम्मान-सेवा ट्रस्ट' के संस्थापक श्री डी. पी. शर्मा ने हाल ही में घटित इस घटना के विषय में लिखने का मुझसे आग्रह किया है। इस घटना को लिख रही हूँ जिसे पढ़कर आप सभी सहृदय सुधीजन भावुक हुए बिना नहीं रह सकेंगे।
राजू नामक एक कलयुगी कपूत 23 जनवरी 2017 को दोपहर के तीन बजे के आसपास अपनी जन्मदात्री 70 वर्षीया वृद्धा, बीमार व असहाय माँ श्रीमती पार्वती देवी को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के बाहर, बस स्टॉप पर भिखारियों के बीच, जानलेवा कड़कती हुई सर्दी में लावारिस छोड़कर रफूचक्कर हो गया।
जीवनभर उसके लिए लकड़ियों पर खाना बनाते हुए यह माँ अब अपनी आँखों की रोशनी तक गँवा चुकी है। पेशाब व पेट सम्बन्धी तकलीफों को झेल रही अपनी इस लाचार माँ को बड़ी बेरहमी और बेशर्मी की हदों को पार करके वह बेटा बेसहारा छोड़कर चम्पत हो गया।
इस माता के पास एक काला हैंडबैग है जिसमें मात्र दो धोतियाँ, एक पेटीकोट और एक बिस्कुट का पैकेट मिला है। अपनी माँ को यह भरोसा देकर वह गायब हो गया- ' यहीं इन्तजार करना, मैं अभी दवाई लेकर लौट रहा हूँ।'
तीन-चार घण्टे तक भी जब यह कलियुगी नालायक बेटा वापस नहीं लौटा तो यह माँ अपने निर्लज्ज बेटे का नाम ले ले कर चीख- पुकार लगाने लगी। कुछ लोगों ने पास की स्थानीय पुलिस चौकी में जब इस घटना की जानकारी पहुँचाई।
कुछ विश्वसनीय सूत्रों से जब इस घटना का पता चला तब 'माता-पिता सम्मान-सेवा ट्रस्ट' की अध्यक्षा श्रीमती पूजा शर्मा तुरन्त ही वहाँ घटनास्थल पर पहुँच गईं। पुलिस की मध्यस्थता से इस असहाय माँ को प्राथमिक उपचार दिलाया गया।
रात्रि करीब 12 बजे एम्बुलेंस के द्वारा आपात्कालीन पनाह हेतु उस माँ को ट्रस्ट द्वारा संचालित 'माता-पिता सेवाश्रम' नामक 'डे केयर सेंटर' आयानगर, दिल्ली में पहुँचाया गया।
वृद्धा पार्वती जी ने बताया कि वह मुजफ्फरपुर बिहार की रहने वाली हैं, उनके दो लड़के और एक लड़की है। बड़ा लड़का राजेन्द्र सिंह मुजफ्फरपुर में ही रेलवे कर्मचारी है। इन्हें भीख माँगने के लिए छोड़ने वाले छोटे बेटे का नाम राजू है। वह किसी प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करता है और किराये के मकान में रहता है। इससे अधिक इस माता को उसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।
सभी मित्रों से शर्मा जी अनुरोध कर रहे हैं - "हम आप सबसे हम यह अनुरोध करते हैं कि इस घटना को सोशल मीडिया पर इतना प्रचारित-प्रसारित करके अपनी-अपनी श्रेष्ठ मानवीय भूमिका अदा करें। ताकि ऐसी ये नालायक सन्तानें शर्माशर्मी जहाँ पर भी हों तुरन्त अपनी इस बीमार माँ के सामने हाजिर हों और दूसरे लोग भी अपने जन्मदाता माता-पिता के साथ इस प्रकार की अमानुषता और बेरहमी से पेश आने का दुस्साहस न कर सकें।"
वाकई विचारणीय है कि माँ क्या इस दिन के लिए संतान को पाल-पोसकर बड़ा करती है कि वृद्धावस्था में उसके अपने बच्चे उसे इस तरह दूसरों की दया का मोहताज बना दें। सभी माताओं का दायित्व है कि अपने बेटे और बेटियों को संस्कारित करें जिससे वृद्धावस्था में होने वाली इन समस्याओं से बचा जा सके। इससे समाज की इस बुराई पर रोक लगाई जा सकती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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