इस दुनिया के सारे खजाने अपने लिए प्राप्त करने की इच्छा करता हुआ मनुष्य सारा जीवन कठोर परिश्रम ही करता रहता है। उसे पलभर का भी चैन नहीं मिलता। दिन-रात एक करके वह बहुत कुछ जुटा भी लेता है। जो वह हासिल नहीं कर सकता उसके लिए जोड़-तोड़ करने में लगा रहता है। इस क्रम में वह कभी प्रसन्न हो जाता है तो कभी उदास हो जाता है।
ऐसा करते वक्त मनुष्य यह बात भूल जाता है अथवा याद ही नहीं रखना चाहता कि उसका जीवन इस धरा पर सीमित समय के लिए है। इसके लिए कबीरदास जी ने कहा है-
पानी केरा बुदबुदा अस मानस की जात।
देखत ही छुप जाएगा ज्यों तारा परभात॥
अर्थात मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले के समान है यानी क्षणभंगुर है। इसी सार को उदाहरण देते हुए समझाते हैं कि जिस प्रकार प्रातःकाल होते ही तारे छुप जाते हैं। वैसे ही देखते-ही-देखते मनुष्य भी इस संसार से विदा ले लेता है।
इसका अर्थ यही होता है कि पानी के ऊपर बनने वाला बुलबुला पलक झपकते ही गायब हो जाता है या नष्ट होकर पानी में मिल जाता है। मानव को यह जीवन उसके पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ही मिलता है। अपना निश्चित समय भोगकर, मनुष्य इस असार संसार को अलविदा कहकर अगले पड़ाव की यात्रा के लिए खाली हाथ चल पड़ता है।
इस संसार के आकर्षण इतने अधिक हैं कि मनुष्य उन्हें ललचाई नजरों से देखता रहता है। अपने इस छोटे से जीवनकाल में वह सभी भोगों का आनन्द लेना चाहता है। उसे भर्तृहरि कथित इस सनातन तथ्य को आत्मसात कर लेना चाहिए
भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता।
अर्थात भोग कभी समाप्त नहीं होते, भोग ही हम मनुष्यों को भोग लेते हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि इन्सान का जीवन समाप्त हो जाता है पर भोग अन्तकाल तक अपने जाल में उसे फँसाते रहते हैं।
मनुष्य को अपने रहने के लिए एक सुन्दर और बड़ा घर चाहिए, घूमने के लिए बड़ी और मँहगी लग्जरी कार चाहिए। पहनने के लिए उसे अगणित कीमती वस्त्र चाहिए जिनको पहनने का नम्बर भी नहीं आता। अल्मारियाँ भरी रहती हैं पर उसके पास किसी अवसर विशेष पर पहनने के लिए वस्त्र नहीं होते।
इसी तरह घर में फ्रिज, सारे कमरों में ए.सी., आटोमेटिक वाशिंग मशीन, बढ़िया मँहगा फरनीचर आदि ऐशो-आराम के सभी साधन चाहिए। सभी बन्धु-बान्धवों से अधिक धन-दौलत और सुख-समृद्धि चाहिए जिसे देखकर लोग उससे ईर्ष्या करें।
इन सबसे भी अधिक उसे एक सुन्दर और व्यवहार कुशल जीवन साथी की भी चाहत रहती है। आज्ञाकारी और योग्य सन्तान की भी उसे कामना रहती है। यानी इस दुनिया की सारी नेमतों को वह अपने खाते में डालना चाहता।
सारी आयु मनुष्य जमा-घटा करता हुआ निन्यानवे के फेर में ही पड़ा रहता है। ऐसे लोग भी मिल जाएँगे जो कहते हैं हमने अपनी आने वाली सात पीढ़ियों के लिए धन-सम्पत्ति सुरक्षित कर ली है। बताइए, अपना तो पलभर का पता है नहीं पर वे बात करते हैं अपनी सात पीढ़ियों की।
यही वे लोग हैं जो अपना सारा सुख-चैन खोकर बस सब कुछ समेटने लेने की फिराक में परेशान होते रहते हैं। उन्हें अपने खाने-पीने, सोने-जागने की सुध भी नहीं रहती। अपने घर-परिवार तक से दूर रहने में परहेज नहीं करते। उनके पास अपने जिगर के टुकड़ों के लिए समय नहीं निकल पाता।
इतना सारा सामान मनुष्य एकत्र कर लेता है। उसमें से बहुत-सा सामान ऐसा भी होता है जो स्टोर रूम में पड़ा रहता है। उसकी उसे आवश्यकता ही नहीं पड़ती। बड़े-बुजुर्ग प्रायः यह कहकर हमें समझाते रहते हैं -
सामान सौ बरस का पल की खबर नहीं।
अर्थात मनुष्य सौ वर्षों के लिए सामान एकत्र कर लेता है पर उसे अगले पल की भी खबर नहीं होती। वह स्वयं भी नहीं जानता कि कब इस दुनिया से उसके जाने का समय आने वाला है।
चन्द्र प्रभा सूद
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