संसार में कुछ लोग ऐसे होते हैँ जो कचरे के ढेर की भाँति होते हैं। ऐसे लोगों को कूढ़-मगज कहा जाता है। वे ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, घृणा, चिन्ता, निराशा आदि नकारात्मक विचारों का बहुत-सा कूड़ा अपने मस्तिष्क में भरकर रखते हैं। यद्यपि इसका जीवन में न तो कोई महत्त्व होता है और न ही कोई आवश्यकता होती है। जब उनके दिमाग में वह अधिक हो जाता है तब वे उसे दूसरों पर फैंकने का मौका ढूँढ़ने लगते हैं।
ऐसे लोगों से सदा ही दूरी बनाकर रखनी चाहिए ताकि उनकी गन्दगी से अपने दामन पर कभी छींटे न पड़ सकें। उनकी मूर्खतापूर्ण गन्दगी को एक बार यदि किसी ने स्वीकार कर लिया तो हो सकता है वह भी उनकी ही भाँति बनने लग जाए और फिर उसे लोगों पर गिराने के लिए वह भी अवसर खोजने लगे।
मनुष्य की यह जिन्दगी बहुत ही अमूल्य और ख़ूबसूरत है। उसे इन मूर्खों के कारण कभी बोझिल नहीं बनना चाहिए। सज्जनों को उनके सदा सद्व्यवहार के लिए कृतज्ञता ज्ञापित करनी चाहिए और दुर्जनों के उनके दुर्व्यवहार के लिए क्षमा कर देना चाहिए। यह सूत्र अपनाने वाले अपने जीवन की किसी बाजी में कभी मात नहीं खाते।
कभी-कभी सड़क पर स्वयं आराम से गाड़ी चलते हुए जा रहे हों, उस समय कोई दूसरा चालक तेज गति से अथवा गलत तरीके से अचानक ही सामने आकर तेजी से ब्रेक लगा देता है। तब अपनी गाड़ी उससे टकराते-टकराते बच जाती है। ऐसे में उस तथाकथित मूर्ख चालक से उलझने या गाली-गलौज करने से अच्छा है कि स्वयं पर काबू रखते हुए, उसे भुनभुनाता छोड़कर वहाँ से निकल जाओ।
इससे स्वयं को बहुत आनन्द आता है और अपनी मानसिक शान्ति बनी रहती है। हाँ, उस मूढ़मति को उसकी गलती का अहसास अवश्य करना चाहिए ताकि वह भविष्य में वैसी गलती न करने के लिए सजग रहे। यदि सड़क पर खड़े होकर मारपीट करने लगें या झगड़ा कर लिया जाए तो दूसरे के भेजे में समझदारी की बात नहीं समा सकती। न ही इसे समझदारी नहीं कह सकते हैं कि सड़क पर भौंकने वाले कुत्तों के साथ गाड़ी से उतरकर भौंकना आरम्भ कर दिया जाए। उन्हें उनके रास्ते जाने देना चाहिए।
जिस मनुष्य के पास जो होता है वह दूसरों को वही बाँटता है। जो व्यक्ति सुखी होता है वह सबको सुख बाँटता है और जो दु:खी होता है वह दुःख बाँटता है। इसी प्रकार जो ज्ञानी होता है वह ज्ञान का प्रसार करता है और मूर्ख दूसरों के साथ अपनी मूर्खता साझा करने का प्रयास करता है। दिशाहीन भ्रमित व्यक्ति सब लोगों को भ्रम में रखता है।
स्वयं भयभीत रहने वाला मनुष्य सबको डराने-धमकाने का कार्य करता है। समाज का दबा-कुचला मनुष्य भी सबको दबाकर रखना चाहता है। सूर्य की तरह चमकने वाला इन्सान ही संसार को दिशा-निर्देश देता है। एवंविध एक सफल व्यक्ति सबको सफलता का मन्त्र देता है और वहीं असफल व्यक्ति किसी का मार्गदर्शक नहीं बन पाता।
बहुत से मनोरोगी हमारे आस-पास खुले में घूमते रहते हैं, सभी अस्पताल में भर्ती नहीं किए जाते। मनुष्य को अपनी सोच का दायरा विस्तृत करते हुए सदा ही सकारात्मक विचारों को बढ़ाना चाहिए। अन्यथा उसके मस्तिष्क में नकारात्मक विचारों का कूड़े-कचरा ठीक उसी तरह भरने लगता है जैसे खाली पड़े हुए खेत में फसल न बोने पर वहाँ खरपतवार उगने लगते हैं।
समाज में रहते हुए प्रत्येक सुधी मनुष्य का नैतिक दायित्व बनता है कि वह निराशा के गर्त में डूबे लोगों में आशा की ज्योति जलाने का कार्य करे। ऐसा करने से यदि किसी का जीवन संवर जाएगा तो वह इस उपकार के प्रतिकार स्वरूप आजन्म ऋणी हो जाएगा। इस सुकृत्य से अपने मन को भी सन्तोष मिलेगा।
चन्द्र प्रभा सूद
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