हमें अपनी अच्छाई को या अपने सद् गुणों को कदापि नहीं छोड़ना चाहिए। जब दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता के व्यवहार को नहीं छोड़ते तो हम सज्जनता के गुणों का त्याग क्योंकर करें।
एक दृष्टान्त दिया जाता है कि एक महात्मा नदी में स्नान कर रहे थे। वहाँ उन्हें एक बिच्छु दिखाई दिया। वे उसे एक पत्ते पर रखकर बचाने लगे पर वह फिर नदी में गिर पड़ा। यह क्रम थोड़ी देर तक चलता रहा तो किनारे खड़े उनके शिष्य ने उन्हें यह कहते हुए रोका कि आप इस बिच्छु को बचा रहे हो और यह आपको काट लेगा। इस पर महात्मा जी ने हंसकर उत्तर दिया कि वह अपना कर्म करेगा और मैं अपना। जब वह जीव अपना धर्म नहीं छोड़ता तो मैं इंसान होकर अपना धर्म कैसे छोड़ दूँ?
यह दृष्टान्त हमें सोचने पर मजबूर करता है और शिक्षा देता है कि हर जीव का कार्य निर्धारित है। वह अपने स्वभाव के अनुसार ही कार्य करेगा। इसी प्रकार साँप को कितना भी दूध पिला दो वह डंक मारने से बाज नहीं आएगा। अपने गुण, कर्म व स्वभाव के अनुसार ही जीव व्यवहार करते हैं। साँप की तरह दुष्ट व्यक्ति को कितना भी अपना बना लो, उसके लिए कितने भी भलाई के कार्य कर लो पर समय आने पर वह वार करने से नहीं चूकेगा।
हम सब जानते हैं कि हर मनुष्य में तीन वृत्तियाँ- सात्विक, राजसिक और तामसिक होती हैं। सत्व गुण की प्रधानता होने पर मनुष्य सत्कर्मों की ओर प्रवृत्त होता है और देवतुल्य बन जाता है। जब मनुष्य में राजसी गुणों की अधिकता होती है तो वह मनुष्यता के गुणों को अपनाता है। वह कभी सात्विक गुणों की ओर बढ़ता है तो कभी उसे तामसी वृत्तियाँ ललचाती हैं। तीसरे तामसी गुणों वाले लोग संसार के आकर्षणों में फंसकर समाज विरोधी रास्ते यानि कुमार्ग पर चल पड़ते हैं। तब उन्हें सुधारना कठिन हो जाता है। इस प्रकार अपने इन विशेष गुणों के कारण ही मनुष्य की पहचान बनती है।
हमें सच्चे, परोपकारी सज्जन लोग बहुत अच्छे लगते हैं। परन्तु अपने को और अपनों को इन गुणों से दूर रखना चाहते हैं। यदि सभी सोचने लगें कि अच्छाई का ठेका क्या हमने लिया है? बाकी और लोग भी हैं वे क्यों नहीं अच्छे बनते? यह सोच समाज के लिए घातक बन सकती है।
समाज को सुधारने का ठेका कुछ मुट्ठी भर लोगों का दायित्व नहीं है, हम सबका बराबर का इसमें योगदान अपेक्षित है। तभी स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकेगा।
ईश्वर ने इस संसार में हम सबको कुछ कर दिखाने का अवसर देकर भेजा है। जो उस अवसर का सदुपयोग करते हैं वे अग्रणी बन जाते हैं। जो अपने अवसर से चूक जाते हैं वे असफल होकर इस दुनिया से विदा लेते हैं।
जो अपनी योग्यताओं को पहचान लेते हैं और अपनी अच्छाइयों के बल पर आगे बढ़ते हैं, वे सभी परिस्थितियों में सम रहकर सबके हृदयों पर राज करते हैं। इसके विपरीत समय की धारा में बहकर आकर्षणों में फंस जाते है, समय बीतने पर वे पश्चाताप करते हैं।
इसलिए दुनिया की परवाह किए बिना अपनी अच्छाइयों को न छोड़ने का संकल्प लें। दूसरों की बुराइयों की ओर ध्यान न देना ही उचित है। हम सबको तो बदल नहीं सकते पर अपने गुणों का दामन कसकर पकड़ सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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