अपने बच्चों की सहजता, सरलता और भोलेपन का दुरूपयोग घर के बड़ों को कदापि नहीं करना चाहिए। मेरे कथन पर टिप्पणी करते हुए आप लोग कह सकते हैं कि कोई भी अपने बच्चों का नाजायज उपयोग कैसे कर सकता है?
इस विषय में मेरा यही मानना है कि हम बड़े अपनी सुविधा के लिए अनजाने में ही बच्चों को गलत आदतें सिखाते हैं। घर में छोटे बच्चों से जासूसी जैसा घृणित कार्य बहुत से लोग करवाते हैं।
सास-बहू ने एक-दूसरे की बुराई करते हुए क्या कहा? पति-पत्नी में से किसी एक ने दूसरे साथी के विषय में क्या कहा? ननद-भाभी में से किसने और क्या चुगली की? भाई-बहन में से किसने किसे भला-बुरा कहा? इनके अतिरिक्त और भी कई विषय हो सकते हैं।
छोटे बच्चे को विश्वास में लेकर या उसे किसी खिलौने, चाकलेट, पैसे आदि की रिश्वत देकर अथवा अनावश्यक प्यार जताकर बच्चे से कुरेद-कुरेदकर अपने मतलब की बात जानने की कोशिश लोग करते हैं। इस तरह बच्चे के मन में ताक-झाँक करके छिपकर दूसरों की बातें सुनने की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है।
इसी प्रकार लालच या दबाव या प्यार के ब्लैकमेल के कारण बच्चा चुगली करना सीख जाता है। इसके विपरीत उसी कारण से दूसरों की बातें छुपाने लगता है। फिर धीरे-धीरे अपनी गलतियाँ भी सबसे छुपाने महारत हासिल कर लेता है।
बच्चों को चोरी करना, दूसरे का हक छीनना भी हमीं सिखाते हैं। घर में माँ या दादी या नानी या कोई और सदस्य सबसे छुपाकर उसे खाने की या अन्य कोई चीज यह कहकर दे देते हैं कि किसी को बताना नहीं।
कभी बच्चा अपनी बात मनवाने के लिए जिद करता है या रोता है तो घर के लोग उसकी इच्छा पूरी कर देते हैं। इस तरह हठ करके या रो-धोकर वह अपनी बात मनवाने का आदि हो जाता है। यदि उसकी बात को उसके जिद करने से पहले मान लिया जाए तो कितना ही अच्छा हो जाए।
बच्चा झूठ बोलना घर से ही सीखता है। माता-पिता यदि बच्चे को कहीं नहीं ले जाना चाहते और घर छोड़कर जाना चाहते हैं तो कह देते हैं डाक्टर के पास जा रहे हैं या आफिस जा रहे हैं। बच्चा उनकी यह बात सच मान लेता है और बच्चा चुप हो जाता है।
इसके अतिरिक्त जब कोई अवांछित मित्र या सम्बन्धी घर मिलने आता है या उसका फोन आता है तो घर के सदस्य कहला देते हैं कि वे घर पर नहीं हैं। यहीं से बच्चे के झूठ बोलने की ट्रेनिंग शुरू हो जाती है, आजन्म जिसका प्रयोग वह अपने बचाव के लिए करता है।
घर के सदस्यों का व्यवहार बच्चा बहुत बारीकी से परखता है और उसके मन में सभी सदस्यों की एक छवि अंकित हो जाती है। वद देखता है कि उसके माता-पिता का अपने माता-पिता, भाई-बहनों, सम्बन्धियों, मित्रों और सहकर्मियों के साथ कैसा व्यवहार है। उसी के अनुरूप ही वह भी व्यवहार करने लगता है।
बहुधा बच्चों को हम मुँहफट कह देते हैं। पर उस समय वे सच बोल रहे होते हैं। बड़े अपनी पोल खुल जाने को सहन नहीं कर पाते और बच्चों को दोषी मानकर उन्हें प्रताड़ित करते हैं। वे भूल जाते हैं कि सब उन्हीं के बोए बीज हैं।
बच्चे बेचारे को तो पता ही नहीं होता कि वह क्या कर रहा है? हम बड़ों की साजिश ही उसे इस दलदल में धकेलने की दोषी बनती है। बड़ा होकर जब वह यह सब हरकतें करता हैं तो उसे डाँटते हैं, मारते हैं या सजा देते हैं पर अपने गिरेबान में झाँककर नहीं देखते।
घर छोटे बच्चे की पाठशाला होता है जहाँ पर वह जीवन का ककहरा पढ़ता है। वहीं पर वह अच्छाई और बुराई को देखता है, सीखता है, समझता है और फिर जो उसे सरल और सुविधाजनक मार्ग लगता है उस पर बिना परिणाम की चिन्ता किए चलने लगता है। बच्चों के समक्ष अपने व्यवहार को सन्तुलित रखें ताकि उन मासूमों को दोषी ठहराने की आवश्यकता ही न पड़े।
चन्द्र प्रभा सूद
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