व्यक्ति यदि गहरी नींद में सो रहा हो तो उसे जगाया जा सकता है परन्तु जो सोने का ढोंग कर रहा हो (मचला बन जाए) तो उसे दुनिया की कोई भी ताकत कभी जगा नहीं सकती। कहने का तात्पर्य है कि सोने वाले को जगाया जा सकता है पर जो जाग रहा हो और जानते-बूझते सोने का दिखावा कर रहा हो तो उसे जगाना वाकई टेढ़ी खीर होती है।
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं किसी विषय की जानकारी न होना कोई अपराध नहीं होता। इस कारण अपने मन में हीन भावना नहीं आने देनी चहिए। अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए सदा प्रयत्न करते रहना चाहिए। जानकर या समझकर ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है और स्वयं को ज्ञानवान बनाया जा सकता है। उसके पश्चात सही रास्ते पर चलकर ही मनुष्य सफलता की ऊँचाइयों को छूने में समर्थ हो सकता है।
इसके विपरीत जो मनुष्य किसी विषय को जानता है और समझता है पर फिर भी अज्ञानी बनने का प्रदर्शन करता है, गलत रास्ते का चुनाव करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारता है तो उससे बड़ा मूर्ख कोई और नहीं हो सकता। ऐसे लोगों से सदा ही सावधान रहना आवश्यक होता है। ये लोग स्वयं अपना नुकसान तो करते हैं पर दूसरों को बरबाद करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते।
हम सब जानते हैं कि घर, परिवार, धर्म अथवा समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहण न करने वालों को सभी हेय समझते हैं। कदम-कदम पर उन्हें अपमान का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोगों को अपने जीवन में नाकामयाब होने का मेडल मिलता है जिसे उन्हें सारा जीवन ढोना पड़ता है। उनके भाई-बन्धु ऐसे लोगों से नाराज होकर शीघ्र ही उनसे किनारा कर लेते हैं।
समाज में रहते हुए जब सामाजिक व्यवस्था पर कुठाराघात किया जाता है तब वह चरमराने लगती है। उसका प्रभाव पूरे समाज पर ही पड़ता है। समाज में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास का माहौल बनने लगता है। हर व्यक्ति दूसरे को सन्देह की नजर से देखता है। इस प्रकार वातावरण दूषित हो जाता है, उसमें हर सहृदय व्यक्ति को घुटन महसूस होने लगती है।
जानते-बूझते हम दुनिया की अंधी दौड़ में शामिल हो जाते हैं। जब अपनी आर्थिक, शारीरिक, बौद्धिक अथवा अन्य क्षमताओं में कमजोर होने को हम अनदेखा कर बैठते हैं तब हमें मुँह की खानी पड़ती है। उस समय चारों खाने चित्त होकर हम निराशा का लबादा ओढ़ लेते हैं। हम लोगों से सहानुभूति की आशा करते हैं पर वे हमारा उपहास करते हैं कि हमने अपनी क्षमताओं को जानते हुए भी कुँए में छलाँग लगा दी। तब हम दोषी करार किए हुए कटघरे में खड़े कर दिए जाते हैं।
हम जानते हैं कि रात को जल्दी सोना और प्रात: जल्दी उठना स्वास्थ्यवर्धक होता है फिर भी हम लेट नाइट पार्टियाँ करते हैं। हर प्रकार के स्वास्थ्य के नियमों को धत्ता बताकर ऊल-जलूल खाते हैं। जब रोग हल्ला बोलते हैं तो डाक्टरों के पास जाकर मेहनत की कमाई और समय दोनों बरबाद करते हैं।
हम सब इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि आलस्य करने से हम उन्नति नहीं कर सकते बल्कि पिछड़ जाते हैं पर फिर भी उसे गले लगाकर आनन्दित होते हैं। पढ़ने की आयु में जब कैरियर बनाने का समय होता है तब स्कूल-कालेज बंक करके हीरो बनते हैं। बताइए हो गया न सब गुड़ गोबर।
अपने अंतस् में विराजमान काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी शत्रुओं और बाहरी शत्रुओं से हमारी गहरी छनती है। तब असफलताओं को हम अनजाने में ही दावत दे देते हैं और फिर अपनी हार पर रोते हैं। सारी दुनिया को पानी पी-पीकर कोसते हैं कि किसी से हमारी खुशी सहन नहीं होती।
हम अपने मित्र और शत्रु स्वयं ही होते हैं। यदि हम जागते रहते है यानि कि सचेत रहते हैं तो हम निश्चित ही महान कार्य करते हुए विश्व में अपना एक स्थान बना सकते हैं। इसके विपरीत समझते हुए भी सोने का उपक्रम करते है तो पतन निश्चित होता है। असफलता हमारा स्वागत करने के लिए तैयार बैठी रहती है। इसलिए सदा ही सावधानी बरतनी चाहिए। किसी के जगाने की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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