भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात करने के लिए पाश्चात्य लोग तैयार बैठे हुए हैं। उनके पिछलग्गू देशीय महानुभाव भी आग में घी डालने कार्य कर रहे हैं। इसका दुष्परिणाम है वे विवाह जैसी सामाजिक व्यवस्था को तहस-नहस करना चाहते हैं। पर शायद वे भूल रहे हैं-
यूनान, मिस्र, रोमा सब मिट गए जहाँ से
बाकी बचा है अब तक नामो-निशाँ हमारा।
हमारी सांस्कृतिक विरासत की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि उनको हिला पाना असंभव है।
हालांकि आज इस भौतिकतावादी युग में देखादेखी जीवन मूल्यों का ह्रास हो रहा है। इसका परिणाम तलाक के बढ़ते मुकदमे हैं। बच्चों में धैर्य की कमी के कारण आपसी सामंजस्य में कठिनाई आ रही है। वे भूल जाते हैं कि उनके परिवारी जन उनकी ऐसी दशा देखकर कितना कष्ट भोग रहे हैं। उधर बेचारे निर्दोष बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं जिनके लिए माता-पिता सारे कष्टों को हँसते हुए झेल लेते हैं।
कुछ परिस्थितियों में तलाक लेना उचित हो सकता है पर हर केस में नहीं। पति का पत्नी पर अपने अहं के कारण कटाक्ष करना, मानसिक व शारीरिक शोषण करना, दहेज के लिए प्रताड़ित करना आदि सर्वथा अनुचित है। इस प्रकार की स्थिति होने पर भारतीय दण्ड संहिता में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बहुत से कानूनों का प्रावधान किया है। आवश्यकता होने पर वह उनका उपयोग वह कर सकती है।
ये कानून महिलाओं को उत्पीड़न से रोकने के लिए बनाए गए हैं। इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि इनकी आड़ में अपना स्वार्थ साधा जाए।
कुछ महिलाएँ विवाहेत्तर संबंध, पति से अधिक कमाना, पति का दुर्घटना में विकलांग हो जाना, उसका नपुंसक होना आदि किसी भी कारण से यदि अपने पति से अलग होना चाहती हैं तो वे अपने पति सहित ससुराल के अन्य सभी सदस्यों पर दहेज या प्रताड़ना का झूठा केस दर्ज करवा देती हैं। यह सर्वथा अनुचित है।
अब अदालतें उन महिलाओं के घड़ियाली आँसुओं से पिघलने वाली नहीं हैं। गलत बयानी करने वालों को सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें सजा भी हो सकती है। कानून को मजाक समझना बंद कर देना चाहिए।
विवाह जैसे पवित्र बंधन को दूषित करने वाले चाहे पुरुष हों या महिलाएँ किसी को भी समाज क्षमा नहीं करेगा। यह बात गाँठ बाँध लें कि अपनी सांस्कृतिक विरासत का अपमान करने और दूसरी संस्कृति को आधे-अधूरे मन से अपनाने वालों की स्थिति धोबी के कुत्ते जैसी हो जाती है जो न घर का रहता है न घाट का।
दूसरे शब्दों में हम ऐसा कह सकते हैं कि अपनी विरासत का सम्मान कीजिए। व्यर्थ अहं के कारण उसका तिरस्कार कदापि न करिए। दूसरों की अच्छाइयों को अपनाने में कोई बुराई नहीं पर उन्हें अपने मूल्यों की कसौटी पर पहले परख लें। ऐसा न हो कि बाद में पश्चाताप करने का अवसर भी हाथ से चला जाए।
आज विदेशों की तरह हमारे भारत में भी युवाओं को लिविंग रिलेशनशिप भाने लगी है। अपने मन में विचार कीजिए कि इस संबंध में अपना कहने के लिए कौन है? इस सम्बन्ध से होने वाले बच्चों की जिम्मेदारी किसकी होगी? क्या वह बच्चा ऐसे असंस्कारी तथाकथित माता-पिता का सम्मान कर सकेगा? दोनों के माता-पिता व संबंधी शायद ही इस संबंध को मन से स्वीकार कर पाएँ।
सामाजिक संस्कारों से मुक्त होने का दावा करने वाले ऐसे दूषित विचारों वाले युवा जो अपने साथी की बेवफाई सहन नहीं कर पाते तो क्या इस संबंध में आँखों देखी मक्खी निगल सकेंगे? मेरे विचार में जिन्हें परिवार में रहकर संबंध निभाने नहीं आते वे इसे भी अधिक समय तक नहीं निभा सकते। वहाँ भी नित्य के लड़ाई-झगड़ों से दो-चार होते हुए उनका शीघ्र ही अलग होना निश्चित है।
भेड़चाल से अपना ही नुकसान होता है। यथासंभव इससे बचने का प्रयास करिए। अपनी घर-गृहस्थी की सारी जिम्मेदारियों को प्रसन्नतापूर्वक निभाइए फिर देखिए आपको चारों ओर खुशियों की वर्षा होती मिलेगी।
चन्द्र प्रभा सूद
Email : cprabas59@gmail. com
Blog : http//prabhavmanthan.blogpost.com/2015/5blogpost_29html
Twitter : http//tco/86whejp