जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त ऐसी अनेक घटनाएँ मनुष्य के जीवन में घटती हैं जिनका कारण उसका प्रारब्ध होता है। प्रारब्ध का अर्थ है- परिपक्व कर्म। हमारे पूर्वकृत कर्मों में जो जब जिस समय परिपक्व हो जाते हैं, उन्हें प्रारब्ध की संज्ञा मिल जाती है। यह सिलसिला कालक्रम के अनुरूप चलता रहता है। इसमें वर्ष भी लगते हैं और जन्म भी। प्रारब्ध तीन तरह के होते है मन्द, तीव्र तथा तीव्रतम।
कई बार क्रिया भाव में और विचारों का इतना तीव्रतम संयोग होता है कि वे तुरन्त, प्रारब्ध कर्म का रूप ले लेते हैं और अपना फल प्रकट करने में सक्षम सिद्ध होते हैं। प्रारब्ध का अर्थ ही है वह कर्म जिसका फल भोगने से हम बच नहीं सकते। इसे सामान्य जीवन क्रम के बैंक और उसके फिक्स डिपॉजिट के उदाहरण से समझा जा सकता है।
मनुष्य के कर्म से ही उसका प्रारब्ध बनता है । प्रारब्ध कर्म को अपने वर्तमान जन्म में भोगना होता है। दूसरे शब्दों में इसे उत्पति कर्म कह सकते हैं जिसे व्यक्ति के जींस तय करते हैं कि उसका प्रारब्ध क्या होगा। मनुष्य जब माता के गर्भ में आता है, उसी समय से ही उसका प्रारब्ध निर्धारित हो जाता है। प्रारब्ध कर्म इस जन्म के भोगों का निर्धारण करते हैं। प्रारब्ध कर्म के अनुसार ही मनुष्य की जाति, आयु, गुण और उसके भोग का निर्धारण होता है। ज्योतिषी कुंडली में प्रारब्ध को नवम भाव या नवमेश से देखते है। प्रारब्ध कर्म के विषय में तुलसीदास जी कहते हैं-
प्रारब्ध पहले रचा, पीछे रचा यह शरीर।
तुलसी चिन्ता क्यो करे, भज ले श्रीरघुबीर।।
कर्मसिद्धान्त कहता है कि प्रत्येक सकारात्मक कर्म मनुष्य के पुण्य का कारक होता है और उसका सकारात्मक फल अर्थात सुख उसे प्राप्त होता है। इसी तरह प्रत्येक नकारात्मक कर्म से मनुष्य पाप को उत्पन्न करता है। उसे नकारात्मक फल यानी दु:ख के रूप में उसे ही भुगतना पडता है। यह कर्मसिद्धान्त अटल है और अपरिवर्तनशील है।
व्यक्ति का वर्तमान जन्म उस परिवार में होता है जिसकी परिस्थिति उसका प्रारब्ध भोगने के लिए अनुकूल हो। उस परिवार के सदस्यों के साथ उसका पूर्वजन्म का लेन-देन का सम्बन्ध होता है। अपने जीवन की सम्पूर्ण यात्रा में मनुष्य किसी पुराने लेन-देन को चुका रहा होता है या फिर कोई नया लेन-देन कर रहा होता है। यदि यह लेन-देन इस वर्तमान जन्म में न निपट सके तो उसे आगामी जन्मों में बराबर करना पड़ता है। मनीषियों के अनुसार यह संभव है कि आने वाले जन्म में वर्तमान जन्म के परिवार वालों के साथ होने वाला उसका सम्बन्ध और लिंग बदल जाए। हो सकता है कि इस जन्म का पिता है अगले जन्म में उसके बेटे, बेटी या अन्य सम्बन्धी के रूप में जन्म ले।
मनुष्य का शरीर किसी दिन किस प्रकार व्यवहार करेगा, वह इस बात पर निर्भर करता है कि उस दिन उसका प्रारब्ध किस तरह का है। ज्ञानी जन ही यह रहस्य जान सकते हैं।
कई बार साधारण प्रतिभा वाले लोगों को उस दिन घटने वाली किसी घटना का ज्ञान हो जाता है। कभी-कभी मनुष्य जब प्रात:काल जागता है तो कुछ विचित्र-सा अनुभव करता हैं। पर वह उसमें छिपे हुए अर्थ को समझ नहीं पाता। स्वप्न में उसे कुछ ऐसे लोग दिखाई देते हैं जिन्हें वह पहचानता है और कुछ लोग ऐसे दिखाई देते हैं जिन्हें वह जानता तक नहीं।
कुछ स्वप्न भी प्रारब्ध से जुड़े होते हैं। इसका अर्थ यह है कि उस तंत्र में बहुत बड़ी मात्रा में यादें जमा रहती हैं। ये सभी यादें यदि एक साथ मनुष्य के स्वप्न में आ जाएँ तो दिमाग की नसें मानो फटने लगती हैं। ये यादें इतनी अधिक होती हैं कि इन्हें सम्हाल पाना मनुष्य के लिए बहुत कठिन हो जाता है। स्वप्न में हर प्रकार की अजीबोगरीब घटनाएँ शामिल होती हैं।
इसलिए प्रकृति ने एक ऐसा रास्ता निकाला है कि याददाश्त के एक हिस्से से मनुष्य को एक ही एक बार में निपटना होता है। यह प्रारब्ध का ही एक रूप है। इसका तात्पर्य यह है कि प्रारब्ध में जो यादें अपना काम कर रही हैं, वे मनुष्य के अंतस में ही विद्यमान हैं। जब वे सामने उभर कर आते हैं तो यदा कदा भविष्य की घटनाओं का संकेत भी दे जाते हैं।
यदि कोई समझ सके तो प्रारब्ध के स्वप्न कई बातों की ओर संकेत करते हुए बहुत-सी गुत्थियों को सुलझा देते हैं। जो लोग अपने जीवन को बहुत बारीकी से देखते हैं, वे नशीले और उत्तेजक पदार्थों से दूर रहते हैं। अगर ऐसे पदार्थों का सेवन किया जाए तो मनुष्य कोई भी चेतावनी समझ नहीं सकता तब अपने मार्ग से भटक सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
Email : cprabas59@gmail. com
Blog : http//prabhavmanthan.blogpost.com/2015/5blogpost_29html
Twitter : http//tco/86whejp