माँ घर और परिवार की धुरी या केन्द्र बिन्दु होती है। घर के सारे सदस्य उसी के चारों ओर घूमते रहते हैं। उसके बिना घर घर नहीं रह जाता, वह श्मशान के समान बन जाता है। उस घर में पसरने वाला सन्नाटा बहुत ही कष्टदायी होता है।
आज भी पुरुष प्रधान समाज में वही घर का मुखिया कहा जाता है। घर के कार्यों का बटवारा मनीषियों के अनुसार इस प्रकार किया गया है कि उसमेँ किसी भी तरह के झगड़े की गुँजाइश नहीं रह जाती। पति पुरुष का कार्य होता है कि वह धनार्जन करके लाए और अपनी पत्नी को सौंप दे। पत्नी का कार्य होता है घर-गृहस्थी का सुचारू रूप से संचालन करना ।
यह गृहस्थी रूपी गाड़ी को चलाने का सकारात्मक तरीका है। आज स्थितियों में कुछ परिवर्तन आ गया है। लड़कियाँ भी उच्च शिक्षा ग्रहण करके अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं। यानी वे भी अपना व्यापार या नौकरी करने लगी हैं।
स्थितियों में थोड़ा परिवर्तन आया अवश्य है। पुरुष आज भी घर का मुखिया है। वह कमाकर लाएगा वाली स्थिति बदल गई है। आज स्त्री भी धन कमाती है। वह घर और व्यवसाय दोनों क्षेत्रों को दक्षता से सम्हालती हैं। उनमें सामञ्जस्य स्थापित करके सफलता की बुलन्दियों को छूती जा रही है।
पुरुष की अहंवादी मानसिकता को स्त्री के कमाने से परहेज नहीं है परन्तु स्वयं होकर उसके कामों में हाथ बटाना उसे आज भी स्वीकार्य नहीं। वह महाराजा की तरह बैठकर बस आदेश देना चाहता है और अपनी सेवा करवाना चाहता है। घर कैसे चल रहा है? उसे इससे कुछ भी लेना देना नहीं होता।
वैसे यहाँ भी अपवाद हैं। आज कई पुरुष घरेलू कार्यों में पत्नी की सहायता करने के लिए स्वयं अपना आगे हाथ बढ़ाने लगे हैं। इससे दोनों में सहृदयता बढ़ती है और तालमेल बन जाता है, जो गृहस्थी के लिए आवश्यक है। आजकल बढ़ते एकल परिवारों में दोनों का मिल-जुलकर सामञ्जस्यपूर्वक रहना बहुत ही आवश्यक हो जाता है।
कुछ पुरुष ऐसे भी हैं जिनकी पत्नी नौकरी या व्यवसाय करे तो उनकी नाक नीची हो जाती है। वे कूप मण्डूक की तरह होते हैं। समय की माँग के अनुसार उन्हें अपने विचारों में बदलाव लाने की आवश्यकता है। इसलिए उन घरों मे स्त्रियों के पास अपना मन मसोसकर रह जाने के अतिरिक्त और कोई चारा ही नहीं बचता। यह कोई अच्छी स्थिति नहीं है।
खैर, स्थितियाँ कैसी भी विकट क्यों न हों, स्त्री को घर का केन्द्र बनने से कोई नहीं रोक सकता। पति उसके सहयोग के बिना एक कदम नहीं चल सकता। घर और बाहर पत्नी के अवलम्ब की आवश्यकता उसे सदा होती है।
बच्चे जो अपने पिता से डरते हैं वे अपनी हर बात माँ के माध्यम से मनवा लेते हैं, पिता से नहीं कहते। अन्य बच्चे अपनी माता से अतिशय प्रेम करने के कारण उस पर आश्रित रहते हैं और अपनी सारी बातें माँ से पूरी करवाते हैं।
घर के कामकाज से लेकर बच्चों की हर छोटी-बड़ी जरूरत का ध्यान माँ रखती है। जो चौबीसों घण्टे सुगमता से उपलब्ध रहेगा, बच्चे उसी के होकर रहते हैं। फिर उन्हें इस बात का भी ज्ञान होता है कि घर में पिता अथवा अन्य किसी सदस्य के प्रकोप से माँ ही बचा सकती है।
घर की स्त्री को ही घर-परिवार से व्यवहार करने अथवा लेनदेन की अधिक समझ होती है। इसलिए उसका दिया गया परामर्श लाभदायक होता है। इसे मानने में परहेज नहीं करना चाहिए। जिस घर को माँ सम्हाल लेती है, वह कमियों के होते हुए स्वर्ग के समान सुखद होता है।
ईश्वर ने सहृदय, उदार, कोमल और करुणा की साक्षात मूर्ति स्त्री को ही बनाया है। अपने घर और परिवार में सामञ्जस्य स्थापित करने, सभी सदस्यों की देखभाल करने, बच्चों का लालन-पालन करने साथ-साथ उन्हें संस्कारित करने, अतिथि सत्कार आदि समस्त दायित्वों का प्रसन्नता और सलीके से निर्वहण करने के कारण ही एक माँ परिवार की धुरी होती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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