वैवाहिक जीवन की सफलता पति-पत्नी के परस्पर आपसी सामञ्जस्य पर निर्भर करती है। वह किसी प्रकार के व्रतों पर निर्भर नहीं करती। यदि दोनों मिल-जुलकर प्रेम और सद्भावना से रहते हैं तो घर-परिवार में सब शुभ होता है। माता-पिता प्रसन्न रहते हैं, बच्चे संस्कारी व आज्ञाकारी बनते हैं और आने वाले अतिथि उनकी प्रशंसा करते नहीं अघाते।
इसके विपरीत यदि घर में कलह-क्लेश हो तो धन-समृद्धि सब भागने लगती है। घर का सुख-चैन तिरोहित होने लगता है। पति और पत्नी दोनों स्वयं को सुपर सिद्ध करने के लिए झगड़ा करने के बहाने ढूँढते रहते हैं।
प्रतिदिन के झगड़ों से बच्चों पर बुरा असर होने लगता है, उनकी पढ़ाई पर प्रभाव पड़ता है। उनका विकास प्रभावित होता है। वे उच्छृँखल और उद्दण्ड बन जाते हैं। माता-पिता के झगड़ों के कारण वे अवसरवादी बन जाते हैं। उन्हें दूसरों के सामने अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
पति और पत्नी के आपसी सौहार्द के कारण ही कोई घर स्वर्ग के समान बन सकता है। अभावों के होते हुए भी वे अपनी इस जीवन नैय्या को आसानी से पार ले जा सकते हैं। उनका सर्वत्र सम्मान होता है। ऐसे घरों की सुगन्ध दूर-दूर तक फैलती है। लोग ऐसे आदर्श परिवार के उदाहरण देते नहीं थकते।
जिन परिवारों में सभी सदस्य एक-दूसरे पर विश्वास नहीं करते, उनमें आपसी नोकझौंक चलती रहती है, हर कोई किसी दूसरे को नीचा दिखाने का यत्न करता है, वहाँ दुखों और कष्टों की भरमार रहती है। घर में हर प्रकार की सुख-समृद्धि होने पर भी वहाँ शान्ति नहीं होती। मनोमालिन्य बढ़ जाने से घर की एकता तार-तार होने लगती है।
बिखराव की कगार पर खड़े ऐसे घरों के बच्चों का व्यक्तित्व खण्डित होकर टुकड़ों में बट जाता है। वे बच्चे या तो अन्तर्मुखी हो जाते हैं या फिर विद्रोही बन जाते हैं। उन्हें रिश्तों को अपना कहने में शर्म महसूस होती है। उनके लिए अपने माता-पिता का सम्मान केवल दिखावा होता है, वे ऐसा स्वार्थवश करते हैं।
ऐसे घर लम्बे समय तक जीवन्त नहीं रह पाते, उनमें श्मशान की सी चुप्पी घर कर जाती है। वहाँ रहने वालों को भी अपनापन कहीं नहीं दिखाई देता। सभी घर से दूर रहने और एक-दूसरे को तिरस्कृत करने के अवसर तलाशते रहते हैं। घर में एकजुटता न होने के कारण वहाँ सब बिखर जाता है। किसी को कुछ भी हासिल नहीं हो पाता।
घर में रहते हुए यदि पति या पत्नी में से कोई भी स्वच्छन्द हो जाए अथवा विवाहेत्तर सम्बन्धों में संलिप्त हो जाए तो ऐसा सम्बन्ध किसी को भी स्वीकार्य नहीं होता। ऐसे सम्बन्ध दूसरे साथी को किसी भी शर्त पर मंजूर नहीं होते।
जीवन साथी को तो क्या समाज में भी मान्य नहीं होते। इनके चलते परिवार टूटन की कगार पर आ जाता है। यह बहुत दुखद स्थिति होती है जिसका भुगतान उन मासूम बच्चों को जीवन भर भुगतना पड़ता है जिनके पालन-पोषण का दायित्व माता और पिता दोनों का होता है।
जो पुरुष या स्त्री अपने दायित्वों से मुँह मोड़कर किसी भी कारण से घर से बाहर रहते हैं, वहाँ पर नित्य तू तू मैं मैं होने से स्थितियाँ विपरीत हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त जहाँ घर का पुरुष कुमार्गगामी हो या समाज विरोधी कार्यों में संलिप्त हो जाए तो उस घर से दुर्भाग्य कभी भी पीछा नहीं छोड़ता।
हर युवक और युवती सुनहले सपने लेकर वैवाहिक जीवन में प्रवेश करता है। कोई नहीं चाहता कि उसका जीवन कभी कड़वाहट भर जाए या उनमें कभी अलगाव की स्थितियाँ बनें। अपने जीवन को वे सफलतापूर्वक, एक उदाहरण बनाकर व्यतीत करना चाहते हैं।
वैवाहिक जीवन की सफलता तभी सम्भव हो सकती है जब घर के सभी सदस्य एक मुट्ठी की तरह रहते हों। वहाँ तेरे और मेरे के स्थान पर हम और हमारे का राग होना चाहिए। छोटे हों या बड़े सभी एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करने वाले हों। मन से भी वे किसी का अहित करने वाले न बनें। अपने पूर्वाग्रहों और मिथ्या अभिमान का सर्वथा त्याग करना चाहिए यानी उनको होम कर देना चाहिए।
यदि इन छोटी-छोटी बातों को आत्मसात कर लिया जाए तो कोई कारण नहीं कि गृहस्थी की गाड़ी सफलतापूर्वक न चल सके।
चन्द्र प्रभा सूद
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