समाज में रहते हुए मनुष्य को नानाविध प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है। जो लोग उनसे प्रभावित हुए बिना अपने रास्ते पर चलते रहते हैं वे जीवन की ऊँचाइयों में छूते हैं। इसके विपरीत जो उनके झाँसे में आ जाते हैं वे अपना मार्ग भटक जाते हैं। उनमें से कुछ लोग कभी-कभी भटकते हुए किसी सज्जन की संगति पाकर सन्मार्ग की ओर मुड़ जाते हैं।
परन्तु कुछ ऐसे हठी प्रकृति के लोग भी होते हैं जिनके लिए हम कह सकते हैं कि उन्होंने अपने सही रास्ते पर लौटकर न आने की कसम खा ली है। ऐसे ही ये लोग भ्रष्टाचार, अनाचार, आतंकवाद, स्मगलिंग, चोरी-डकैती, कालाबाजारी आदि समाज विरोधी गतिविधियों में लिप्त होते हैं।
इन लोगों की ऊपरी चमक-दमक से प्रभावित होकर कुछ लोग इनके चंगुल में फंस जाते हैं। जितना गहरे वे पैठते जाते हैं उतना ही अधिक दलदल में डूबते जाते हैं। तब उनके पास वापसी का रास्ता ही नहीं बचता, सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण है कि यदि वे उस नरक से बाहर निकलना भी चाहें तो उनके साथी ही उन्हें ऐसा करने नहीं देते और यदि वे किसी तरह जबरदस्ती वहाँ से बाहर निकलने की सोचें तो उन्हें जान से मार डालते हैं।
इसीलिए सयानों ने कहा है कि एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है। यह अक्षरश: सत्य है। इसका कारण शायद यही रहा होगा कि एक दुष्ट बहुतों के लिए घातक होता है। उसकी देखा देखी कई और लोग कुमार्गगामी हो जाते हैं।
एक दृष्टान्त यहाँ देना चाहती हूँ। अपने बच्चे को सही रास्ते पर लाने के लिए पिता ने एक उपाय किया। उन्होंने बढ़िया सेब की एक टोकरी ली। उसमें एक सड़ा हुआ सेब रख दिया। शीघ्र ही उस सड़े हुए सेब के कारण बाकी अच्छे सेब भी खराब होने लगे। तब उस बच्चे को कुसंगति की हानि समझ में आई। उसने गलत रास्ते पर न जाने का पिता को वचन दिया।
यह घटना यही समझाती है कि एक खराब सेब बढ़िया सेबों को शीघ्र बरबाद कर सकता है। एक मछली तालाब को गंदा कर सकती है। उसी प्रकार एक दुर्जन व्यक्ति भी अन्य बहुत से लोगों का जीवन दाँव पर लगा सकता है। अपना जीवन तो वह नष्ट करता ही है अपने साथियों को भी बरबाद कर देता है।
ऐसे लोग केवल अपने स्वार्थों को साधते हैं। वे किसी की भावनाओं का कभी सम्मान नहीं करते। वे विषधारी सर्प की तरह होते हैं जिसे कितना भी दूध पिला लो उनका स्वभाव ही ऐसा होता है कि वे कभी भी किसी को भी डंक मार सकते हैं।
उन पर विश्वास करना सबसे बड़ी मूर्खता होती है। न उनकी दोस्ती अच्छी होती है और न ही दुश्मनी। उनका कोई भरोसा नहीं कि कब वे खेल-खेल में किसी के प्राणों का हंसते हुए हरण कर लें।
अत: सबको सावधानी बरतने की या सतर्क रहने की बहुत आवश्यकता है। अपने विचारों में दृढ़ता लाना ही समस्या से बचने का उपाय है। तभी मनुष्य को सुख-शांति मिलती है और वह चैन की नींद सो सकता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि कुमार्ग से सन्मार्ग की ओर लौटना असंभव तो नहीं कठिन अवश्य होता है। हो सके तो प्रभु से सद् बुद्धि की याचना करते हुए उसे सन्मार्ग पर ले जाने की प्रार्थना करें। ऐसा करने से लोक-परलोक दोनों सुधर जाएँगे। मनुष्य अपने लक्ष्य मोक्ष की ओर कदम बढ़ाता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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