"वो,,, शिवा अनन्या की तरफ देखकर कहते हुए रिक्शेवाले बाबा से बोली -" बाबा आज वापसी में हमें लेने न आइएगा , हमें काॅलेज में आज समय लगेगा ,कब वापसी हो पाएगी !कह न सकती तो आपको कितने समय बुलाऊँ !!तो हम वापसी में किसी और रिक्शे से निकल जाएंगे ।"
अनन्या को समझ न आया कि शिवा ये क्या कह रही है पर वो चुप रही ।
दोनों का काॅलेज आ गया था और ।अनन्या शिवा के साथ काॅलेज के अंदर जाते हुए उससे पूछ बैठी -"शिवा, तू बताने जा रही थी कि शुभ्रा काकी ने क्यों बुलाया था फिर बात रोककर रिक्शेवाले वाले बाबा को वापसी में आने से मना कर दिया !! कुछ पल्ले न पडा़ यार ।"
" अरे वो शुभ्रा काकी ने कहा था कि लौटते में मेरे कपडे़ ले आना जो निराली बस्ती के शांति मार्केट में सोमराज दर्जी की दुकान से और अपना काॅलेज और निराली बस्ती वाली सड़क दोनों विपरीत दिशाओं में हैं !! ऐसे में रिक्शे वाले बाबा को हमारे लिए बहुत रिक्शा चलाना पड़ता !!"शिवा ने कहा ।
दोनों अपना काॅलेज खत्म करके निराली बस्ती की ओर रिक्शा करके चल दीं।निराली बस्ती,,, जहाँ निम्न वर्ग के गरीब लोगों की एक पूरी बस्ती ही बसी थी जिसमें
जिसमें दर्जी,रिक्शेवाले, ठेलेवाले, ऐसे ही छोटे-मोटे कार्य करके मुश्किल से अपना जीवन व्यतीत करने वाले जन रहते थे।
दोनों ने सड़क पर ही अपना रिक्शा रुकवाया और,निराली बस्ती ,शांति मार्केट के लिए पैदल ही चलने लगीं ।
कुछ झुग्गी-झोपडी़ वाले और कुछ कच्चे मकानों से होते हुए वे शांति मार्केट पहुँचीं और वहाँ से कपडे़ लेकर वापस हो रही थीं कि शिवा की निगाह एक झोपड़ पट्टी नुमा कच्चे मकान के बाहर बाँस की बल्लियों के सहारे तनी काली पन्नी के नीचे खडे़ रिक्शे पर पडी़ ।
"ऐ अनन्या देख न ! वो रिक्शा तो रिक्शे वाले बाबा के जैसा लग रहा है !! " शिवा ने अनन्या से कहा।
" नहीं यार ,, वो रिक्शा थोडे़ ही होगा ,, चल जल्दी बहुत जोरों की भूख लगी है ।" अनन्या ने शिवा का हाथ खींचते हुए कहा और दोनों वहाँ से रिक्शा कर घर के लिए निकल लीं ।
ये कैसा अपनत्व था जो दोनों को उन रिक्शे वाले बाबा से जो उनके मन मस्तिष्क से वो रिक्शे वाले बाबा निकलते ही न थे !!
" शिवा, तूने एक चीज़ पर ध्यान दिया है !! जब पहली बार हम रिक्शे वाले बाबा के रिक्शे से काॅलेज उतरे थे तब वो काॅलेज को कैसे देख रहे थे !! उनकी आँखों में आँसू भरे थे और उसके बाद जब भी हमारा काॅलेज आने वाला होता है तब वे अपना अँगौछा खींचकर माथे तक कर लेते हैं जैसे काॅलेज की तरफ देखना ही न चाहते हों !!" अनन्या ने रोटी के कौर में सब्जी लपेटकर कौर मुँह में रखते हुए शिवा से कहा।
"हाँ यार ,,, ये तो मैंने भी महसूस किया है और एक चीज़ क्या तूने महसूस की ??" शिवा ने खाते हुए अनन्या से पूछा।
"क्या !!" अनन्या ने कहा ।
"यही कि वे उतने बुजुर्ग लगते नहीं हैं ,, हालात के मारे ज्यादा लगते हैं ,, जैसे हालात ने उन्हें समय से पहले ही बूढा़ कर दिया हो !!" शिवा पानी का ग्लास उठाते हुए बोली और पानी पीने लगी ।
"हाँ तू सही कह रही है ,,, अनन्या ने कहा और वो दोनों थालियां आँगन में रखने चली गई।
जो भी था वो समय अपने गर्भ में छुपाए मुस्कुरा रहा था मानो कह रहा हो कि जब मेरा मन होगा तभी मैं सब प्रकट करूँगा मगर धीरे -धीरे ।
दिन बीत रहे थे और उन दोनों की दो-चार दिन की छुट्टियां होने वाली थीं ।
"सुन ना शिवा ,, इस बार तू जयपुर न जाकर कानपुर जा और वहाँ पहुँच कर अपनी माँ को फोन करके कह कि माँ मैं स्टेशन आ गई हूँ और या तो मुझे लेने आओ या घर का पता बताओ ।"अनन्या ने अपने घर बरेली जाने के लिए बैग में अपने कपडे़ रखते हुए कहा ।
"नहीं यार ,, कोई फायदा नहीं है ,कल ही माँ का फोन आया था जब तू ऊपर शुभ्रा काकी के पास बैठी थी ,माँ ने कहा था कि मामा को थोडा़ काम आ गया है तो वो तुझे लेने जयपुर स्टेशन न आ पाएंगे तो तू स्टेशन से अकेले ही नाना जी के घर चली जाना और इस बार मैं न आ पा रही हूँ वहाँ ।शिवा ने बेमन से अपने कपडे़ बैग में डालते हुए कहा।
"यार ऐसे तो तुझे कभी पता न चल पाएगा कि तेरी माँ तुझे तेरे ही घर कानपुर क्यों न आने देती है !!
मैं तो तय कर ली हूँ कि इस बार माँ से जानकर रहूँगी कि वो ननिहाल का नाम तक क्यों न लेती हैं !" अनन्या कपडे़ रखते हुए बोली।
शिवा ने कहा -" नहीं ,मैं सोच रही हूँ कि इस बार माँ न आ रही हैं तो मामा से कहूँ कि मुझे माँ के पास कानपुर ले चलें ,देखूँ तो वो क्या कहते हैं
अगले दिवस शिवा और अनन्या दोनों अपने -अपने गंतव्य पहुँचने के लिए तैयार होकर कमरे से निकलकर बाहर सड़क की तरफ आने लगीं जहाँ उन्होने रिक्शेवाले बाबा को आने को कहा था ।उन्होने दूर से देखा कि रिक्शेवाले बाबा सड़क के किनारे अपना रिक्शा लिए हुए खडे़ थे।
"यार रिक्शेवाले बाबा समय के बहुत पक्के हैं ,,, सात बजे कहा था आने को तो अभी सात बजने में दो मिनट बचे हैं और ये आकर खडे़ भी हो गए !" अनन्या ने शिवा से कहा।
"हाँ ,वही तो !"शिवा बोली और दोनों रिक्शेवाले बाबा के पास पहुँचने ही वाली थीं कि एक आदमी ने आकर उनसे पूछा --"
लिसेन ,विल यू कम टु शारदानगर?
फिर स्वयं से बोला -- हूम आइ एम आस्किंग इन इंग्लिश!
दिस रिक्शा ड्राइवर एन्ड इंग्लिश! हा !हा!हा कहते हुए वो हँसने लगा ।
आई विल नाट गो टु शारदा नगर,आइ हैव टु पिक अप पैसेंजर्स टु स्टेशन ।
रिक्शेवाले बाबा बोले और उस आदमी का मुँह खुला का खुला रह गया ।
शिवा और अनन्या भी हैरानी से एक दूसरे को देखने लगीं ।
"यार रिक्शेवाले बाबा ने इंग्लिश में कही बात का उत्तर इंग्लिश में दिया !! इसका मतलब जानती है ! रिक्शेवाले बाबा पढे़-लिखे हैं और जिस तरह इन्होने उत्तर दिया उससे यही लग रहा है कि ये अच्छे घर के हैं पर ऐसी क्या परिस्थिति रही होगी जो उन्हें रिक्शा खींचना पड़ रहा है !!" शिवा ने हैरानी में भरे हुए अनन्या से कहा और अनन्या ने भी -"हाँ यार " कहते हुए उसकी बात से सहमति व्यक्त की और दोनों रिक्शे पर बैठ गईं और रिक्शेवाले बाबा उन्हें स्टेशन लेकर आने लगे ।..........शेष अगले भाग में।