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21) " इन आंखों को तलाश तेरी"😏😏😏

26 सितम्बर 2021

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     " इन आंखों को तलाश तेरी"😏😏😏



अब आगे.....


"आप यहां इतने हाईप्रोफाइल होटेल में मुझे क्यों लाए हैं?" राधा सामने गेट कि ओर देखते हुए बोली।

" तो क्या चाय कि टपरी पर लेकर चलूं?" टेढ़ा -सा जवाब देते हुए यश ने राधा को घुरकर देखा।

" नो प्रॉब्लम।" राधा ने मुंह बिचकाते हुए कहा।

" बट मुझे प्रॉब्लम है।" यश ने यों मुस्कुरा कर कहा कि राधा भी मुस्कुरा उठी।

" ऐसे मुस्कुराने कि आदत है क्या तुम्हें?" यश स्लो मोशन में कार ड्राइव करते हुए बोला।

" क्यों? कोई प्रॉब्लम है आपको?" राधा ने बहत्तर कोस का मुंह बनाते हुए कहा।

" मुझे नही प्रॉब्लम तो तुम्हें होने वाली है मिस ब्यूटी।" एक बार फिर बड़ी अदा से मुस्कुराते हुए यश बोला।

" आपको भी बेवजह मुस्कुराने कि आदत है क्या?" ईट का जवाब पत्थर से देने कि तर्ज पर राधा ने पूछा।

" हां अब जैसी संगती कर रहा हूं वैसी रंगती भी तो होनी चाहिए हैं न मिस राधा जी।" अपनी हंसी दबाते हुए यश ने बोला और अचानक से ब्रेक लगा दिया। राधा भरभराकर यश के कंधे से टकराई।



" ड्रामा ही करना है मुझसे चिपकने कि कोशिश मत करना समझी। मैं बॉस हूं तुम्हारा याद रखना। चलो अब कार से उतर कर एक अच्छी जी एफ होने का ड्रामा करो। मैं कार को पार्किंग साईड रखकर आता हूं।" यश, राधा को घूरते हुए बोला।

"ओके।" खींझे हुए स्वर में राधा बोली और कार से उतर गई।

कार को लेकर यश एक नजर राधा पर डालते हुए पार्किंग साईड चला गया।

तभी वहां पर मिस्टर सुलेख कि कार ने एंट्री ली। प्रेमा मुस्कुराते हुए सुलेख के बगल में बैठें होटेल को सामने के कांच स्क्रीन से देख रही हैं।


" हे भगवान! मैं इस अकड़ू को ज्यादा बर्दास्त नहीं कर सकतीं हूं। मुझे उस दिन इंटरव्यू के लिए जाना ही नहीं चाहिए था। कैसा बॉस हैं ये हिटलर? जब देखो तब मुझे नीचा ही दिखाने कि कोशिश करते रहता है। मेरे पास अभी 500  मात्र है। कैसे बिल पे करूंगी इतने महंगे होटेल का?" निराशा से राधा बुदबुदाती रह गई।


" क्या सोच रही हों मिस ब्यूटी?" अचानक से यश उसके सामने आते हुए बोला।

" मैं.. कुछ नहीं।" खुद को नॉर्मल दिखाती -हुई राधा बोली।

" अब अंदर चले या यहीं खड़े रहना है?" यश ने कहा और आगे बढ़ गया।


दोनों होटेल के अंदर एक ओर टेबल के पास रखे हुए दो चेयर पर आमने -सामने बैठ गए। 

इधर प्रेमा और सुलेख भी होटेल के अंदर जाते हैं। यश और राधा जहां पर बैठें हुए हैं वहां से थोड़ी ही दूर पर लेफ्ट साइड में सुलेख और प्रेमा भी आमने -सामने बैठ जाते हैं। थोड़ी ही देर बाद सुलेख के पास एक वेटर आता है जिसे सुलेख मेन्युकार्ड देखकर कुछ ऑर्डर करता है।



" क्या लेंगे सर एंड मैम?" मेन्युकार्ड को देखते हुए उसने पूछा।

" मिस राधा! जरा मेन्युकार्ड मुझे पास कीजिए।" यश ने कहा। राधा ने मेन्युकार्ड उसकी ओर सरका दिया।

"  रायता, पालक पनीर, ईडली, मसाला डोसा, बोंबी फ्राई, दही वड़ा, गुलाब जामुन, पाव भाजी, पुरी भाजी और चिकन मसाला। इतना काफ़ी है हम दोनों के लिए।" वेटर को ऑर्डर देते हुए यश बोला।

" मैं ये सब नहीं खाती हूं। मेरे लिए फ्राइड राइस और छोले भटूरे ले आइएगा।" राधा ने वेटर को रोकते हुए कहा और अपना ऑर्डर देने के बाद यश को घूरने लगी।

" no, मैंने जो ऑर्डर दिया है वहीं हम दोनों खायेंगे ओके।" यश जिदभरे स्वर में बोला।

" मैं नॉनवेज नहीं खाती हूं और मैं आपकी तरह ज्यादा खाना नहीं खाती।" राधा अपने गुस्से को काबू में करते हुए बोली।


" तुम्हें कैसे पता कि मैं ज्यादा खाता हूं?" यश ने सवाल पूछा।

" क्योंकि आप इतने सारे डिसेज ऑर्डर कर रहे हैं तो पता तो चलेगा ही न?" राधा ने जहरबुझे स्वर में कहा। बेचारा वेटर इन दोनों को बारी -बारी से देखें जा रहा हैं।


" अरे यार! रोज-रोज घर का खाना खा-खाकर पक गया हूं। तो आज अपनें मन से ऑर्डर कर रहा हूं तो तुम्हें क्या प्रॉब्लम है?" यश ने ऐसे देखा मानों राधा के दो सींग उग आए हो दोनों कान के ऊपर।


" तो क्या मैं भी आपका ही ऑर्डर किया खाना खाऊं?" राधा सर्द आवाज़ में बोली।

" यहीं तो कब से समझा रहा हूं।" यश ने अपना माथा पकड़ लिया।

" आपकी प्रॉब्लम क्या है? मैं अपनी मर्जी से खाना,खाना चाहती हूं।" राधा ने तैश में आकर कहा।

" मैं तुम्हारा बॉस हूं। अभी जो मैंने ऑर्डर किया है वहीं तुम्हें खाना होगा बिना कोई सवाल पूछें। जाओ मेरा ऑर्डर किया डिस लेकर आओ।" राधा से कहने के बाद वेटर को यश ने अपना ऑर्डर किया हुआ खाना लाने को कहा।
राधा बस यश को घूरती रह गई।

*****

" वाह क्या बात है। सारी डिसेस मेरी पसन्द के ही आपने ऑर्डर किए हैं।" प्रेमा चहकते हुए बोली। सामने खीर- पूड़ी, जलेबी, गोलगप्पे और समोसे कि प्लेटों को देखकर उनका चेहरा दमक उठा था।

" अब मेरी पसन्द तुम हों तो तुम्हारी पसन्द का भी तो ख्याल रखना ही पड़ेगा ना मुझे।" सुलेख ने जलेबी कि एक बाइट प्रेमा के मुंह में डालते हुए कहा।

" मेरी पसन्द भी तो आप ही हैं न।" प्रेमा ने उनकी ओर देखते हुए कहा।

" तो क्या मुझे ही खा जाओगी?" सुलेख ऐसे व्यंग्यात्मक लहजे में बोला कि प्रेमा कि हंसी छूट गई।

" कितनी खूबसूरत लगती हों जब, तुम हंसती हों।" सुलेख ने कहा और प्रेमा शरमा गई।


ईधर यश का ऑर्डर किया हुआ खाना टेबल पर सलीके से रखा जा चुका है। वेज और नॉनवेज डिसेस कि प्लेटों को राधा देखती हुई यश को मन -ही मन लाखों गालियों से नवाज़ रही हैं।


" अब मुहूर्त निकलवाऊं क्या खाने के लिए? काफ़ी काम पेंडिंग में पड़े हैं जरा जल्दी खाने कि मेहरबानी कीजिए।" उसकी ओर चिकन मसाला का प्लेट सरकाते हुए यश ने सर्द हवाओं -सी आवाज़ में कहा। 


" मैं मीट नहीं खाती हूं। मैं वेजिटेरियन हूं समझे आप।" राधा ने कहा और उसने  पाव भाजी कि प्लेट को  पकड़कर  अपने सामने रख दी।

यश ने मुस्कुरा कर उसकी ओर देखा।



क्रमशः।



Jyoti

Jyoti

अच्छी कहानी

7 दिसम्बर 2021

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

बहुत अच्छा लिखा आने आपने💐💐💐💐💐

26 सितम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

26 सितम्बर 2021

थैंक यू सो मच

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रचनाएँ
" इन आंखों को तलाश तेरी....😏😏😏"
5.0
राधा और उसके अनोखे सफ़र का दर्पण है यह उपन्यास।
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1) " इन आंखों को तलाश तेरी..😏😏😏"

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23) " इन आंखों को तलाश तेरी"😏😏😏[ अंतिम भाग]

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