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23) " इन आंखों को तलाश तेरी"😏😏😏[ अंतिम भाग]

29 सितम्बर 2021

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                   { अंतिम भाग }
         " इन आंखों को तलाश तेरी"😏😏😏



अब आगे...



" क्या हुआ दी? " राधा को देखते हुए विशु ने कहा। लीला भी हॉल में बैठी हुई थी तो उसकी नजर भी राधा पर जाकर ठहर गई।


" आंटी! ये राधा न पागल हो गई है। आपकों पता है बीच सड़क पर चल रही थी। इसका एक्सीडेंट हो चुका होता अगर मैंने इसे अपनी ओर खींचा न होता तो। पता नहीं इसका ध्यान कहां था?" शिकायती लहजे में हरकेश बोला। राधा चुपचाप जाकर हॉल के लेफ्ट साइड वाले सोफे पर बैठ गई। अपना बैग सामने टेबल पर रखकर वो गहन चिंतन में डूब गई।

" थैंक यू सो मच बेटा। शायद राधा को किसी बात से सदमा लगा है वरना वो तो ऐसी लापरवाही कभी नहीं करती। देखना थोड़ी देर बाद वो पहले कि तरह नॉर्मल हो जायेगी। तुम बैठो और कुछ देर यहीं रूक जाओ।" लीला ने बड़े प्यार से कहा।

" मैं कॉफ़ी बनाकर लाती हूं। आप बैठिए।" कहने के बाद विशु किचन कि ओर चली गई।


इधर प्रेमा और सुलेख ट्रैफिक में फंस गए हैं। कई गाड़ियां खड़ी हुईं हैं। यश होटेल के आसपास चक्कर लगाने के बाद थककर अपनी कार में जा बैठा। उसे राधा पर गुस्सा आने लगा।


" लगता हैं इस कानपुर शहर से ही मिस ब्यूटी ने कल्टी मार ली है। कैसी लड़की हैं यार। जितना उसे समझने कि कोशिश करता हूं उतना ही उसे समझ नहीं पाता। ओह माई गॉड, मैंने तो बिल पे भी नहीं किया है शायद इसी वजह से वो यहां से भाग गई होगी ताकि उसे बिल पे न करना पड़े।" सोचते हुए वापस यश होटेल के अंदर गया। बिलिंग काउंटर पर जाकर उसने पूछा कि -"किसी राधा नाम कि लड़की को उसने देखा है क्या?"
बिलिंग काउंटरर बॉय से पता चला कि–" नाम तो नही पता लेकिन एक ब्लू सलवार पहनी हुई , एक लड़की बिल पे करने आई थी लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे तो मिस्टर सुलेख रॉय ने उस लड़की का बिल पे किया। फिर वो लड़की उनसे बाते करने लगीं और यहां से चली गई।"
उस बॉय ने राधा के साथ अपने किए अभद्र व्यवहार को यश से छुपाया।

यश को समझ में आया कि "वो ब्लू सलवार पहनी लड़की राधा ही है। शायद राधा के पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। इत्तेफ़ाक से यश के डैड सुलेख ने ही  बिल पे कर दिया लेकिन राधा गई कहां?


यश अब पार्किंग साईड गया, अपनी कार निकाली उसने फिर सड़क पर दौड़ाने लगा।



राधा ने खुद को संयत किया।


" मॉम! मैं दिल्ली जाकर अपने पोलिस इंस्पेक्टर बनने के सपने को साकार करना चाहती हूं।" राधा ने लीला और हरकेश को देखते हुए कहा।


" ये तो मैं भी कहना चाहती थी और तुम्हें जॉब करने कि जरूरत भीं नहीं है। मुझे लगा था कि तुम अपने मन से जॉब करना चाहती हों इसलिए मैंने तुम्हें नहीं टोका था। लेकिन अब मैं चाहती हूं कि तुम आगे बढ़ो और अपनें सपने को पूरा करो। पैसों कि चिंता मत करो राधा। विशु के साथ दिल्ली में मेरे बड़े भैया के यहां उनके घर में तुम रहना। मैंने पहले से ही इस बारे में उनसे बात कि थी और तुम्हें बताने ही वाली थी कि खुद तुमने अच्छा डिसीजन ले लिया। आई प्रॉव्ड ऑफ यूं।" लीला ने खुश होकर कहा और राधा के सिर पर हाथ फेरने लगी।

" अरे मैं भी तो आज शाम 04 बजे कि ट्रेन से  दिल्ली जाने वाला हूं। चाहो तो आज ही निकल जाते हैं एक साथ।" हरकेश ने उत्सुकता से कहा।

" कौन दिल्ली जा रहे है?" विशु ट्रे में कॉफ़ी का मग लाकर टेबल पर रखते हुए बोली।

" राधा, हरकेश और तुम ।" विशु को देखते हुए लीला बोली। विशु कि आंखे चमक उठी मानों मुंह मांगी मुराद पूरी हो गई हो उसकी।


"जाओगी न मेरे साथ?" राधा ने उसके चेहरे को देखते हुए पूछा।

" हां दी! जरूर जाऊंगी आपके साथ और आपका ख्याल भी रखूंगी।" विशु ने सहमति जताई। उसने सबको कप में कॉपी डालकर दिया।

" ओके तो ट्रेन कि तीन टिकटें बुक करवा लेता हूं। ओके अभी मैं चलता हूं।  03:40 में हम स्टेशन के लिए निकलेंगे। इंपोर्टेंट सामानों कि पैकिंग करके रेडी रहना। " हरकेश अपना कॉफ़ी खत्म करने के बाद बोला।


" थैंक्स हरकेश ! तुम एक अच्छे दोस्त हों। तुम मेरी बहुत मदद करते आ रहे हों। तुमने मेरी जान बचाई, तुम्हारा मुझ पर बहुत अहसान है। वक्त आने पर मै भी तुम्हारी मदद करूंगी। ठीक है मैं और विशु रेडी रहेंगे। " हरकेश को एकटक देखते हुए राधा बोली।

" दोस्ती में नो सॉरी एंड नो थैंक्स। ओके बाय।" बोलकर हरकेश चला गया।

" बट मॉम! आप यहां अकेली हो जाएंगी।" राधा ने लीला कि ओर देखते हुए कहा।


" नहीं बेटा ऐसी बात नहीं है। देखो मेरा तो पूरा समय कॉलेज जाने और वहां से आने में ही चला जाता हैं और जिस किसी भी दिन फ्री रहूंगी तुम दोनों से मिलने जाया करूंगी। बस तुम अपने टारगेट पर फोकस करो। बिल्कुल अर्जुन कि तरह। उसी कि तरह तुम्हें भी मछली कि आंख भेदनी है। चलो थोड़ा रेस्ट कर लो फिर पैकिंग करना। मैं कुछ बना देती हूं रास्ते में खा लेना।" राधा के गाल को छूते हुए लीला बड़े प्यार से बोली। राधा ने हां में सिर हिला दिया।





***

" देखो अब ट्रैफिक लगभग क्लियर होने वाली है प्लीज आप फास्ट स्पीड से ड्राइव मत करना। अभी भी बहुत गाडियां है आसपास।" प्रेमा सामने देखते हुए बोली।

" ऐसे में तो शाम हो जाएंगी घर पहुंचते -पहुंचते हमें। जानती हो ना तुम्हारे दीदी - जीजा आने वाले हैं आज। उनके लिए कुछ बनाना पड़ेगा तुम्हे अपनें हाथ का। याद है जीजा को तुम्हारी हाथ से बनी कचौड़ियां कितनी पसन्द है।" सुलेख मुस्कुरा कर बोले।

" साफ- साफ कहिए कि आपका खाने का मन हो रहा है। देखिए सिग्नल ग्रीन हो गई। ड्राइविंग स्टार्ट कीजिए।" प्रेमा उत्साहित होकर बोली।


इधर उनकी कार से थोड़ी दूर पर यश कि कार भी पहुंच चुकी हैं लेकिन उसे सुलेख कि कार दिखाई नहीं दे रही है क्योंकि उसकी कार एक बड़े से ट्रक के पीछे है।

सुलेख ने कार स्टार्ट की। कार आगे बढ़ते हुए जा ही रही थी कि अचानक से सामने से एक लाल रंग का  ट्रक सड़क पर ऐसे लहराते हुए चला रहा था मानो उसमें अजगर कि आत्मा घुस गई हो।


" सुलेख.....।" प्रेमा मारे दहशत के जोर से चीखी और अगले ही पल उस बिना नंबर प्लेट वाले ट्रक ने सुलेख कि कार को जोर कि टक्कर दे मारी।

कार हिचकोले खाती हुई पलट गई और सड़क किनारे खड़े लहलहाते नीम के विशालकाय पेड़ से जा टकराई।
कार के पुर्जे -पुर्जे टूटकर बिखर गए। वो ट्रक वहां से नदारद हो चुकी हैं ये कांड करके।


03:40।


एक ओर राधा जहां नया सफ़र शुरू करने जा रही हैं तो वहीं दूसरी ओर यश कानपुर के सबसे बड़े हॉस्पिटल में इमरजेंसी वार्ड के दरवाजे पर लाचार खड़ा हुआ सोच रहा है कि ये क्या हो गया? सारी खुशियां एक पल में न जाने कहां गुम हो गई? 

राधा और रूपेश दोनों के ही मोबाइल पर कॉल्स करके यश उकता गया था। दोनों के ही मोबाइल स्विच ऑफ बता रहे है कॉल करने पर। 

" पता नहीं ये राधा और रूपेश इस दुनियां के किस कोने में जा छुपे हैं?" यश खुद से कहें जा रहा था।

थोड़ी देर बाद...


" यश! आपके मॉम,डैड कोमा में चले गए हैं।" डॉक्टर ने कहा तो यश के पैरों तले से जमीन खिसक गई।

" ये क्या हो गया? किसकी नजर लग गई हमारे परिवार को? भगवान ऐसा किसी भी के साथ न करें।" रेखा रोते हुए बोली। यश बेहोश होकर गिर पड़ा।


**** 

" मॉम! आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपना सपना पूरा कर सकूं। और एक वादा कीजिए कि अगर किसी ने कभी आपसे मेरे बारे में पूछा तो आप उसे ये नहीं बताएंगी कि मैं दिल्ली चली गई हूं प्लीज।" राधा झुककर लीला के पैर छूते हुए बोली।

" मेरा आशीर्वाद तुम तीनों के साथ हमेशा बना रहेगा बेटा। मैं किसी को नही बताऊंगी तेरे बारे में। वहां पहुंचकर कॉल करना और टाईम से खाना खाकर रेस्ट करना। कोई भी बात हो मुझसे शेयर जरूर करना ठीक। अपना और विशु का ख्याल रखना।" कहते हुए विशु और राधा को लीला ने अपने गले से लगा लिया।


‘आंटी! मैं भी हूं न इन दोनों का ख्याल रखने के लिए। चिंता मत कीजिए।
"मै राधा का साथ कभी नहीं छोडूंगा।"
आई प्रॉमिस यूं लीला आंटी।’ राधा को देखते हुए अर्थपूर्ण ढंग से हरकेश बोला। लीला ने मुस्कुरा कर हामी भरी।


फिर टैक्सी में बैठ कर तीनों स्टेशन के लिए निकल गए।

04 बजे।


ट्रेन आती देखकर तीनों ने अपना बैग कसकर पकड़ लिया। विशु बार -बार पीछे मुड़कर रूपेश को देख रही थी जो छिपकर विशु को ही देखे जा रहा था।

" देख ट्रेन आ गई। चल विशु। किसे देख रही हों?" राधा थोड़ी सख्ती से बोली। विशु नज़रे झुका कर ट्रेन कि ओर बढ़ गई।

तीनों ट्रेन में चढ़कर अपनी -अपनी सीट पर बैठ गए। विशु और राधा एक साथ और सामने अकेला हरकेश। हरकेश कि नजरे बस राधा पर टिकी हुई हैं। राधा एक डायरी अपने बैग से निकालकर उसमें कुछ लिखने लगी।
इसी ट्रेन कि दूसरी बोगी में रूपेश बैठा हुआ दिल्ली जा रहा हैं।




01 महीने बाद।



" वाह क्या बात है राधा! बिना कुछ कहें तुम न जाने कहां चली गई हों? कोई शिकायत ही सही लेकिन एक बार तो मुझसे बात कर लेती। चलो कभी न कभी तुमसे मुलाकात तो ज़रूर होगी मेरी। शायद बुढ़ापे में ही सही लेकिन जब कभी भी तुम्हारा दीदार होगा मुझे , तब मैं तुमसे पूछूंगा कि " क्यों चली गई थी मुझे छोड़कर?" यश अपने घर कि बाल्कनी पर खड़े होकर सामने के गुलाब के बगीचे को देखते हुए खुद से कहें जा रहा हैं। प्रेमा और सुलेख अभी भी कोमा में हैं।

"हर राह पर तुम्हें तलाश करती रही निगाहें,
काश यादों से निकल कर तुम रूबरू हो जाते.....
अब तो आँखों से भी जलन होती हैं मुझे,
खुली हो तो तलाश तेरी, बंद हो तो ख्वाब तेरे."


"इन आंखों को तलाश तेरी। " यश दर्द भरी आवाज़ में कहते हुए अपनी आंखे बंद करके राधा को याद करता है।



समाप्त।


[शीर्षक " इन आंखों को तलाश तेरी" 😏😏😏 के तर्ज पर यह कहानी यही विराम लेती हैं।]



Jyoti

Jyoti

गुड

7 दिसम्बर 2021

CNP CNP

CNP CNP

Wahhh wahhh bahut achha ant hai

29 सितम्बर 2021

Pratik Tiwari

Pratik Tiwari

वाह वाह

29 सितम्बर 2021

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रचनाएँ
" इन आंखों को तलाश तेरी....😏😏😏"
5.0
राधा और उसके अनोखे सफ़र का दर्पण है यह उपन्यास।
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